NEET कराने वाली NTA प्रमुख प्रदीप जोशी के खिलाफ इंदौर हाईकोर्ट में लग चुके अधिकार और पद के दुरूपयोग के आरोप

मध्यप्रदेश में 'द सूत्र' खुलासा कर रहा है कि प्रदीप जोशी पर मप्र लोक सेवा आयोग का चेयरमैन रहते हुए प्रोफेसर भर्ती परीक्षा के दौरान गंभीर आरोप तो लगे ही थे, साथ ही इसे लेकर हाईकोर्ट में केस भी दायर हुआ था... 

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Sanjay gupta
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INDORE. NEET क्लीन नहीं है, खुद केंद्रीय शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इसे मान लिया है, लेकिन इसे कराने वाली एजेंसी NTA के चेयरपर्सन पर कार्रवाई से केंद्र सरकार बच रही है। इसकी सीधी वजह है उनके उच्चस्तर के संबंध और रसूख। जो उनके मप्र लोक सेवा आयोग (MPPSC) के चेयरमैन बनते समय चली नोटशीट से पहले ही साफ हो चुका है। जिसका 'द सूत्र' 17 जून को खुलासा कर चुका है। हालांकि केंद्र ने डीजी सुबोध कुमार को हटा दिया है। इसे जोशी को बचाने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। वहीं 'द सूत्र' खुलासा कर रहा है कि जोशी पर मप्र लोक सेवा आयोग का चेयरमैन रहते हुए प्रोफेसर भर्ती परीक्षा के दौरान गंभीर आरोप तो लगे ही थे, साथ ही इसे लेकर हाईकोर्ट में केस भी दायर हुआ था। NTA प्रमुख प्रदीप जोशी... 

हाईकोर्ट में चले केस में यह लगाए गए थे आरोप

साल 2009-10 की प्रोफेसर भर्ती परीक्षा के दौरान अपात्रों को चयन करने पर जोशी पर गंभीर आरोप लगे थे। इस दौरान संवादक्रांति मंच के प्रमुख और व्हीसल ब्लोअर पंकज प्रजापति ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की थी। इस याचिका में मप्र शासन, पीएससी, तत्कालीन मंत्री अर्चना चिटनीस के साथ ही डॉ. प्रदीप जोशी को भी पक्षकार बनाया था। इसमें जोशी को लेकर आरोप लगाए गए थे कि उन्होंने प्रोफेसर भर्ती के दौरान 89 लोगों का गलत चयन किया, इसके लिए उन्हें अपने चेयरमैन पद के अधिकार और पद का दुरूपयोग किया।

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भ्रष्टाचार के भी आरोप लगाए गए

साथ ही एक उम्मीदवार जिसने चयन सूची में टॉप किया था (पवन कुमार शर्मा) को लेकर तो और भी गंभीर आरोप लगे कि उसे बिना किसी पात्रता के ही चयनित किया गया और इसके लिए प्रोफेसर प्रदीप जोशी द्वारा भ्रष्टाचार किया गया है। यह पूरी तरह से अवैधानिक चयन और नियुक्ति थी। साथ ही कहा गया कि प्रदीप जोशी द्वारा यह फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद भी कि कई उम्मीदवार मानकों के मुताबिक नहीं है, उन्होंने इसे नहीं रोका और अपनी जिम्मेदारा और उत्तरदायित्व को निभाने में असफल हुए। 

हाईकोर्ट ने यह दिया था आदेश

प्रोफेसर भर्ती को लेकर दो याचिकाएं लगी, दोनों में प्रदीप जोशी को पक्षकार बनाया गया था। एक मामले में हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि संबंधित याचिकाकर्ता पीएससी के सामने जाकर इसका रिप्रेंजेंटशन देकर यह बात रखें। व्हीसल ब्लोअर ने यह पक्ष रखा, जांच कमेटी भी बनी लेकिन मामला दबा दिया गया। वहीं एक अन्य पीआईएल को इसलिए खारिज कर दिया गया क्योंकि याचिकाकर्ता ने जिन 89 नियुक्ति को लेकर मामला उठाया था उन्हें पार्टी नहीं बनाया साथ ही हाईकोर्ट ने पाया कि याचिका में पक्षकार प्रदीप जोशी और अर्चना चिटनीस के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण इरादे से एसा किया गया, इसके लिए उचित दलील नहीं दे पाया। इसलिए याचिका खारिज कर दी गई। 

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सीएम के सचिव इकबाल सिंह बैंस के समय चली नोटशीट

प्रदीप जोशी मूल रूप से यूपी के हैं। उन्हें पहली बड़ी नियुक्ति साल 2006 में मप्र लोक सेवा आयोग के चेयरमैन पद पर मिली थी, यहीं से वह फिर आगे बढ़ते चले गए। यह नियुक्ति की नोटशीट तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान के सचिव रहे इकबाल सिंह बैंस द्वारा चली थी। उन्हें पुलिस महानिरीक्षक कानून व्यवस्था व सुरक्षा एके सोनी द्वारा जोशी और शोभा पाटनकर दोनों की रिपोर्ट भेजी गई थी। 

  1. इसमें जोशी को लेकर लिखा गया कि वह अभी रानी दुर्गावती विश्वविद्याल में पदस्थ है। इनका संबंध बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी व पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी से भी होना ज्ञात हुआ है। उनका कोई आपराधिक रिकार्ड होना नहीं पाया गया है। इनका चरित्र व छवि अच्छी है।

    (इसके साथ ही एक कागज पर भी लिखा हुआ फाइल में चला जिसमें है कि प्रदीप जोशी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अध्यक्ष रहे हैं, वर्तमान में रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है)
  2. वहीं इसी पत्र में शोभा पाटनकर के लिए लिखा गया कि वह इंदौर में रहती है और स्वामी दयानंद निजी स्कूल में अध्यापन का कार्य करती है। इनके खिलाफ कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं है और चरित्र व छवि अच्छी है। 

पीएससी में चेयरमैन कार्यकाल में हुआ बड़ा प्रोफेसर भर्ती घोटाला

पीएससी मप्र में उनका चेयरमैन कार्यकाल 2006 से 2011 तक रहा है। इस दौरान 2009 में सीधे प्रोफेसर के करीब 350 पदों के लिए हुई भर्ती में बड़ा खेल हुआ। इसमें अनुभव में खेल करते हुए मानकों से परे जाकर 54 प्रोफेसर नियुक्त कर दिए गए। इसकी जांच तीन सदस्यीय शासकीय कमेटी ने की जिसमें दो महिला प्रिंसीपल और एक बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार थे। इस कमेटी ने पाया कि यह नियुक्ति गलत हुई है और इसमें चयनित 54 के पास सही अनुभव सर्टिफिकेट नहीं है। इसमें टॉप करने वाले पवन शर्मा के पास तो कोई अनुभव था ही नहीं और निजी सर्टिफिकेट थे। साथ ही चयन करने वाली विशेषज्ञ कमेटी लेक्चरर की बनी थी और वह प्रोफेसर को चुन रहे थे। तत्कालीन उच्च शिक्षा आयुक्तों ने भी गलत पाया। लेकिन मामला दबा दिया गया। यही इकलौती नियुक्ति नहीं बल्कि, करीब आधा दर्जन भर्तियों में उन पर गंभीर आरोप लगे थे। 

व्हीसल ब्लोअर ने उठाया था मुद्दा

मप्र पीएससी में व्हीसल ब्लोअर के तौर पर मुद्दे उठाने वाले पंकज प्रजापति ने बताया कि हमने संवादक्रांति के माध्यम से पूरा मुददा उठाया। खुद जांच कमेटी में यह सामने आ गया, सीबीआई जांच और नियुक्ति रद्द करने की मांग की लेकिन कुछ नहीं हुआ। विवाद देख जोशी ने अपने राजनीतिक रसूख के बल पर यहां से निकलकर छत्तीसगढ़ पीएससी का पद संभाल लिया। आज तक वह नियुक्तियां रद्द नहीं की गई है, जबकि ऑन रिकार्ड इन्हें गलत पाया गया था।

मप्र लोक सेवा आयोग NEET NTA प्रमुख प्रदीप जोशी शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान