नेताजी का इंतजार बढ़ा, निगम-मंडलों में अब 2025 में होंगी नियुक्तियां

'द सूत्र' ने निगम-मंडलों में नियुक्ति अटकने को लेकर बीजेपी के कई नेताओं से बातचीत कर पूरा गणित समझने की कोशिश की। इसमें मूल रूप से तीन कारण निकलकर आए। पढ़िए ये खास खबर..

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Ravi Kant Dixit
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BHOPAL.राजनीति में पद के बिना सब अधूरा ही होता है...और सूबे की मोहन सरकार नेताओं का यह अधूरापन और बढ़ाती जा रही है। मध्यप्रदेश में नई सरकार का एक साल पूरा होने को है, लेकिन निगम-मंडल, बोर्ड और प्राधिकरणों में राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर स्थिति ज्यों की त्यों है। सत्ता-संगठन ने एक बार फिर इन नियुक्तियों को अनौपचारिक रूप से रोक दिया है। नतीजतन आस लगाए बैठे नेता बेचैन हुए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि ये नियुक्तियां अब नए साल यानी जनवरी 2025 में होंगी। 'द सूत्र' ने निगम-मंडलों में नियुक्ति अटकने को लेकर बीजेपी के कई नेताओं से बातचीत कर पूरा गणित समझने की कोशिश की। इसमें मूल रूप से तीन कारण निकलकर आए। 
पढ़िए ये खास खबर...

सालभर चुनावी मोड में काम करने वाली बीजेपी का फोकस इन दिनों उपचुनाव पर है। मध्यप्रदेश में श्योपुर जिले की विजयपुर और सीहोर जिले की बुदनी विधानसभा सीट पर 13 नवम्बर को वोट डाले जाएंगे। बीजेपी के बड़े नेता इन दोनों सीटों पर व्यस्त हैं। वहीं, केंद्रीय संगठन के राज्य के कुछ शीर्ष नेताओं को महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी दी है। 

जोखिम नहीं लेना चाहती पार्टी 

दूसरी बड़ी वजह यह है कि उपचुनाव के बीच बीजेपी किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहती है, क्योंकि अभी किसी नेता को नियुक्ति दी गई और विरोध के सुर उठे तो चुनाव के बीच संभालना थोड़ा मुश्किल होगा। हालांकि माना जाता है कि बीजेपी अनुशासित पार्टी है, लेकिन फिर भी बात बिगड़ी तो उपचुनाव के नतीजों पर असर पड़ सकता है। लिहाजा, सरकार और संगठन नियुक्तियों को लेकर फिलहाल कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहती। 

एक साल की उपलब्धियों पर ध्यान 

बुदनी और श्योपुर सीट पर उपचुनाव के ऐन बाद सरकार उत्सव की तैयारी में लग जाएगी। इसके पीछे वजह यह है कि दिसंबर में मोहन सरकार के कार्यकाल का एक वर्ष पूरा हो रहा है। सरकार की कोशिश है कि इस एक साल का लेखा-जोखा जनता के बीच रखा जाए। वहीं, यदि अभी सरकार राजनीतिक नियुक्तियां करती है तो कई मंत्री, सांसद और विधायक सक्रिय हो जाएंगे, इससे पार्टी की प्राथमिकताओं पर से ध्यान हट सकता है। इस तरह सरकार और संगठन का मत है कि अभी ध्यान बंटने के बजाय सरकार की एक वर्ष की उपलब्धियों पर फोकस किया जाए।

आयतित नेता चुनौती से कम नहीं 

देरी के पीछे तीसरा सबसे बड़ा कारण आयतित नेताओं की फौज है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव के वक्त बीजेपी ने कांग्रेस और दीगर पार्टियों के कई नेताओं को अपना बनाया था, ऐसे में उनकी ताजपोशी की जानी है। अब यदि उन्हें नियुक्ति मिलती है तो बीजेपी के खांटी नेता नाराज हो जाएंगे और यदि उन्हें ​पद नहीं​ मिलता है तो अंदरूनी कलह बढ़ेगी। कुल मिलाकर फिलहाल समीकरण इस बात के पक्ष में नहीं है कि राजनीतिक नियुक्तियों में बीजेपी को किसी तरह की जल्दबाजी करना चाहिए। 

नेताओं के सामने बड़ा संकट 

इसके उलट बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता निगम-मंडलों में नियुक्ति को लेकर हो रही देरी से नाराज हैं। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि बीजेपी ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जो प्रचंड जीत हासिल की है, उसके पीछे क्षत्रपों और स्थानीय नेताओं के योगदान को दरकिनार नहीं किया जा सकता। सरकार को चाहिए कि जल्द से जल्द ऐसे नेताओं को उपकृत किया जाए। ऐसा जल्द नहीं किया तो नाराजगी और बढ़ेगी। वर्षों से राजनीति में सक्रिय नेताओं के सामने अब उम्र और करियर का भी सवाल है। इनके समर्थक और परिवार के सदस्य भी इस बात से निराश हैं।

2454 पद, 2306 खाली पड़े हैं 

दूसरा आंकड़े देखें तो ​मध्यप्रदेश में इस समय निगम मंडल मानो खाली पड़े हैं। 'द सूत्र' की पड़ताल में सामने आया कि राज्य में 64 वैधानिक संगठन और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हैं। इनमें निगम/मंडल 35, स्‍टेट लेवल बोर्ड/प्रधिकारण 39, आयोग 16, नगरीय निकाय/संस्‍थाएं 396 और 486 संस्‍थाएं हैं। हैरानी की बात यह है कि इनमें से 2 हजार 454 पद हैं और सिर्फ 148 भरे हैं। अभी 2 हजार 306 पद खाली हैं। इस तरह सरकार के पास कई नेताओं और समाजों को साधने का मौका तो है, पर किसे उपकृत किया जाए और किसे छोड़ें, यही बड़ा संकट है।

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