News Strike : MP में अफसरों की मनमानी का शिकार राज्यमंत्री, क्या मोहन राज में भी बेलगाम होगी अफसरशाही ?

मध्यप्रदेश में अफसरशाही का असल हाल क्या है जो अब तक सामान्य कार्यकर्ता, स्थानीय नेता और विधायकों की नहीं सुन रहे थे। वही अब राज्य मंत्री का दर्जा रखने वाले नेताओं की भी बातें अनसुनी कर रहे हैं। वही मैं आज आपको बताने जा रहा हूं...

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Jitendra Shrivastava
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News Strike : शपथ लेने के तीसरे दिन ही सीएम मोहन यादव ने छिंदवाड़ा में कलेक्टर को ताकीद किया था कि कलेक्टर साहब आप ध्यान रखिए पटवारी से गलती हुई तो कार्रवाई आप पर भी होगी। ये एक कोशिश थी अफसरशाही को मैसेज देने की कि अब सरकार सख्त होगा। पर क्या वाकई अब तक अफसरशाही पर लगाम कसी जा सकी है। राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त नेता की आपबीती सुनकर तो शायद ऐसा नहीं लगता। मैं आपको बताने जा रहा हूं अफसरशाही का असल हाल क्या है। जो अब तक सामान्य कार्यकर्ता, स्थानीय नेता और विधायकों की नहीं सुन रहे थे। वही अब राज्य मंत्री का दर्जा रखने वाले नेताओं की भी बातें अनसुनी कर रहे हैं।

शिवराज सिंह के समय से ही अफसरशाही हावी है

मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार पर अफसरशाही हावी होने के इल्जाम लगना नया नहीं है। ये इल्जाम तब भी लगते रहे हैं। जब प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान थे। या, यूं कहें कि शिवराज सिंह के समय से ही मध्यप्रदेश में अफसरशाही हावी होने की शिकायतें आने लगी थीं। खासतौर से बतौर सीएम उनके आखिरी कार्यकाल में ये शिकायतें बहुत ज्यादा आईं। कई स्थानीय कार्यकर्ता और नेता ये कहते रहे कि जिले के अफसर उनकी नहीं सुन रहे हैं और उनके काम कराना ही मुश्किल हो रहा है। यही मामला पंचायती राज से जुड़ा हुआ भी मिला। सीएम मोहन यादव भी ये साफ कर चुके हैं कि वो पंचायती राज को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। लेकिन कुछ अफसर उनकी इस मंशा पर पानी फेरते हुए ही दिख रहे हैं। शायद यही वजह है कि भोपाल से लेकर खंडवा तक जिला पंचायत के सदस्यों से लेकर अध्यक्ष तक अफसरशाही से परेशान बने हुए हैं। कुछ समय पहले भोपाल में ही जिला पंचायत सदस्यों ने तो सामूहिक रूप से इस्तीफा तक की चेतावनी दे डाली थी।

पिंकी सुदेश वानखेड़े खंडवा कलेक्टोरेट के चक्कर लगा रही

ताजा मामला खंडवा का है। जहां जिला पंचायत अध्यक्ष ही अफसरशाही से परेशान चल रहे हैं। वहां पर तो जिला पंचायत अध्यक्ष तक से कलेक्टर नियमानुसार सुविधाएं देने के लिए बीते चार माह से चक्कर कटवा रहे हैं। यह हाल तब हैं, जबकि उन्हें राज्यमंत्री पद का दर्जा मिला हुआ है। ये जिला पंचायत अध्यक्ष हैं पिंकी सुदेश वानखेड़े। जो आए दिन खंडवा कलेक्टर दफ्तर के चक्कर लगा रही हैं। उन्हें ये पद संभालते हुए चार महीने का समय बीत चुका है, लेकिन अब तक घर नहीं मिल सका है। पिंकी वानखेड़े इस बारे में खुलकर मीडिया के सामने आ चुकी हैं। उन्होंने ये आरोप भी लगाया है कि वो पिछले चार महीने से जिला कलेक्टर साहब के आगे पीछे घूम रही है और वह मना कर देते हैं कि है नहीं। पिंकी वानखेड़े कहती हैं कि जिस पद पर बैठी हुई हूं, उसमें सबको आवास मिलता है, लेकिन उनकी ही सुनवाई नहीं हो रही है। पिंकी वानखेड़े का ये भी आरोप है कि उन्हें हर बार ये कहकर टाला जा रहा है कि आवास उपलब्ध नहीं है। इस बात से परेशान पिंकी वानखेड़े ने खुद ही खाली आवास तलाशा है और उसी को आवंटित करने के लिए एप्लीकेशन सब्मिट कर दी है।  

शिवराज के समय जिपं अध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा दिया था

पिंकी वानखेड़े का दर्द ये है कि उन्हें रोजाना 17 किमी का सफर तय कर आना जाना पड़ रहा है नौबत ये आ चुकी है कि अब किराए के मकान में रहना पड़ सकता है। आपको बता दूं कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के समय जिला पंचायत अध्यक्ष को राज्य शासन ने राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया था। इसमें अध्यक्षों को राज्यमंत्री के रूप में दिए गए प्रोटोकाल का विधिवत पालन कराने, आवास एवं सुरक्षा देने, राष्ट्रीय पर्व के समय जिले में मंत्रीगणों की अनुपस्थिति पर जिला पंचायत अध्यक्ष से ध्वजारोहण कराने, जिला पंचायत अध्यक्षों को दिए जाने वाले मानदेय और भत्ते में वृद्धि कर एक लाख रुपए किए जाने, जिला पंचायत से स्वीकृत होने वाले सभी निर्माण कार्यों में जिला पंचायत अध्यक्षों से अनुमोदन लिए जाने सांसद और विधायकों की ही तरह जिला पंचायत अध्यक्षों को शासन की तरफ से परिचय पत्र जारी करने की मांग को तुरंत स्वीकार कर अमल करने की घोषणा की गई थी। आपको ये भी बता दूं कि कई बार राजनीतिक पुनर्वा के लिए भी ये पद पार्टी अपने नेताओं को देती है। 

कलेक्टर ने ट्रक ड्राइवर को औकात में रहने की बात कही थी

लगता है कि कुछ अफसरों तक ये बात नहीं पहुंची है या वो जिला पंचायत के अध्यक्षों को अब तक राज्य मंत्री नहीं मान पाए हैं। खैर बात केवल इतनी नहीं है। अफसरों के मनमानी और रूआब से भरे रवैये की खबरें पहले भी आती रही हैं। देशभर में जब ट्रांसपोर्टरों की हड़ताल चल रही थी तब एक कलेक्टर ने ट्रक ड्राइवर को औकात में रहने की बात कही थी। इसके बाद जनवरी में ही एक मामला चितरंगी के एसडीएम का आया था। सिंगरौली जिले के चितरंगी के एसडीएम असवन राम चिरावन एक महिला कर्मचारी से जूते के फीते बंधवाते हुए नजर आए थे। इस वीडियो के वायरल होते ही खुद सीएम मोहन यादव ने सख्त फैसला लिया था। और उसे ट्विटर पर शेयर भी किया था। उन्होंने लिखा था कि जो चितरंगी के एसडीएम ने किया वो बहुत निंदनीय है। इस घटना को लेकर एसडीएम को तत्काल ही हटाने के निर्देश दिए गए हैं। इसके बाद उन्होंने ये भी लिखा कि हमारी सरकार में नारी सम्मान सर्वोपरी है। हालांकि, अब तक यही रवैया पिंकी वानखेड़े के संदर्भ में दिखाई नहीं दिया है। कहने को ये सिर्फ एक ही जगह का मामला हो सकता है, लेकिन ढील दे गई तो अफसरशाही को बेलगाम होने में कितने देर लगेगी। 

वरिष्ठ आईएएस सिर्फ एसी कमरों में बैठकर हवा नहीं खा सकते

वैसे मुख्यमंत्री मोहन यादव अफसरशाही पर हावी रहने की कवायद शुरू कर चुके हैं। वो ये भी साफ कर चुके हैं कि उनके राज में वरिष्ठ आईएएस भी सिर्फ एसी कमरों में बैठ कर हवा नहीं खा सकते। उन्हें भी फील्ड का रुख करना होगा। कुछ ही समय पहले वो अलग-अलग संभागों के रिव्यू के लिए पहुंचे थे। ऑन स्पॉट कुछ चौंकाने वाले फैसले किए थे जिसके तहत उन्होंने जबलपुर संभाग की बैठक के दौरान जबलपुर कलेक्टर सौरव कुमार सुमन को हटा दिया था। वल्लभ भवन में बैठने वाले अफसरों को भी वो फील्ड में जाने के लिए ताकीद कर चुके हैं। इसकी शुरूआत उन्हें संभागों का जिम्मा सौंपने से हो चुकी है। जिस तरह से मंत्रियों के पास जिले का प्रभार होता है। उसी तरह अफसरों को भी संभाग का प्रभार सौंप दिया गया है। बता दूं कि मप्र में दस संभागीय मुख्यालय है और सीएम ने हर संभाग के लिए एक सीनियर आईएएस और एक सीनियर आईपीएस तैनात कर दिया है। जो जिले के हाल अफसरशाही के आलम के बारे में सीधे सीएम को रिपोर्ट करेंगे।

अफसरशाही पर लगाम कसने की कवायद तो तेज हो चुकी है। देखना ये है कि पिंकी वानखेड़े जैसे केस आगे भी आते हैं या ऐसी शिकायतें दूर होती हैं और सीएम अपने प्लान को एग्जीक्यूट करने और करवाने में कब तक कामयाब होते हैं।

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