News Strike: नतीजों के बाद MP Congress में होंगे बदलाव, नए चेहरे कौन

News Strike: मध्यप्रदेश के कांग्रेस के चीफ जीतू पटवारी पूरे एग्रेशन के साथ दिख रहे हैं। ये एग्रेशन एमपी में चुनावी मैदान में भले ही न दिखा हो, लेकिन मीडिया में जीतू पटवारी अपनी पार्टी के नेशनल लीडर्स की तरह ही अटैकिंग और एग्रेसिव दिख रहे हैं... 

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Jitendra Shrivastava
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News Strike: चुनाव बाद मध्यप्रदेश कांग्रेस  ( Madhya Pradesh Congress ) में होंगे बड़े बदलाव। कांग्रेस का कॉन्फिडेंस तो आप अभी देख ही रहे हैं। कांग्रेस अपने दम पर कितनी सीटें जीतेगी या फिर इंडिया गठबंधन क्या गुल खिला पाएगा ये कहना तो फिलहाल मुश्किल है, लेकिन इंडिया गठबंधन का एक-एक नेता, फिर चाहें वो राहुल गांधी हों, अखिलेश यादव हों या फिर तेजस्वी यादव हो वो माहौल ऐसा खींच रहे हैं जैसे 4 जून के बाद बीजेपी या एनडीए की छुट्टी हो ही जाएगी। प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी ( Jitu Patwari ) भी पूरे एग्रेशन के साथ दिख रहे हैं। ये एग्रेशन एमपी में चुनावी मैदान में भले ही न दिखा हो, लेकिन मीडिया में जीतू पटवारी अपनी पार्टी के नेशनल लीडर्स की तरह ही अटैकिंग और एग्रेसिव दिख रहे हैं। तो क्या उनका बदला हुआ मिजाज इस बात का हिंट है कि अब अगले पूरे साढ़े तीन साल कांग्रेस इसी एग्रेशन के साथ बिताने वाली है। इस एग्रेशन के खातिर जो भी जरूरी बदलाव होंगे वो जरूर किए जाएंगे।

इवीएम में गड़बड़ी की आशंका से सभी मुस्तैद

लोकसभा चुनाव वैसे तो मध्यप्रदेश में पूरे हो चुके हैं, लेकिन कांग्रेस की जंग अब भी जारी है। कांग्रेस फिलहाल किसी भी सीट पर चांस लेने के मूड में नहीं है। खासतौर से उन सीटों पर जहां कांग्रेस को लगता है कि वो जीत सकती है। वहां कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता सभी मुस्तैद हैं। वजह है इवीएम में गड़बड़ी की आशंका। दिग्विजय सिंह तो पहले ही ये आरोप लगा चुके हैं कि राजगढ़ के स्ट्रॉन्ग रूम में सिंबल लोडिंग यूनिट गायब हैं। इसके साथ वो सुप्रीम कोर्ट की शरण में जा चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने ये भी आरोप लगाए हैं कि सीसीटीवी में पहले ही चार जून की डेट नजर आ रही है। इसे लेकर वो निर्वाचन आयोग तक जाने वाले हैं। 

नई टीम को तैयार करने के लिए वाजिब वजह

चार जून के बाद नतीजे जो भी हों, इतना जरूर है कि कांग्रेस के पास प्रदेश में कोई खास काम नहीं बचेगा। लोकसभा चुनाव खत्म होते ही कांग्रेस फिर क्या करेगी। क्या इसके बाद का समय संगठन को मजबूत करने और कांग्रेस की हालत सुधारने की रणनीति पर काम करने का होगा। इस बीच वैसे मानसून सत्र भी दस्तक दे देगा। मानसून सत्र के बाद कांग्रेस के पास काफी लंबा ऐसा समय होगा जिसमें वो अपना संगठन मजबूत कर सके। कांग्रेस के अंदरूनी हलकों से अब ऐसी खबरें भी सुनाई देने लगी हैं कि एक बार फिर पूरे संगठन को रिवाइव किया जा सकता है। खासतौर से मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी यही चाहते हैं कि एक्टिव लोगों की नई टीम तैयार हो। इस नई टीम को तैयार करने के लिए उनके पास वाजिब वजह भी है। 

मौजूदा टीम के काम से जीतू पटवारी खुश नहीं है

खबर ये भी है कि नई टीम के गठन को लेकर प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी अपने करीबी लोगों के साथ मंथन शुरू भी कर चुके हैं। मंथन पूरा होने के बाद एक दो माह में कभी भी नई कार्यकारिणी घोषित होने की संभावना जताई जा रही है। प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद भी जीतू पटवारी को पुरानी टीम से ही काम चलाना पड़ा है। उसी पुरानी टीम के साथ जीतू पटवारी ने पूरा लोकसभा चुनाव निकाल लिया है। सूत्रों की माने तो मौजूदा टीम के काम से जीतू पटवारी बिलकुल खुश नहीं है। उनका इस दौरान का तजुर्बा है कि पुरानी टीम को जिस तरह से लोकसभा चुनाव के दौरान एक्टिव होकर काम करना चाहिए था, वैसा काम नहीं किया न ही उस तरह से नए अध्यक्ष को कॉपरेट किया है। इसलिए अब नई टीम में उन चेहरों पर जोर दिया जाएगा जो युवा हैं और खासतौर से जीतू पटवारी के विश्वासपात्रों में शामिल हैं। सिर्फ इतना ही नहीं नई टीम को बनाते समय प्रदेश के जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन पर ध्यान देने का भी दावा है। 

पदाधिकारियों के पार्टी बदलने से कार्यकर्ताओं में निराशा

आपको याद दिला दें दिसंबर में जीतू पटवारी के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस की कार्यकारिणी तो भंग कर दी थी, लेकिन लोकसभा चुनाव होने की वजह से नई कार्यकारिणी का गठन टाल दिया गया था। इसकी वजह से अस्थाई रूप से पूर्व में जिस नेता के पास जिस पद का दायित्व था, उसे वही जिम्मेदारी दे दी गई थी। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि लोकसभा चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में पार्टी नेता और कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो गए। इनमें प्रदेश और जिला पदाधिकारी भी शामिल हैं। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा व्याप्त है। पार्टी जल्द नई कार्यकारिणी का गठन कर नई ऊर्जा के साथ काम करेगी। उधर प्रदेश कार्यकारिणी के बाद जिलों में भी नई टीम का गठन किया जाएगा। नई टीम बनाते हुए पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरूण यादव, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और मौजूदा नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार की पसंद को भी पूरी तवज्जो दी जाएगी। 

मोर्चों और प्रकोष्ठों का भी नए सिरे से गठन होगा

इसके अलावा बदलाव की नई शुरूआत से प्रकोष्ठ और मोर्चा भी नहीं बज सकेंगे। जीतू पटवारी से पहले प्रदेशाध्यक्ष रहे कमलनाथ ने विधानसभा चुनाव से पहले अलग-अलग वर्गों, समाजों के लोगों को पार्टी से जोड़ने के लिए 50 से ज्यादा प्रकोष्ठ और मोर्चों का गठन किया था। इनके जरिए सैनिकों, बेरोजगारों, कर्मचारियों, विभिन्न समाजों को कांग्रेस के पक्ष में एकजुट करने की कोशिश की गई थी। प्रदेश से लेकर जिलास्तर तक मोर्चा, प्रकोष्ठों में नियुक्तियां की गई थी। पटवारी के प्रदेश अध्यक्ष बनते ही ये सभी मोर्चा, प्रकोष्ठ भी भंग कर दिए गए थे। माना जा रहा है कि इनका भी नए सिरे से गठन होगा। 

कांग्रेस को माइक्रो लेवल प्लानिंग नेटवर्क तैयार करना होगा

लोकसभा चुनाव को एकदम सिर पर देखते हुए कांग्रेस में जिस विभाग का बहुत तेजी में पुनर्गठन किया था वो है पार्टी का मीडिया विभाग। इसमें पूर्व मंत्री मुकेश नायक को मीडिया विभाग का अध्यक्ष बनाया गया है। इनकी टीम में नए प्रवक्ताओं की नियुक्ति की जा चुकी थी। साथ ही प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री डॉ. संजय कामले को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय का प्रभारी प्रशासन मनोनीत किया गया है। इसके अलावा पटवारी नौ जिलों में नए जिलाध्यक्ष भी नियुक्त कर चुके थे। इसमें जबलपुर शहर, भोपाल ग्रामीण, सीहोर, उज्जैन शहर, विदिशा, मऊगंज, मैहर, पांर्दुणा और बड़वानी में नए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की गई थी, लेकिन इतना काफी नहीं है। सिर्फ इतनी सी सर्जरी से कांग्रेस की कायापलट होने वाली नहीं है। कांग्रेस को मजबूत करना है और अगले चुनाव में या बीच में होने वाले पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी के बीस साल से टिके हुए संगठन को मजबूती देनी है तो कांग्रेस को खूब मेहनत करना होगी। बहुत सारी रिपोर्ट्स पर काम करना होगा और माइक्रो लेवल प्लानिंग के साथ हर अंचल में तगड़ा और कसा हुआ नेटवर्क तैयार करना होगा। 

जीतू के लिए दिग्विजय-नाथ को साथ लेकर चलने की बड़ी चुनौती 

इस काम के लिए जीतू पटवारी को बहुत सी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ेगा। उनकी सबसे पहली चुनौती होंगे कमलनाथ और दिग्विजय सिंह। जिन्हें हर फैसले में साथ लेकर चलना होगा। उन दोनों की भूमिका क्या होगी, इस पर भी विचार करना जरूरी होगा।
वैसे तो कांग्रेस ने दो युवा चेहरों को प्रदेश की कमान सौंप दी है। दोनों ही एग्रेसिव पॉलीटिक्स करते हैं। मैं बात कर रहा हूं जीतू पटवारी की ही और साथ में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार की। क्या ये दोनों एक साथ एक लंबी पारी खेल पाएंगे और कांग्रेस को मजबूत संगठन दे पाएंगे। इन सबके साथ में दो जरूरी नामों को नहीं भुलाया जा सकता है। एक नाम हैं उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे। दूसरे हैं उनके धुर विरोधी नेता गोविंद सिंह। गोविंद सिंह, दिग्विजय सिंह के बेहद करीबी नेता भी हैं और काफी सीनियर भी। चुनाव बाद दोनों की क्या भूमिका होगी। हालांकि, हेमंत कटारे का कद कितना बढ़ेगा ये इस बात पर भी निर्भर करेगा कि हेमंत कटारे विधानसभा में कितने मुखर नजर आते हैं और बीजेपी को कितना घेर पाते हैं। 

कुछ दिग्गज दल बदलू पार्टी की कार्रवाई का कर रहे इंतजार

इस बीच कुछ ऐसे नेता भी जीतू पटवारी के लिए चुनौती बनेंगे जो पार्टी छोड़ने का ऐलान कर चुके हैं, लेकिन अब तक इस्तीफा नहीं दिया है। ऐसे नेताओं में राम निवास रावत जैसे दिग्गज नेता का नाम भी शामिल है। जो बीच चुनाव में कांग्रेस का साथ छोड़ बीजेपी में चले गए। बीना की विधायक निर्मला सप्रे ने भी इस्तीफा नहीं दिया है, लेकिन ऑफिशियली बीजेपी जॉइन कर ली है। ऐसे दल बदलू इस फिराक में हैं कि उन्हें इस्तीफा न देना पड़े और पार्टी ही कुछ कार्रवाई करे। ऐसा करने से उन्हें विधायकी से इस्तीफा नहीं देना पड़ेगा। ऐसे मौका परस्त नेताओं से कैसे निपटा जाएगा इसका तोड़ भी जीतू पटवारी को ही तलाशना है। 

ऐसी लीडरशिप की जरूरत जो बीजेपी के दबाव में न आए

एक चैलेंज खुद जीतू पटवारी का क्षेत्र मालवा बनेगा। जहां कांग्रेस के पास जीरो लीडरशिप है। यहां नई लीडरशिप खड़ी करनी होगी। वो भी ऐसी जो बीजेपी के दबाव में न आए। इसके लिए भी खुद जीतू पटवारी को जमीन आसमान एक करना होगा। कांग्रेस ने इस बार दो विधायकों को भी लोकसभा  चुनाव का टिकट दिया है। एक हैं कमलेश्वर पटेल जिन्हें सीधी लोकसभा सीट से टिकट दिया गया।  दूसरे विधायक हैं सिद्धार्थ कुशवाह जो सतना से कांग्रेस के लोकसभा उम्मीदवार हैं। इन्हें पार्टी ने जीत के लायक समझकर इनका कद बढ़ा दिया है। जाहिर है अगर हार गए तो भी इन्हें संगठन में अहम जिम्मेदारी मिलने की उम्मीद होगी। अगर जीत गए तो जीतू पटवारी को ऐसे प्रत्याशी तलाशने होंगे जो इनकी विधानसभा सीटों पर जीत हासिल कर सके और कांग्रेस के नंबर बरकरार रहें। बात विंध्य की चली ही है तो अजय सिंह की बात करना भी जरूरी है। जो पार्टी के सीनियर लीडर हैं। जीतू पटवारी को उनकी भी भूमिका सुनिश्चित करनी ही होगी। 

जीतू पटवारी को खुद को साबित करने का इससे अच्छा मौका नहीं

कांग्रेस भले ही सत्ता में न हो, लेकिन चुनौतियां उसके सामने भी कुछ कम नहीं है, आलाकमान ने प्रदेश में बड़ा बदलाव किया ही इसलिए है कि आने वाले चुनावों में कांग्रेस कुछ बेहतर प्रदर्शन कर सके। हालांकि, इससे पहले भी नगर निगम चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर नतीजे हासिल किए थे, लेकिन सरकार में रहते हुए बीजेपी ने कांग्रेस के एक-एक कर बड़े नेताओं को अपना बना लिया। अब चुनौती ये है कि नए निष्ठावान नेताओं की फौज तैयार की जा सके। जाहिर है लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को एक से ज्यादा जितनी भी सीटें मिल जाएं वो बोनस ही होगा, लेकिन तकरीबन साढ़े तीन साल बाद होने वाले नगरीय निकाय चुनाव जीतू पटवारी की असल परीक्षा साबित होंगे। ये समय काफी है एक अच्छी टीम तैयार करने के लिए और खुद को साबित करने के लिए। इसके लिए जीतू पटवारी को बाहर से ज्यादा पार्टी के भीतर की चुनौतियों का सामना करना है। इसमें वो जितना कामयाब होंगे उतना ही बेहतर नतीजे दे सकेंगे।

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