News Strike : मध्यप्रदेश के इन दोनों उप मुख्यमंत्रियों की शपथ गलत है। आज आप जरूर ये सोचेंगे कि इनकी शपथ को वक्त हो चुका है। फिर मैं आज क्यों इस मुद्दे को उठा रहा हूं और शपथ पर सवाल खड़े कर रहा हूं। असल में ये सवाल मैं नहीं पूछ रहा। इस शपथ पर सवाल उठाया है संविधान ने। वही संविधान, जिसकी प्रतियां लहराकर ये पूरा चुनाव लड़ा गया और जो नतीजे सामने आए हैं, उसे ये माना जा रहा है कि ये संविधान को बचाने के लिए मतदान हुआ है। वही संविधान कहता है कि मध्यप्रदेश के दोनों उप मुख्यमंत्रियों की शपथ गलत है। अब सवाल उठाने का कारण हैं राम निवास रावत की शपथ। जो सिर्फ एक ही शब्द गलत बोल गए थे। जिस वजह से उन्हें पूरी शपथ दोबारा दिलाई गई। तो क्या इन दो उप मुख्यमंत्रियों के मामले में ऐसा संभव नहीं है।
आंध्र प्रदेश में एक-दो नहीं बल्कि, 5 उप मुख्यमंत्री है
राजेंद्र शुक्ल और जगदीश देवड़ा दोनों ने शपथ लेते हुए उप मुख्यमंत्री शब्द का इस्तेमाल ही किया, जबकि हमारे देश के संविधान में उप प्रधानमंत्री और उप मुख्यमंत्री जैसा कोई पद है ही नहीं। उप मुख्यमंत्री असल में मंत्री दर्जा प्राप्त नेता ही होते हैं। तो, फिर इस पद की जरूरत ही क्यों पड़ती है। चलिए इस बारे में आपको थोड़ा विस्तार से बताता हूं। अगर हम देश में उप मुख्यमंत्रियों की बात करें तो देश के 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में से 14 राज्यों में उप मुख्यमंत्री हैं। सबसे ज्यादा उप मुख्यमंत्री आंध्र प्रदेश के पास है। आंध्र प्रदेश में एक-दो नहीं बल्कि, 5 उप मुख्यमंत्री है। उसके बाद उत्तर प्रदेश-बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, और नागालैंड में दो-दो उप मुख्यमंत्री हैं। वहीं, हरियाणा, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना और अरुणाचल प्रदेश में एक-एक उप मुख्यमंत्री हैं।
संविधान में उप मुख्यमंत्री पद का जिक्र ही नहीं
अब सवाल उठता है कि अगर उप मुख्यमंत्री का पद किसी भी राज्य के लिए इतना ही ज्यादा महत्वपूर्ण है तो संविधान में इस पद का जिक्र क्यों नहीं मिलता है। जैसे मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के पद का जिक्र मिलता है और संविधान में ही उनका काम भी निर्धारित है। उसी तरह देश के उप प्रधानमंत्री या उप मुख्यमंत्री के पद का जिक्र और काम क्यों मेंशन नहीं हैं। जब संविधान में ये पद है ही नहीं तो राजनीतिक दल क्यों इस पद को इतनी तवज्जो देते हैं और इस पद पर काबिज होने वाला व्यक्ति कैसे खुद को खास समझ सकता है। ये जान लेना भी जरूरी है।
मुख्यमंत्री के बाद सबसे ज्यादा तवज्जो उप मुख्यमंत्री को
उप मुख्यमंत्री का पद सिर्फ किसी नेता को अहमियत देने का एक जरिया भर है। जो राजनीतिक दलों ने अपनी सुविधा के हिसाब से और राजनीतिक समीकरणों को साधने के लिए बना रखा है। एक आम सरकारी व्यवस्था के तहत प्रदेश का कर्ताधर्ता मुख्यमंत्री ही होते हैं। इसके अलावा हर विभाग की कमान मंत्रियों के पास ही होते हैं। ऐसे सिस्टम में उप मुख्यमंत्री सिर्फ नाम का ही एक पद कहा जाए तो गलत नहीं होगा। हालांकि, मध्यप्रदेश में जो उप मुख्यमंत्री बनाए गए हैं उन्हें अच्छे खासे विभाग भी दिए गए हैं। अमूमन कोशिश यही होती है कि जिसे ये पद दिया है उसका ओहदा ज्यादा बड़ा नजर आए। नेताओं को ये फायदा होता है कि वो भी अपनी सीनियरिटी का रुआब कायम रख पाते हैं और मुख्यमंत्री के बाद सबसे ज्यादा तवज्जो उन्हें ही दी जाती है।
अनुच्छेद 164 में भी उप मुख्यमंत्री के नाम का जिक्र नहीं
फिर भी सवाल यह उठता है कि जब संविधान में उप मुख्यमंत्री पद का जिक्र तक नहीं है तो इस पद की हैसियत इतनी बढ़ कैसे गई और इस पद की असल संवैधानिक स्थिति क्या है। संविधान के अनुच्छेद 163 (1) में कहा गया है कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्रिपरिषद होगी जो अपने कार्यों के निष्पादन के लिए राज्यपाल को सलाह देगी। 164 में भी मुख्यमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद के बारे में विस्तार से बताया गया है, लेकिन उप मुख्यमंत्री के नाम का जिक्र नहीं मिलता है। इस लिहाज से तकनीकी तौर पर उप मुख्यमंत्री की हैसियत केवल एक कैबिनेट मंत्री की होती है। कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री के बाद सबसे बड़ा मंत्री पद होता है, लेकिन मंत्रिमंडल में कई कैबिनेट मंत्री होते हैं और वो शपथ भी कैबिनेट मंत्री के पद की ही लेते हैं, लेकिन जैसा मैंने पहले कहा कि राजनीतिक संतुलन के लिए ये पद बनाया जाता है। साल 1990 में देश में गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ। तब राजनीतिक दलों की ये मजबूरी हुआ करता था कि वो अपने सारे सहयोगियों को साथ लेकर चले, लेकिन पीएम या सीएम तो एक ही हो सकते हैं। ऐसे में उप प्रधानमंत्री की युक्ति खोज निकाली गई और उसी तर्ज पर रूठे हुए सीनियर विधायकों को मनाने के लिए उप मुख्यमंत्री का पद बना दिया गया। ये पद किसी भी नेता को देते हुए उसकी सीनियरिटी का तो ख्याल रखा ही जाता है। हर राजनैतिक दल ये भी आकलन करता है कि उसकी जाति का प्रभाव प्रदेश में कितना है। उसका अपने खुद के क्षेत्र में कितना दबदबा है।
देवीलाल पहले राजनेता थे जिन्होंने उप प्रधानमंत्री पद की शपथ ली
हालांकि, इस पद को लेकर हमेशा से ही संवैधानिक और असंवैधानिक होने के सवाल उठते रहे हैं। खासतौर से देवीलाल के उप प्रधानमंत्री बनने के बाद से ये मामला खूब सुर्खियों में रहा। वो पहले ऐसे राजनेता थे जिन्होंने उप प्रधानमंत्री होने की शपथ ली थी। ये वाक्या 1989 का है तब उनकी शपथ को भी चुनौती दी गई थी। देवीलाल के उप प्रधानमंत्री पद पीएम के तौर पर शपथ लेने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इस पर केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया कि यह पद सिर्फ नाम के लिए है और देवीलाल अन्य तमाम मंत्रियों की तरह ही होंगे। इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने 9 जनवरी, 1990 को टिप्पणी की थी कि देवीलाल के पास पीएम की कोई शक्ति नहीं है। देवीलाल के उप प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद देश में उप मुख्यमंत्री का सिलसिला शुरू हुआ। पहली बार कर्नाटक में 1992 में पूर्व विदेश मंत्री एसएम कृष्णा उप मुख्यमंत्री बने थे।
सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि डिप्टी सीएम का पद असंवैधानिक है
हाल ही में इस पद को लेकर फिर से पीआईएल दायर की गई थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बैंच ने कहा कि डिप्टी सीएम का पद असंवैधानिक ही है। हालांकि, इस पद के बारे में संविधान में कुछ नहीं लिखा है। इस बैंच में चीफ जस्टीस डीवाय चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा थे। पब्लिक पॉलिटिकल पार्टी की तरफ से दायर इस याचिका को खारिज करते हुए सीजेआई ने कहा कि किसी भी प्रेक्टिकल पर्पस के लिए किसी को डिप्टी सीएम का पद दिया गया हो, लेकिन वो मंत्रिपरिषद का ही सदस्य रहेगा। वो दूसरे मंत्रियों के मुकाबले ज्यादा सैलेरी या सुविधाएं भी नहीं ले सकेगा। बस ये हो सकता है कि अपने ऑफिस सर्कल में उसे ज्यादा बेहतर ट्रीटमेंट मिले।
इससे ये तो साफ है कि डिप्टी सीएम का पद संविधान में कहीं नहीं है। तो क्या राजेंद्र कुमार शुक्ल और जगदीश देवड़ा को दोबारा शपथ लेनी चाहिए, लेकिन ऐसा भी बहुत बार हुआ है कि नेताओं ने डिप्टी पीएम या डिप्टी सीएम बोलकर शपथ ली है।
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