News Strike : विजयपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में बेशक राम निवास रावत बीजेपी प्रत्याशी होंगे। कांग्रेस का प्रत्याशी फिलहाल तय नहीं हुआ है। दोनों पार्टियों के प्रत्याशी कोई भी हों, लेकिन ये चुनाव जमीनी स्तर पर लड़ा जाएगा नरेंद्र सिंह तोमर और कांग्रेस नेता नीटू सिकरवार के बीच। जी हां दोस्तों आप बिलकुल सही सुन रहे हैं। विधानसभा स्पीकर नरेंद्र सिंह तोमर ने विजयपुर की चुनावी बिसात अपने हिसाब से तैयार करना शुरू कर दिया है और नीटू सिकरवार ने श्योपुर की ही एक तहसील में डेरा जमा लिया है। पिछले एपिसोड में ही आपसे मैंने कहा था कि मैं आपको विजयपुर विधानसभा के बारे में कुछ दिलचस्प बातें बताऊंगा जो अभी मैंने आपको बताया वो तो उसकी बानगी भर है। इससे भी ज्यादा दिलचस्प पहलू इस चुनाव के साथ जुड़ चुके हैं। यानी आप समझ लीजिए कि बीजेपी को राम निवास रावत को जिताना है या रावत को अपनी सीट बचाना है तो जमकर पापड़ बेलने पड़ेंगे।
बुदनी में कार्तिकेय को टिकट मिलेगा, इस पर सबकी निगाहें
मध्यप्रदेश की दो विधानसभा सीटें इन दिनों जबरदस्त सुर्खियों में हैं। एक है बुधनी विधानसभा सीट और दूसरी है विजयपुर विधानसभा सीट। बुदनी विधानसभा सीट के बारे में संक्षेप में आपको बता देता हूं। इस सीट से पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव जीता था। अब वो लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन चुके हैं। इसलिए उनकी सीट पर चुनाव होना है। इस सीट से क्या उनके बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान को टिकट मिल सकेगा। इस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। इस बारे में मैं विस्तार से चर्चा भी कर चुका हूं। उस एपिसोड की लिंक डिस्क्रिप्शन बॉक्स में है, आप दोबारा उसे देख सकते हैं। फिलहाल बुधनी पर ज्यादा डिटेल में बात न करते हुए हम चलते हैं राम निवास रावत की सीट पर। क्योंकि हम मोटे तौर पर ये मान सकते हैं कि बुधनी में हारना बीजेपी के लिए लगभग नामुमकिन हैं और वहां कोई खास चुनौती या असंतोष भी नहीं है।
विजयपुर का उपचुनाव किसी महाभारत से कम नहीं
दिक्कत है तो विजयपुर विधानसभा सीट पर। यहां दलबदलु राम निवास रावत चुनाव लड़ेंगे। वो लोकसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आ गए थे। राम निवास रावत पांच बार विधायक रहे हैं। वो युवा कांग्रेस से राजनीति में आए और फिर 1990 में पहली बार विधायक चुने गए। 1993 में वो दिग्विजय सिंह की कैबिनेट में भी मंत्री रहे। लगातार विजयपुर से ही चुनाव लड़ते रहे हैं। साल 2018 का चुनाव हार गए थे। 2019 में नरेंद्र सिंह तोमर को मुरैना लोकसभा सीट से चुनौती दी, लेकिन हार गए। 2023 में फिर चुनाव जीतने में कामयाब रहे और हाल ही में दलबदल कर बीजेपी का हिस्सा बने और अब मोहन कैबिनेट के सदस्य भी बन चुके हैं। ये तो है एक शॉर्ट रीकेप राम निवास रावत के सियासी सफर के बारे में। अब समझते हैं कि उनकी सीट विजयपुर में ऐसे कौन से सियासी समीकरण बन रहे हैं। जिनकी वजह से रावत की मुश्किलें बढ़ रही हैं और किसी जमाने में उनके धुर विरोधी रहे तोमर उनके सारथी बन गए हैं। वैसे बीजेपी के लिए विजयपुर का उपचुनाव वाकई किसी महाभारत से कम नहीं है। जहां अपने ही उसके दुश्मन बन बैठे हैं। कोई भरोसा नहीं कि आप कभी भी ये खबर सुन लें कि इस सीट से जुड़ा बीजेपी का दिग्गज नेता अब कांग्रेस नेता बन चुका है और टिकट हासिल कर चुनाव लड़ रहा है।
चलिए इस सीट से जुड़े कुछ सवाल तय करते हैं और फिर उनके जवाब पर चर्चा करते हैं...
- पहला सवाल- प्रदेश में हाशिए पर पहुंची कांग्रेस को क्या विजयपुर में प्रत्याशी तलाशना मुश्किल होगा।
- दूसरा सवाल- क्या बीजेपी के फेवर में सब कुछ होते हुए भी यहां जीत मुश्किल है।
- तीसरा सवाल- क्या भीतरघात की वजह से बीजेपी के लिए यहां सियासी जंग मुश्किल है।
अब आपको एक-एक कर इन सवालों के जवाब देता हूं। पहला सवाल क्या कांग्रेस के लिए इस सीट पर प्रत्याशी तलाशना मुश्किल है। इसका एक शब्द में जवाब है नहीं। अब इसका कारण भी बता देता हूं। वैसे तो कांग्रेस प्रदेश में अब तक के सबसे बुरे दौर में हैं। उसके बावजूद कांग्रेस का ये हाल नहीं है कि प्रत्याशी किसे बनाए यही न समझ आए।
- अभी तो इस सीट पर उपचुनाव की तारीख तय नहीं हुई है और कांग्रेस के एक कद्दावर नेता ने यहां सियासी तैयारी शुरू कर दी है। अटकलें तो ये भी हैं कि ये नेता अब तक एक करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च भी कर चुका है ताकि विजयपुर में जीत हासिल कर सके। ये नेता हैं सत्यपाल सिकरवार जिन्हें लोग नीटू सिकरवार के नाम से भी जानते हैं। नीटू सिकरवार बीजेपी से चोट खाए हुए हैं। उनके भाई सतीश सिकरवार के कांग्रेस में जाने के बाद बीजेपी ने उन्हें निष्कासित कर दिया था। उसके बाद वो भी कांग्रेस में एक्टिव हो गए। ताजा लोकसभा चुनाव मुरैना सीट से हारे हैं। यानी हार का जख्म अभी बड़ा ताजा है। अब नीटू सिकरवार विजयपुर में एक्टिव हैं। कांग्रेस उन्हें टिकट देगी या नहीं देगी ये कहा नहीं जा सकता, लेकिन उनकी सक्रियता दिन पर दिन बढ़ रही है।
- चुनौती तो नीटू सिकरवार के सामने भी है क्योंकि यहां से बीजेपी नेता रहे सीताराम आदिवासी भी रावत को चैलेंज कर रहे हैं। रावत के दलबदल के बाद वो अपनी ही पार्टी से नाराज चल रहे हैं। अटकलें हैं कि वो कभी भी कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। बस उन्हें कांग्रेस से टिकट मिलने की गारंटी भर मिलने की देर है। सीताराम आदिवासी ने ही रावत को 2018 के विधानसभा चुनाव में मात दी थी। उनका क्या इंपेक्ट होगा इसकी चर्चा हम तीसरे सवाल के जवाब में करेंगे। फिलहाल दूसरे सवाल का रुख करते हैं।
- बाजी बीजेपी के फेवर में ही दिख रही है। उसकी वजह है कि बीजेपी का शासन प्रशासन तंत्र पर दबदबा होना। दूसरा रावत खुद दमदार प्रत्याशी हैं और क्षेत्र में उनकी पकड़ है। अब तो मंत्री भी बन चुके हैं। फिर भी बीजेपी को जीत का डर सता रहा है। यही वजह है कि नरेंद्र सिंह तोमर यहां पर्दे के पीछे से एक्टिव हो गए हैं। असल में रावत के दलबदल के कारण ही नीटू सिकरवार को लोकसभा चुनाव में हार मिली और नरेंद्र सिंह तोमर समर्थित उम्मीदवार शिवमंगल सिंह तोमर को जीत हासिल हुई। इसलिए अब तोमर ने रावत की जीत का जिम्मा उठा लिया है और नीटू सिकरवार ने हर कीमत पर उन्हें हराने की कोशिश शुरू कर दी है। अगर नीटू सिकरवार की एंट्री नहीं होती तब भी शायद रावत की जीत आसान होती, लेकिन अब समीकरण अलग है।
नागर की नाराजगी का अंडरकरंट भारी पड़ सकता है
अब बात करते हैं भीतरघात पर। भीतरघात होने की संभावना पूरी है और इसमें हम नागर सिंह चौहान के फेक्टर को अवॉइड नहीं कर सकते। नागर सिंह चौहान वही विधायक हैं जो रावत को वन एवं पर्यारवण विभाग की कमान देने से खासे नाराज हैं। ये विभाग चौहान से लेकर ही रावत को दिया गया है। अब उनके बागी तेवरों को आलाकमान ने शांत तो कर दिया है, लेकिन अंदर ही अंदर गुस्सा सुलग रहा होगा तो उसका असर भी विजयपुर के चुनाव पर पड़ेगा। वैसे तो दोनों के क्षेत्र बहुत दूर-दूर हैं, लेकिन मसला मतदाताओं का है। नागर सिंह चौहान एक बड़े आदिवासी नेता हैं। उनकी पेठ भी इस वोट बैंक में काफी ज्यादा है। विजयपुर सीट पर आदिवासी वोटर्स अक्सर निर्णायक होते हैं। नागर की नाराजगी का अंडरकरंट यहां भारी पड़ सकता है।
इत्मीनान से विजयपुर का युद्ध जीतने के आसार कम ही हैं
दूसरा सीताराम आदिवासी भी इसी वोट बैंक के दम पर असंतोष जाहिर कर रहे हैं। सीताराम आदिवासी 2018 में यहां से जीते थे और इस बार भी सिर्फ 2149 मतों के अंतर से हारे हैं। सीताराम आदिवासी को कांग्रेस से टिकट नहीं भी मिलता है तो भी उनकी नाराजगी आदिवासी वोटर्स पर असर डालेगी। खासतौर से आदिवासी तबके से आने वाले उनके समर्थित कार्यकर्ताओं की नाराजगी का असर भी देखने को मिल सकता है। लिहाजा बीजेपी भीतरघात की संभावनाओं को बिलकुल दरकिनार नहीं कर सकती। कुल मिलाकर रावत उस सियासी रथ पर सवार हैं जिसकी तरफ बहुत से तीर निशाना साधे बैठे हैं। तोमर के रूप में उन्हें कुशल सारथी तो मिल गया है। उसके बाद भी इत्मीनान से युद्ध जीत लेने के आसार कम हैं। बाकि कांग्रेस का टिकट सिलेक्शन तय करेगा कि सियासी युद्ध किस ओर जाता है।
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