अब मेडिकल स्टोर्स पर नहीं दिखेंगे डिस्काउंट के लुभावने बोर्ड, एमपी फार्मेसी काउंसिल ने उठाया सख्त कदम

एमपी में अब मेडिकल स्टोर्स की दुकानों पर 10 से 80% तक छूट" वाले बड़े-बड़े बोर्ड नहीं दिखेंगे। एमपी फार्मेसी काउंसिल ने साफ किया है कि ऐसे डिस्काउंट बोर्ड अब गैरकानूनी माने जाएंगे। 

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Neel Tiwari
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Photograph: (The Sootr)

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BHOPAL. मध्यप्रदेश की सड़कों पर अब मेडिकल स्टोर की दुकानों पर "10% से 80% तक छूट" वाले बड़े-बड़े बोर्ड नहीं दिखेंगे। एमपी फार्मेसी काउंसिल ने स्पष्ट किया है कि ऐसे डिस्काउंट बोर्ड अब गैरकानूनी माने जाएंगे। इसके लिए फार्मासिस्ट का पंजीकरण भी रद्द किया जा सकता है।

काउंसिल ने दिया 15 दिन का अल्टीमेटम

राज्यभर के फार्मासिस्टों और मेडिकल स्टोर संचालकों को निर्देश जारी किया गया है कि 15 दिनों के भीतर अपनी दुकानों से डिस्काउंट बोर्ड हटा लें। ऐसा न करने पर फार्मेसी अधिनियम 1948 और फार्मेसी प्रैक्टिस रेगुलेशन 2015 के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी। फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष संजय जैन और रजिस्ट्रार भाव्या त्रिपाठी ने चेतावनी दी है कि नियम तोड़ने पर पंजीकरण निलंबित या रद्द किया जा सकता है।

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क्यों उठाया गया ये कदम?

MP Pharmacy Council के मुताबिक, कई बड़े मेडिकल स्टोर सोशल मीडिया और होर्डिंग्स के माध्यम से भारी छूट का प्रचार कर रहे थे। इससे ग्राहक तो खिंचे आते थे, लेकिन छोटे दुकानदारों की दुकानदारी पर असर पड़ रहा था। साथ ही, कई बार सस्ते दाम पर नकली दवाएं बेचे जाने की शिकायतें भी आ रही थीं।

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4 पॉइंट्स में समझें पूरी खबर

👉फार्मेसी काउंसिल ने फार्मासिस्टों और मेडिकल स्टोर संचालकों को 15 दिनों में "छूट" वाले बोर्ड हटाने का आदेश दिया है। ऐसा न करने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। इसमें पंजीकरण रद्द करने की भी संभावना है।

 👉 फार्मेसी काउंसिल का मानना है कि छूट के नाम पर कई मेडिकल स्टोर नकली दवाएं बेच रहे थे, जिससे ग्राहकों की सेहत को खतरा हो सकता था। काउंसिल का कहना है कि दवाओं पर छूट देने से गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है और अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलता है।

 👉 यह कदम छोटे मेडिकल दुकानदारों के लिए राहत का कारण बनेगा क्योंकि बड़े स्टोरों द्वारा भारी छूट देने से उनकी बिक्री पर असर पड़ रहा था। काउंसिल ने इसे अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा और प्रतिस्पर्धा अधिनियम 2002 की धारा 4 का उल्लंघन बताया है।

👉अब मेडिकल स्टोरों को सोशल मीडिया पर छूट का प्रचार करने से बचने और फार्मेसी कानूनों का पालन करने की आवश्यकता होगी। दुकानदारों को अब केवल वैध और उचित डिस्काउंट देने की अनुमति होगी, लेकिन प्रचार के रूप में नहीं।

अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा पर लगाम लगाने की कोशिश

छोटे मेडिकल दुकानदारों को राहत मिलेगी क्योंकि काउंसिल ने इस तरह के छूट वाले प्रचार को अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा बताया है। यह प्रतिस्पर्धा अधिनियम 2002 की धारा 4 का उल्लंघन भी है। काउंसिल का मानना है कि दवाओं पर छूट के नाम पर मार्केटिंग नहीं, बल्कि विश्वास और गुणवत्ता होनी चाहिए। अब इस पर चर्चा चल रही है कि यदि मेडिकल स्टोर में डिस्काउंट के नाम पर गलत या फर्जी दवाएं बिक रही थीं, तो उस पर कार्यवाही क्यों नहीं की गई। यदि दवाएं सही थीं, तो उपभोक्ता को दी जा रही बड़ी छूट से वंचित क्यों किया जा रहा है।

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एमपीसीडीए और केमिस्ट संगठन भी समर्थन में

MP केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन (एमपीसीडीए) ने इस निर्णय को ऐतिहासिक बताया है। एसोसिएशन ने कहा है कि महाराष्ट्र, पंजाब, गोवा, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर और अब मध्यप्रदेश भी फार्मेसी नियमों को सख्ती से लागू कर रहा है।

भोपाल केमिस्ट एसोसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. जितेंद्र धाकड़ ने कहा कि "छूट के नाम पर कुछ मेडिकल स्टोर नकली दवाएं बेच रहे थे, जो मरीज की जान से खिलवाड़ है।" उन्होंने साफ किया कि जो सामान्य डिस्काउंट पहले दिया जा रहा था, वह जारी रहेगा, लेकिन उसका प्रचार करके भीड़ खींचने की मनाही होगी।

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क्या होगा असर?

इस कदम से बाजार में पारदर्शिता बढ़ेगी, नकली दवाओं की आपूर्ति पर अंकुश लगेगा और छोटे मेडिकल दुकानदारों को भी बराबरी का मौका मिलेगा। वहीं, आम मरीजों को भी गुणवत्ता परक दवाएं समय पर और उचित कीमत पर मिल सकेंगी। लेकिन इसके साथ ही यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या यह भारी डिस्काउंट में बिक रही दवाइयां नकली थी? अगर ऐसा था, तो इन मेडिकल स्टोर्स पर कार्यवाही करने की बजाय इस आदेश को जारी करने का औचित्य किसी को समझ में नहीं आ रहा है।

अब क्या करना होगा दुकानदारों को?

  • 15 दिनों में डिस्काउंट बोर्ड हटा लें
  • सोशल मीडिया पर छूट के प्रचार से बचें
  • फार्मेसी कानूनों का पालन करें
  • अनैतिक प्रतिस्पर्धा या ग्राहक भ्रमित करने वाले तरीके न अपनाएं

दवा कोई आम प्रोडक्ट नहीं, यह जीवन से जुड़ी जरूरत है। फार्मेसी काउंसिल का यह फैसला ग्राहकों की सुरक्षा और बाजार की नैतिकता के लिहाज से जरूरी कदम प्रतीत होता है। लेकिन यह सवाल खड़ा कर रहा है कि जब मेडिकल स्टोर दवाओं पर 15 से 30% तक का डिस्काउंट दे सकते हैं, तो उन्हें रोकने के पीछे क्या कारण है। क्या यह दवाओं को महंगे दाम में बेचने की लॉबी के दबाव में लिया गया फैसला है? क्या भविष्य में सभी दवाओं का दाम 15 से 30% तक के डिस्काउंट में किया जाएगा? यह एक बड़ा सवाल है जो जनता के जहन में उठ रहा है।

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