बिना सड़क, बिना पानी, लेकिन शराब की सुविधा दुरुस्त: परशुराम बस्ती की अनकही पीड़ा

बस्ती में आने-जाने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं है। बरसात के मौसम में कीचड़ से लथपथ गलियों में चलते समय बच्चे और बुज़ुर्ग अक्सर फिसल जाते हैं, लेकिन प्रशासन की तरफ से कोई सुनवाई नहीं होती।

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Neel Tiwari
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No roads no water good liquor
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MP NEWS: मध्य प्रदेश के जबलपुर के परशुराम बस्ती में न तो बुनियादी सुविधाएं हैं, न ही कोई विकास की योजना पहुंच पाई है। यहां पर आश्चर्यजनक रूप से शराब की दुकान खोल दी गई है। यह शराब दुकान अब स्थानीय महिलाओं और छात्राओं के लिए एक दहशत का कारण बन चुकी है। स्कूल जाती बच्चियों के सामने जब नशे में धुत लोगों का जमावड़ा लगता है, तो उनका मनोबल टूटता है, आत्मविश्वास डगमगाता है और अभिभावकों की चिंता हर दिन बढ़ती जाती है।

400 से ज्यादा लोग, एक हैंडपंप

परशुराम बस्ती में करीब 400 से 500 लोग निवास करते हैं, लेकिन पूरी बस्ती की जलापूर्ति का एकमात्र स्रोत केवल एक पुराना हैंडपंप है। गर्मियों में जब यह हैंडपंप सूखने लगता है, तो लोगों को पानी के लिए दूर-दराज की दूसरी कॉलोनियों तक जाना पड़ता है। ‘हर घर नल’ योजना, जिसका व्यापक प्रचार सरकार द्वारा किया गया, आज तक इस बस्ती तक नहीं पहुंच पाई। जल जीवन मिशन की यह विफलता यहां के हर घर की हकीकत में झलकती है, जहां महिलाएं बाल्टियों में पानी भरने के लिए कतार में खड़ी रहती हैं-कभी-कभी झगड़े तक की नौबत आ जाती है।

 

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न सड़क, न रोशनी, नशे की दुकान चालू

बस्ती में आने-जाने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं है। बरसात के मौसम में कीचड़ से लथपथ गलियों में चलते समय बच्चे और बुज़ुर्ग अक्सर फिसल जाते हैं, लेकिन प्रशासन की तरफ से कोई सुनवाई नहीं होती। रात को अंधेरे में बस्ती डूब जाती है, क्योंकि स्ट्रीट लाइट जैसी बुनियादी सुविधा यहां आज तक नहीं पहुंची। लेकिन हैरानी की बात यह है कि ऐसे अंधकारमय माहौल में भी सरकार ने शराब की दुकान चलाने की अनुमति दी है, जो दिन ढलते ही अराजकता और असुरक्षा का केंद्र बन जाती है।

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शराबियों के जमघट से सहमी बच्चियां, बेबस मां

जब हमारी टीम ने बस्ती का दौरा किया, तो एक बच्ची ने कैमरे के सामने आंखों में डर लिए हुए बताया कि वह स्कूल जाने से घबराती है, क्योंकि दुकान के बाहर खड़े शराबियों की फब्तियों से उसका मनोबल टूट जाता है। एक मां ने बताया कि उन्होंने कई बार स्कूल छोड़ने का विचार किया, क्योंकि रोज़ इस डर में बच्चियों को बाहर भेजना संभव नहीं रह गया है। कई लड़कियों ने पढ़ाई छोड़ दी है, कुछ ने स्कूल जाना कम कर दिया है और कुछ मानसिक तनाव का शिकार हो रही हैं। यह हालात एक लोकतांत्रिक समाज में शर्मनाक हैं।

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विकास के नाम पर छलावा, पीढ़ियों से उपेक्षा

स्थानीय महिलाओं का कहना है कि वे वर्षों से नेताओं और अधिकारियों से गुहार लगाती आ रही हैं कि बस्ती में सड़क, पानी, बिजली, स्कूल और स्वास्थ्य की सुविधा मिले। लेकिन हर बार केवल आश्वासन मिला और वादे अधूरे रह गए। बुजुर्ग महिलाओं ने बताया कि उनके जीवन का बड़ा हिस्सा इसी बस्ती में बीता, लेकिन किसी ने उनकी पीड़ा नहीं सुनी। अब उनके बच्चे भी उन्हीं समस्याओं से जूझ रहे हैं, जिससे वे दशकों पहले जूझती थीं। यह सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि एक पूरे समुदाय के सपनों की हत्या है।

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बस्तीवासियों की एक स्वर में मांग

परशुराम बस्ती के निवासियों की एकमात्र मांग है कि इस बस्ती से शराब की दुकान को तुरंत हटाया जाए और इसके स्थान पर बच्चों की शिक्षा, महिलाओं की सुरक्षा और आम जनजीवन की सुविधा के लिए कोई उपयोगी केंद्र खोला जाए। वे चाहते हैं कि बस्ती में पीने के पानी की व्यवस्था हो, सड़कें पक्की हों, प्रकाश की व्यवस्था हो, और सबसे महत्वपूर्ण यह की उनकी आवाज़ को कोई सुने। यह मांग किसी राजनैतिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि अपने और अपने बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए की जा रही है।

एक बस्ती की पीड़ा, जो अब चुप नहीं रहेगी

परशुराम बस्ती की यह कहानी केवल जबलपुर की नहीं है, बल्कि हर उन बस्तियों की आवाज़ है जिन्हें विकास के नाम पर हर बार ठगा गया है। जहां बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं हो सकीं, वहां शराब बेचना सरकार की संवेदनहीनता को दर्शाता है। अब वक्त आ गया है कि इन बस्तियों की आवाज़ को मुख्यधारा में लाया जाए, ताकि भविष्य की पीढ़ियां बर्बादी नहीं, बल्कि सुरक्षा, शिक्षा और सम्मान की जिंदगी जिएं।

 

 

 

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