मध्यप्रदेश के बहुचर्चित और विवादित नर्सिंग कॉलेज घोटाला मामले में बड़ा गोलमाल सामने आया है। आरोप है कि दोयम दर्जे के आउटसोर्सिंग कर्मचारी नर्सिंग कॉलेजों को मान्यता दिलाने का काम कर रहे थे। बेशर्मी से पूरा रैकेट चलाया जा रहा था। हैरानी की बात ये है कि जिस नर्सिंग रजिस्ट्रेशन काउंसिल को स्वशासी संस्था बताया गया, वो किसी निजी फर्म की तरह काम कर रही थी। किसी निजी कंपनी की तरह ठेके पर ऐसे कर्मचारियों को कॉलेजों को मान्यता देने का काम सौंपा गया था, जिनकी योग्यता तक परखने की जहमत तक किसी ने नहीं उठाई।
विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस ने उठाया मुद्दा
आरोप है कि हाउस कीपिंग और सिक्योरिटी एजेंसी के 56 आउटसोर्स कर्मचारी कॉलेजों को मान्यता दिला रहे थे, जिनकी शैक्षणिक योग्यता के दस्तावेज तक काउंसिल के पास नहीं थे। ये खुलासा तब हुआ, जब मामले के व्हिसिल ब्लोअर और लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई। दरअसल, मध्यप्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस ने नर्सिंग घोटाले का मुद्दा उठाया और सीबीआई जांच के बीच घोटाले का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने विधानसभा में तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग पर राष्ट्रपति को गुमराह करने के आरोप लगाए थे।
ये खबर भी पढ़ें...
BJP नेता भार्गव बोले- मैं 15000 दिन से विधायक, रावत को किस मजबूरी में मंत्री बनायाneel
इस तरह समझिए पूरा माजरा
दरअसल, हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने काउंसिल के लिए नियमित कर्मचारियों के 37 पद मंजूर किए थे, लेकिन उनकी तैनाती नहीं की गई। सिर्फ स्वास्थ्य विभाग के पदेन अध्यक्ष और रजिस्ट्रार की ओर से बनाई गई नर्स ट्यूटर और स्टाफ नर्स के अलावा कोई नियमित कर्मचारी नहीं था। गड़बड़ी की जिम्मेदारी तय न हो पाए, इसलिए नियमित कर्मचारी काउंसिल को नहीं दिए गए। पदेन अध्यक्ष और रजिस्ट्रार को आउटसोर्स पर कर्मचारी रखने की छूट दी गई थी। 2022 में तत्कालीन रजिस्ट्रार ने वैष्णव हाउस कीपिंग एंड सिक्योरिटी के नागेंद्र मिश्रा से आउटसोर्स पर कर्मचारी रखने का अनुबंध किया था।
व्हिसिल ब्लोअर ने बताया पूरा खेल
हाईकोर्ट में पेश जवाब में अनुबंध से लेकर कर्मचारियों की तैनाती तक में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है, जिसकी कॉपी जनहित याचिका लगाने वाले व्हिसिल ब्लोअर और लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल को भी उपलब्ध कराई गई है। द सूत्र से खास बातचीत में विशाल ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। उन्होंने बताया कि नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता के मामले में जिम्मेदारी से बचने के लिए अयोग्य कर्मचारियों को रखा गया। इसी पर आपत्ति जताकर विशाल ने हाईकोर्ट में कुछ अहम तथ्य पेश किए हैं।
56 कर्मचारियों को आउटसोर्स पर रखा
दरअसल, नर्सिंग काउंसिल में कॉलेजों के पंजीयन, मान्यता, सत्यापन और परीक्षा जैसे कामों के लिए उच्च योग्यता की जरूरत थी। अब आरोप है कि आउटसोर्स के 56 कर्मचारियों की योग्यता के भी मापदंड तय नहीं किए गए। रजिस्ट्रार ने ये तक नहीं बताया कि स्टाफ कितना पढ़ा लिखा होना चाहिए। उन्होंने कलेक्टर दर पर दिहाड़ी कर्मचारियों की मांग की और सबसे हैरानी की बात ये है कि अनुबंध ही श्रमिक श्रेणी का था। वहीं, अनुबंध की शर्तों में कर्मचारी का ईमानदार होना भी शामिल था, लेकिन इसके मापदंड तक तय नहीं थे। फिर भी रजिस्ट्रार ने बताया कि स्वशासी संस्था में कई काम गोपनीय होते हैं, लिहाजा, पुलिस की ओर से बना कर्मचारियों का चरित्र प्रमाण पत्र अनिवार्य किया गया, लेकिन पुलिस चरित्र प्रमाण पत्र जारी नहीं करती, सिर्फ व्यक्ति के अपराध में शामिल नहीं होने का सत्यापन करती है। ईमानदारी कैसे तय होगी, यह अनुबंध में नहीं बताया गया।
फ्लैश बैक: 2020 में पहली बार सामने आया फर्जीवाड़ा
मध्यप्रदेश में सबसे पहले 2020 में ये बात सामने आई थी कि राज्य नर्सिंग काउंसिल ने ऐसे कॉलेजों को मान्यता दी है, जो या तो केवल कागजों पर चल रहे थे या किराए के एक कमरे में चल रहे थे। कई नर्सिंग कॉलेज किसी अस्पताल से संबद्ध नहीं थे। मामले को लेकर हाईकोर्ट में याचिका लगाई गईं। जिनकी सुनवाई में कोर्ट ने प्रदेश के सभी 375 नर्सिंग कॉलेजों की जांच सीबीआई को सौंप दी। अक्टूबर 2022 में हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने जांच शुरू की।
पूरी की पूरी दाल ही काली
सीबीआई की शुरुआती जांच में कई नर्सिंग कॉलेजों में बड़े स्तर पर अनियमितताएं सामने आईं। ये कॉलेज अनिवार्य मानकों को पूरा नहीं करते थे। फिर भी मंजूरी पाने में कामयाब रहे। हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने निरीक्षण दल बनाए, जिसमें उसके अपने अधिकारी, नर्सिंग स्टाफ और भूमि रिकॉर्ड अधिकारी शामिल थे। अब व्हिसल ब्लोअर विशाल बघेल की याचिका के बाद दोयम दर्जे के आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की ओर से नर्सिंग कॉलेजों को मान्यता दिलाने का खुलासा हुआ है। यानी यहां दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी की पूरी दाल ही काली नजर आती है।