मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने नर्सिंग कॉलेजों में फर्जीवाड़े और मान्यता विवाद से जुड़ी जनहित याचिकाओं पर बड़ा निर्देश जारी किया है। लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल द्वारा दायर जनहित याचिका और अन्य नर्सिंग मामलों की सुनवाई जस्टिस संजय द्विवेदी और जस्टिस अचल कुमार पालीवाल की विशेष पीठ के समक्ष हुई।
पुराने नर्सिंग कॉलेजों को मिली राहत
सुनवाई के दौरान उन नर्सिंग कॉलेजों के लिए राहत भरी खबर आई है, जो 2013 से पहले से संचालित हैं लेकिन जिनके पास 100 बिस्तरों वाला खुद का अस्पताल नहीं है। इन कॉलेजों ने याचिका के माध्यम से अपनी दलील रखी थी कि पहले उन्हें सरकारी अस्पताल से मिली संबद्धता के आधार पर मान्यता दी जाती थी, लेकिन नए नियमों के तहत उनसे मान्यता के लिए आवेदन करने से रोक दिया गया है। उच्च न्यायालय ने सरकार की दलीलों को सुनते हुए निर्देश दिया कि सत्र 2024-25 के लिए इन कॉलेजों को सरकारी अस्पताल की संबद्धता के आधार पर मान्यता प्रक्रिया में शामिल किया जाए। यह आदेश नर्सिंग शिक्षण संस्थान मान्यता नियम 2018 के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए दिया गया है।
रजिस्ट्रार पर लगे आरोपों की जांच के निर्देश
याचिकाकर्ता ने नर्सिंग काउंसिल की रजिस्ट्रार अनीता चांद पर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिसमें दावा किया गया है कि उन्होंने बिना उपयुक्तता के कई नर्सिंग कॉलेजों को निरीक्षण के दौरान उचित बताकर मान्यता प्रदान कराई है। इस मामले में हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि रजिस्ट्रार के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच कर त्वरित कार्रवाई की जाए।
नियमों में ना हो कोई बदलाव
हाईकोर्ट ने महाधिवक्ता को मौखिक रूप से निर्देशित किया कि जब तक यह जनहित याचिका लंबित है, सरकार द्वारा नर्सिंग और पैरामेडिकल पाठ्यक्रमों की संबद्धता के नियमों में कोई बदलाव नहीं किया जाए। अदालत के इस निर्देश से यह स्पष्ट हो गया है कि सरकार द्वारा अधिनियम में संशोधन कर नर्सिंग और पैरामेडिकल कोर्स की संबद्धता का अधिकार क्षेत्रीय विश्वविद्यालयों को सौंपने का निर्णय सत्र 2024-25 में लागू नहीं हो सकेगा। हाईकोर्ट का यह आदेश नर्सिंग शिक्षा क्षेत्र में सुधार की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। पुराने नर्सिंग कॉलेजों को अस्थायी राहत और रजिस्ट्रार के खिलाफ जांच के निर्देश इस मामले में सख्ती का संकेत देते हैं।
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