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सुप्रीम कोर्ट। Photograph: (the sootr)
मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27% आरक्षण दिए जाने से संबंधित विवाद एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंच गया है। ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन के दिल्ली राज्य के प्रवक्ता ने हाईकोर्ट के हालिया आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए कैविएट याचिका दायर की है। इस मामले में सरकार की निष्क्रियता, ओबीसी अभ्यर्थियों की संभावित मुश्किलें और आगामी कानूनी लड़ाई को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।
क्या है मामला?
मध्य प्रदेश में ओबीसी को 27% आरक्षण दिए जाने को लेकर लंबे समय से कानूनी विवाद चल रहा है। उच्च न्यायालय में याचिका क्रमांक 18105/2021 के तहत इस मुद्दे पर सुनवाई हो रही थी, जिसमें 28 जनवरी 2025 को हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश पारित किया। इस आदेश के कारण 87%-13% के भर्ती फार्मूले और 27% ओबीसी आरक्षण को लेकर नए सिरे से कानूनी दुविधा पैदा हो गई है।
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याचिकाकर्ता कर सकते है एसएलपी दायर
ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि हाई कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद याचिकाकर्ता जल्द ही इस आदेश को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन (SLP) दायर कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है, तो आरक्षण का मामला एक बार फिर लंबी कानूनी प्रक्रिया में उलझ सकता है, जिससे हजारों ओबीसी अभ्यर्थियों का भविष्य प्रभावित होगा। यही वजह है कि ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन ने पीड़ित अभ्यर्थियों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में केवियट दाखिल करने का निर्णय लिया, ताकि बगैर उनकी दलील सुने सुप्रीम कोर्ट कोई एकतरफा आदेश न दे।
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सरकार की मंशा पर उठे सवाल
मध्य प्रदेश सरकार की ओर से इस महत्वपूर्ण मामले में अब तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया, जिसके कारण ओबीसी समुदाय में सरकार की मंशा को लेकर सवाल उठ रहे हैं। खासकर हाईकोर्ट द्वारा 4 अगस्त 2023 को पारित स्टे आदेश के विरुद्ध मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कोई अपील नहीं की थी। इसके परिणामस्वरूप, हजारों ओबीसी अभ्यर्थियों की भर्ती प्रक्रियाएँ ढप पड़ी हैं और कई सरकारी नौकरियों में उनकी नियुक्तियां रोक दी गईं। हाईकोर्ट द्वारा 28 जनवरी 2025 को पारित अंतिम आदेश के बावजूद भी राज्य सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। यह तब हुआ जब ओबीसी आरक्षण के लिए नियुक्त विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने सरकार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में तत्काल अपील दायर करने का सुझाव दिया था। बावजूद इसके, राज्य सरकार और महाधिवक्ता ने इस पर कोई सक्रियता नहीं दिखाई। सरकार की इस ढुलमुल नीति के कारण ओबीसी समुदाय में रोष बढ़ रहा है, और इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक गलियारों में भी चर्चाएं तेज हो गई हैं।
ओबीसी संगठन पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
सरकार की निष्क्रियता को देखते हुए, ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन ने इस मामले को खुद सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने का फैसला किया। इस संबंध में दिल्ली में स्थित एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (AOR) संदीप कुमार सेन के माध्यम से 31 जनवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट में कैवियट दायर कर दी गई।
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एक तरफा फैसले से बचने दायर हुई कैवियट
कैवियट एक कानूनी प्रक्रिया है, जिसके तहत यदि इस मामले में कोई भी पक्ष सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन (SLP) दायर करता है, तो बिना ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन और पीड़ित अभ्यर्थियों की बात सुने कोई भी एकतरफा फैसला नहीं दिया जा सकता। इस कदम को ओबीसी कैंडीडेट्स की ओर से एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि आरक्षण के मुद्दे पर किसी एक पक्ष को नुकसान ना उठाना पड़े।
होल्ड अभ्यर्थियों से अपील
ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन ने उन सभी अभ्यर्थियों से अपील की है, जिनकी भर्तियाँ आरक्षण विवाद के कारण रुकी हुई हैं। संगठन ने सुझाव दिया है कि वे सुप्रीम कोर्ट में अपनी ओर से भी हस्तक्षेप याचिका (Intervention Application) दायर करें, ताकि वे इस कानूनी लड़ाई का प्रत्यक्ष हिस्सा बन सकें
सभी से सक्रिय भागीदारी की अपील
इसके अलावा, संगठन ने ट्रांसफर प्रकरणों में भी सक्रिय भागीदारी की अपील की है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि ओबीसी आरक्षण से संबंधित कोई भी केस किसी अन्य कोर्ट में स्थानांतरित होता है, तो वहाँ भी ओबीसी पक्ष को अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होगी। ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन का मानना है कि यदि सुप्रीम कोर्ट में इस प्रकरण की प्रभावी पैरवी की जाती है, तो इससे ओबीसी आरक्षण से जुड़े विवादों का समाधान हो सकता है और भर्ती प्रक्रियाओं पर लगी रोक हट सकती है।
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अब सुप्रीम कोर्ट पर टिकी सबकी निगाहें
अब इस मामले में सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं। यदि ओबीसी अभ्यर्थी और संगठन प्रभावी हस्तक्षेप कर पाते हैं, तो आरक्षण व्यवस्था को लेकर एक महत्वपूर्ण कानूनी निर्णय सामने आ सकता है।
हालांकि, यह भी देखा जाना बाकी है कि मध्य प्रदेश सरकार अब भी निष्क्रिय बनी रहेगी या सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से अपना पक्ष रखेगी। यदि सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस प्रकरण को सही तरीके से प्रस्तुत नहीं कर पाती, तो ओबीसी अभ्यर्थियों को बड़ा नुकसान हो सकता है।
इस मुद्दे पर कमलनाथ ने सरकार की नियत पर पहले ही सवाल खड़ा कर दिया है। अब अन्य राजनीतिक दलों की भी प्रतिक्रिया आ सकती है, क्योंकि ओबीसी आरक्षण से जुड़ा मामला एक बड़ा चुनावी मुद्दा भी बन सकता है। अब सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण को लेकर कोई बड़ा फैसला देता है या सरकार आखिरी मौके पर अपनी रणनीति बदलती है ये सभी सवाल आने वाले दिनों में साफ हो पाएंगे।
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