द सूत्र अभियान : शिवराज सरकार में वन टाइम फीस का आदेश आया, देवड़ा ने नई नीति की बात कही... पर नतीजा जीरो

हर बार बजट में पैकेज और योजनाओं की घोषणा होती है, पर इनका दायरा सिर्फ फाइलों में सिमटकर रह जाता है। युवाओं को केवल कोरे आश्वासन और झूठे दिलासे मिलते हैं, जबकि वे सरकार से राहत की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

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MOHAN
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रोजगार के मामले में सरकारें भले आंकड़े पेश करके अपनी पीठ थपथपाएं, लेकिन धरा पर बेरोजगारी जस की तस है। हर बार बजट में पैकेज और योजनाओं की घोषणा होती है, पर इनका दायरा सिर्फ फाइलों में सिमटकर रह जाता है। युवाओं को केवल कोरे आश्वासन और झूठे दिलासे मिलते हैं, जबकि वे सरकार से राहत की उम्मीद लगाए बैठे हैं। 
140 करोड़ की भारी भरकम आबादी वाले देश में इन दिनों वन नेशन, वन इलेक्शन की बातें हो रही हैं। इस बीच 'द सूत्र' मध्यप्रदेश के लिए 'वन टाइम फीस' का मुद्दा लेकर आया है। यह युवाओं की सबसे बड़ी मांग है। युवा तरुणाई को साल में जितनी परीक्षाएं देनी होती हैं, उतनी बार परीक्षा फीस देनी होती है, जबकि होना यह चाहिए कि सरकार उनसे सिर्फ एक बार फीस ले। 

शिवराज सरकार में जारी हुआ था आदेश

मध्यप्रदेश में वन टाइम फीस की दिशा में शिवराज सरकार में कदम बढ़े थे। सरकार ने 20 अप्रैल 2023 को आदेश जारी कर वन टाइम फीस लेने का आदेश जारी किया था। इसमें कहा गया कि कर्मचारी चयन मंडल यानी ईएसबी के माध्यम से होने वाली सभी परीक्षाओं में वन टाइम परीक्षा शुल्क और रजिस्ट्रेशन की सुविधा दी जाए। चुनावी समर को देखते हुए यह आदेश सिर्फ एक साल के लिए लागू किया गया, लेकिन हकीकत में यह चुनावी ढकोसला ही साबित हुआ।  

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वन टाइम फीस की उठी मांग

युवाओं का कहना है कि वे सरकारी नौकरियां की तैयारी में अपने गांव, कस्बे और शहर से भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर जैसे बड़े शहरों में जाते हैं। वहां रहने-खाने का खर्च पहले ही उनकी आर्थिक स्थिति से बाहर होता है। फिर अलग-अलग परीक्षाओं के लिए हर बार फीस देना उन्हें भारी पड़ता है। केंद्र सरकार की वन नेशन, वन इलेक्शन की कवायद के बीच राज्य की डॉ.मोहन यादव की सरकार को 'वन टाइम फीस' की दिशा में काम करना चाहिए, ताकि युवाओं को राहत मिले।  

वित्त मंत्री ने बजट में किया था ऐलान 

आपको बता दें, डॉ. मोहन सरकार में वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने अपने बजट भाषण में भी इस बात का जिक्र किया था। वित्त मंत्री का कहना था कि सरकारी नौकरी में नियुक्ति की चयन परीक्षा के लिए प्रदेश के युवाओं द्वारा जमा किए जाने वाले आवेदन शुल्क के भार को कम करने के लिए राज्य सरकार द्वारा एक नई नीति बनाई जाएगी। 3 जुलाई को पेश हुए बजट के बाद अब तक तीन महीने बीत चुके हैं, पर इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ है। 

नाम बदल रहे, पर ढर्रा पुराना

मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरी में सरकार के स्तर पर शुरू से ही ढुलमुल रवैया है। परीक्षा एजेंसी का नाम बदल रहा है, पर ढर्रा पुराना बना हुआ है। आज का ईएसबी पहले व्याव​सायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापमं हुआ करता था। घोटाला सामने आया तो इसका नाम प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड कर दिया गया। फिर बात यहां भी नहीं बनी तो कर्मचारी मंडल मंडल यानी ईएसबी कर दिया। पहले ईएसबी का कामकाज तकनीकी शिक्षा विभाग देखता था। अब इसे सामान्य प्रशासन विभाग के अधीन कर दिया गया है। 

400 रुपए से 1200 रुपए तक फीस

आंकड़े देखें तो हैरानी होती ​है कि सरकार बेरोजगारों से कितनी भारी भरकम फीस वसूल रही है। इसे लेकर पूर्व विधायक व कांग्रेस नेता पारस सकलेचा सवाल खड़े करते हैं। वे कहते हैं, सरकार बेरोजगारों से एक परीक्षा के लिए 400 रुपए से लेकर 1200 रुपए तक वसूल रही है, जबकि होना यह चाहिए कि सरकार अपने यहां अच्छे अधिकारी-कर्मचारियों के चयन में स्वयं पूरा खर्च उठाए। वहीं, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार वन टाइम फीस लेकर भी युवाओं को बड़ी राहत दे सकती है। 

द सूत्र का अभियान जारी रहेगा

द सूत्र अपनी जन सरोकार वाली पत्रकारिता की दिशा में आगे बढ़ते हुए लगातार युवाओं की मांग उठाता रहा है। वन टाइम फीस का अभियान भी हमारी इसी कड़ी का हिस्सा है। आप भी 'द सूत्र' के अभियान का हिस्सा बन सकते हैं। आप अपनी बात हमें मोबाइल नंबर 9827829141 पर वॉट्सऐप कर सकते हैं। आप हमें वीडियो बनाकर भेज सकते हैं। लिखकर अपनी पीड़ा जाहिर कर सकते हैं। हम आपकी बात सरकार के उचित मंच तक पहुंचाएंगे।

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