पेंगोलीन के 15 शिकारियों को 3-3 साल का सश्रम कारावास, जज ने कविता से दिया जीव संरक्षण का संदेश

मध्य प्रदेश के कटनी जिले में पेंगोलीन के शिकार मामले में 15 आरोपियों को 3 साल की सश्रम कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई गई। यह मामला 2016 का है, जब वन विभाग ने पेंगोलीन के स्केल बरामद किए थे।

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Neel Tiwari
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Photograph: (THESOOTR)

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मध्य प्रदेश के कटनी जिले की ढीमरखेड़ा तहसील न्यायालय में शुक्रवार 25 जुलाई को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया, जिसने न सिर्फ वन्य जीव संरक्षण की दिशा में बड़ा संदेश दिया, बल्कि न्यायपालिका की संवेदनशील सोच को भी उजागर किया।

न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी सुश्री पूर्वी तिवारी ने पेंगोलीन का शिकार करने वाले 15 आरोपियों को 3-3 साल के सश्रम कारावास और कुल 3.80 लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई।

खास बात यह रही कि यह फैसला न्यायाधीश ने अपने जन्मदिन पर सुनाया और फैसले के अंत में एक कविता की पंक्तियों के जरिए समाज को गहरा संदेश भी दिया।

इंटर स्टेट शिकारियों की खुली पोल

यह मामला साल 2016 का है, जब कटनी वन मंडल के अंतर्गत ढीमरखेड़ा के सैलारपुर बीट में वन विभाग की टीम ने इंदल सिंह गौड़ नामक व्यक्ति के पास से करीब 3 किलो पेंगोलीन स्केल (सालू के छिलके) बरामद किए थे। पूछताछ में उसने कबूल किया कि उसने पेंगोलीन का शिकार कर उसके शरीर को उबालकर स्केल अलग किए हैं।

इंदल की निशानदेही पर 14 अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, जो मध्य प्रदेश के कटनी, पन्ना, टीकमगढ़ और उत्तर प्रदेश के झांसी से पकड़े गए थे। यह गिरोह अंतर्राज्यीय स्तर पर दुर्लभ वन्य प्राणियों का शिकार और अवैध व्यापार करता था।

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सभी आरोपियों को मिली जेल और जुर्माना

न्यायालय ने जिन 15 आरोपियों को दोषी करार दिया उनमें इंदल सिंह, रामसिंह, संतान, सुरेन्द्र उर्फ मुण्डा, अजीत, दरयाल, राजू, जयसिंह, प्रताप, मंतू, राजेन्द्र, गुमान, मलखान, शोभरन और राजेन्द्र कुचबंदिया शामिल हैं। सभी को वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम के तहत 3 वर्ष सश्रम कारावास और 10 हजार से 40 हजार रुपये तक जुर्माने की सजा दी गई। इस मामले की पैरवी विशेष लोक अभियोजन मंजुला श्रीवास्तव एवं एडीपीओ विनोद पटेल द्वारा की गई।

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फैसले में झलकी संवेदनशीलता

फैसले में जज पूर्वी तिवारी ने लिखा कि "भारत वन्य जीव संपदा के मामले में अत्यंत धनी राष्ट्र है, लेकिन आज कई दुर्लभ प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं। अगर अब भी हम नहीं चेते, तो यह नुकसान कभी पूरा नहीं होगा।"

जज ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायालयों को अब केवल ‘साक्ष्य आधारित न्याय’ तक सीमित न रहकर प्राकृतिक संसाधनों और वन्य जीवों की रक्षा के मिशन में भागीदार बनना चाहिए।

कविता की पंक्तियों से दिया दिल छू लेने वाला संदेश...

न्यायाधीश तिवारी ने अपने फैसले के अंत में जो कविता की पंक्तियां लिखी, उसने सबका ध्यान खींचा-

हम सभी की आत्मा पर ये बोझ निरंतर बढ़ रहा है॥
बावजूद निरीह प्राणियों की सुरक्षा के लिए कौन लड़ रहा है॥
इस धरा पर सभी को जीने का अधिकार है बराबर॥
जीव–जन्तुओं को खत्म न करो, प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है॥”

यह पंक्तियां ना सिर्फ फैसले का सार थीं, बल्कि समाज को अपने व्यवहार पर सोचने के लिए मजबूर करने वाली थीं।

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जज जहां गईं, वहां दिए बड़े फैसले

जज पूर्वी तिवारी जबलपुर की मूल निवासी हैं। उन्होंने रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय से बीए एलएलबी ऑनर्स और एलएलएम में टॉप किया है। मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा में राज्य में प्रथम स्थान प्राप्त कर चुकीं पूर्वी तिवारी की पहचान एक न्यायप्रिय, तेजतर्रार और संवेदनशील जज के रूप में है। इससे पहले वह बैतूल और सनावद जैसे स्थानों पर भी महत्वपूर्ण और चर्चित फैसले सुना चुकी हैं।

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नजीर बना यह फैसला

ढीमरखेड़ा कोर्ट से निकला यह फैसला एक मिसाल है कि जब न्याय के साथ संवेदनशीलता और दूरदृष्टि जुड़ जाए, तो वह सिर्फ दोषियों को दंड नहीं देता, बल्कि समाज को दिशा भी देता है।

मध्यप्रदेश| पेंगोलीन शिकारी | जिला कोर्ट | वन्यजीव संरक्षण 

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