बिहार पटना हाईकोर्ट द्वारा बिहार सरकार के आरक्षण सीमा बढ़ाए जाने के फैसले को खारिज कर देने का फैसला गुरूवार को सुनाया गया। इस फैसले से बिहार ही नहीं बल्कि मप्र में भी हलचल बढ गई है। साल 2020 से चल रहे 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को लेकर अब उम्मीद बंध रही है कि मप्र में भी इसका असर होगा। उधर इस केस से जुड़े अधिवक्ताओं ने बिहार केस का आर्डर का अध्ययन भी शुरू कर दिया है।
1 जुलाई को सुनवाई में पेश किया जाएगा यह आर्डर
अधिवक्ता बिहार केस का आर्डर पढ रहे हैं और इसका सभी एंगल से अध्ययन किया जा रहा है। इसे अब मप्र हाईकोर्ट में एक जुलाई को रखने की तैयारी की जा रही है। ओबीसी आरक्षण के चलते 13 फीसदी होल्ड हुए पदों को लेकर एक जुलाई को जबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई होना है। इसमें यह केस रखते हुए सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने तक ओबीसी आरक्षण को पूर्ववत 14 फीसदी रखते हुए सौ फीसदी का रिजल्ट जारी करने की मांग की जाएगी।
मप्र में यह चल रहा है पूरा विवाद
साल 2020 में कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण सीमा 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया था, इससे कुल आरक्षण सीमा 63 फीसदी हो गई। इसे लेकर विविध याचिकाएं लगी है। हाईकोर्ट ने इसमें आदेश दिए कि मप्र शासन ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी से ज्यादा नहीं देगी। इसके बाद मप्र शासन ने इन सभी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया, यहां पर सुनवाई जारी है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के चलते हाईकोर्ट में सुनवाई रूकी है, लेकिन शासन ने परीक्षा रिजल्ट रूकने पर सितंबर 2020 में 87-13 फीसदी रिजल्ट फार्मूला लागू कर दिया, जिसमें 13 फीसदी रिजल्ट होल्ड हो गया।
इन होल्ड 13 फीसदी का रिजल्ट जारी करने के लिए कई उम्मीदवारों ने याचिकाएं दायर की है। इन्हें भी मिलाकर जबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई होना है, जिस पर 1 जुलाई को सुनवाई नियत है। इसके पहले हाईकोर्ट पीएससी को चार अप्रैल को आदेश दे चुका है कि वह 13 फीसदी होल्ड सूची को सार्वजनिक करें, लेकिन आयोग ने आपत्ति लगा दी है, जिस पर अब सुनवाई होना है।
पटना हाईकोर्ट में यह था पूरा मामला
पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के आरक्षण सीमा बढ़ाए जाने के फैसले को गुरुवार को खारिज कर दिया है। राज्य सरकार ने शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में SC-ST, OBC और EBC को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया था। इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।
पटना हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की बेंच ने गौरव कुमार और अन्य की याचिकाओं पर 11 मार्च को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि रिजर्वेशन इन कैटेगरी की आबादी की बजाय इनके सामाजिक और शिक्षा में पिछड़ेपन पर आधारित होना चाहिए।
बिहार सरकार का फैसला संविधान के अनुच्छेद 16(1) और अनुच्छेद 15(1) का उल्लंघन है। अनुच्छेद 16(1) राज्य के तहत किसी भी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति से संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिए समानता का अवसर प्रदान करता है। अनुच्छेद 15(1) किसी भी प्रकार के भेदभाव पर रोक लगाता है।
आरक्षण का दायरा बिहार में 75 फीसदी हुआ था
जातीय गणना की सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद सरकार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाकर OBC, EBC, दलित और आदिवासियों का आरक्षण 65 फीसद कर दिया था। इसमें आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को बिहार में सरकारी नौकरियों और उच्च शैक्षणिक संस्थानों में मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण को मिलाकर कोटा को बढ़ाकर 75 प्रतिशत तक कर दिया गया था।
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