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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने शिक्षक भर्ती से जुड़े एक विवाद में याचिकाकर्ता के पक्ष में बड़ा फैसला सुनाते हुए सरकारी प्रशासन की लापरवाही को उजागर किया है। जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता कुंदन सिंह शक्तावत को उनके मिडिल स्कूल शिक्षक के पद पर 30 दिनों के भीतर कार्यभार ग्रहण करने दिया जाए।
प्राथमिक शिक्षक को समय पर नहीं मिला था जॉइनिंग लेटर
राजस्थान के निवासी कुंदन सिंह शक्तावत माध्यमिक शिक्षक भर्ती 2018 में मिडिल स्कूल शिक्षक के पद के लिए चयनित हुए थे। उनका चयन योग्यता के आधार पर पूरी प्रक्रिया के तहत हुआ और उन्हें 7 अगस्त 2023 को नियुक्ति आदेश जारी किया गया। इसके तहत उनकी पदस्थापना मध्यप्रदेश के रीवा संभाग के एक मिडिल स्कूल में तय की गई थी। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के चलते यह नियुक्ति आदेश समय पर कुंदन सिंह तक नहीं पहुंचा। आदेश के ना मिलने के कारण वह निर्धारित समय सीमा में अपना कार्यभार ग्रहण नहीं कर सके। जब उन्हें आदेश की जानकारी मिली, तो उन्होंने संबंधित प्राधिकरण से संपर्क किया। लेकिन उनकी नियुक्ति को लेकर प्रशासन ने कोई सहयोग नहीं किया और उन्हें पद ग्रहण करने से रोक दिया। इसके कारण चयनित होने के बाद भी उनकी नियुक्ति रुक गई और वे न्याय पाने के लिए कोर्ट की शरण में आने को मजबूर हो गए।
डीपीआई ने भी की अनदेखी
इस स्थिति से परेशान होकर कुंदन सिंह ने डायरेक्टर, पब्लिक इंस्ट्रक्शन के समक्ष 24 जुलाई 2024 को एक अभ्यावेदन प्रस्तुत किया। लेकिन, इस अभ्यावेदन पर प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। अपने अभ्यावेदन में पूरा स्पष्ट कारण बताने के बाद भी DPI की ओर से जब याचिका करता को कोई राहत नहीं मिली तब उन्होंने कोर्ट की शरण ली।
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याचिकाकर्ता ने बताया प्रशासन को दोषी
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता का पक्ष उनके वकीलों धीरज तिवारी और तबरेज शेख ने प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने तर्क दिया कि कुंदन सिंह का चयन मिडिल स्कूल शिक्षक के पद के लिए पूरी तरह वैध और योग्यतापूर्ण प्रक्रिया से हुआ था। उनके मुवक्किल को 7 अगस्त 2023 को जारी नियुक्ति आदेश के तहत रीवा संभाग में पदस्थापना दी गई थी। वकीलों ने जोर दिया कि प्रशासनिक लापरवाही और नियुक्ति आदेश का गैर-संचार याचिकाकर्ता के अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है। उन्होंने अदालत को यह भी अवगत कराया कि कुंदन सिंह ने अपनी ओर से पूरी कोशिश की थी कि वे अपने कार्यभार को समय पर ग्रहण कर सकें। लेकिन, नियुक्ति आदेश उन्हें समय पर नहीं दिया गया, जिससे उनकी नियुक्ति प्रक्रिया बाधित हुई। यह पूरी तरह प्रशासन की गलती थी, न कि याचिकाकर्ता की। इसके अलावा, वकीलों ने कहा कि प्रशासन का यह रवैया केवल कुंदन सिंह के लिए नहीं, बल्कि उन सभी उम्मीदवारों के लिए चिंता का विषय है, जो इस तरह की लापरवाहियों का शिकार होते हैं।
30 दिन में दी जाए शिक्षक को जॉइनिंग - हाईकोर्ट
मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस संजय द्विवेदी ने प्रशासन को सख्त निर्देश दिए। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को इंसाफ देते हुए जॉइनिंग देने के लिए प्रशासन को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। कोर्ट ने डायरेक्टर, पब्लिक इंस्ट्रक्शन को आदेश दिया कि वे कुंदन सिंह के अभ्यावेदन पर 30 दिनों के भीतर विचार कर उन्हें पोस्टिंग दें। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह जांचा जाए की क्या याचिका करता को उसकी जॉइनिंग डेट की जानकारी दी गई थी या नहीं। अब इस आदेश के बाद डीपीआई सहित विभाग को यह बताना होगा कि नियुक्ति आदेश समय पर याचिकाकर्ता तक क्यों नहीं पहुंचा। यदि यह सिद्ध होता है कि आदेश का समय पर न पहुंच पाना प्रशासनिक लापरवाही थी, तो कोर्ट ने कुंदन सिंह को तत्काल कार्यभार ग्रहण कराने का भी आदेश दिया है। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि यदि कार्यभार ग्रहण करने में कोई कानूनी बाधा नहीं है, तो कुंदन सिंह को ज्वाइनिंग देने से रोका नहीं जा सकता।
याचिकाकर्ता ने दिया कोर्ट को धन्यवाद
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद कुंदन सिंह ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, "यह मेरे लिए जीवन बदलने वाला पल है। प्रशासनिक लापरवाही के कारण मैं अपने भविष्य को लेकर बेहद चिंतित था। लेकिन हाईकोर्ट ने मेरे अधिकारों की रक्षा की है। अब मैं अपने पद पर कार्यभार ग्रहण कर अपने सपनों को पूरा कर पाऊंगा।" उन्होंने यह भी कहा कि यह निर्णय उन सभी उम्मीदवारों के लिए प्रेरणा है, जो अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने से डरते हैं।