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मध्य प्रदेश के युवाओं की नजरें आज यानी 6 दिसंबर को हाईकोर्ट जबलपुर पर थी। पांच साल से जिस आरक्षण के पेंच को युवा भुगत रहे हैं इसमें जबलपुर हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस सुरेश कैत, जस्टिस विवेक जैन की डबल बेंच में अहम सुनवाई शुक्रवार 6 दिंसबर को लिस्टेड हुई। इसमें कुल 86 याचिकाएं जुड़ी हुई हैं। करीब 20 मिनट तक बहस हुई लेकिन इसमें चीफ जस्टिस बेंच ने तय कर दिया की पहले याचिकाओं को अलग-अलग विभाजित किया जाएगा और फिर 20 जनवरी 2025 को फाइनल सुनवाई करेंगे।
इस तरह 5 कैटेगरी में बांटेंगे याचिका
चीफ जस्टिस सुरेश कैत ने कहा कि याचिकाओं को पांच हिस्सों में बांटा जाए, यह जिम्मेदारी राज्य शासन करेगा। इसमें एक याचिकाएं वह जो 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के पक्ष में, दूसरी वह जो इसके विरोध में हैं, तीसरी वह जो 13 फीसदी होल्ड रिजल्ट की बात कर रहे हैं। वहीं चौथी याचिकाएं वह होंगी जो ओबीसी को 27 फीसदी से ज्यादा आरक्षण की मांग कर रहे हैं, यह बोलकर कि मप्र में ओबीसी की जनसंख्या ज्यादा है। पांचवी याचिकाएं वह जिसमें शिक्षकों की 13 फीसदी सीट होल्डिंग है।
50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण का मुद्दा उठा
ओबीसी वेलफेयर की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने ओबीसी के पक्ष में जमकर बहस की। उन्होंने बताया कि भले ही एपेक्स कोर्ट ने बिहार, महाराष्ट्र के अधिक आरक्षण को रोका है लेकिन वह अलग मुद्दा है। संविधान में कहीं भी 50 फीसदी से अधिक आरक्षण पर रोक नहीं है और इंद्रा साहनी केस में भी एक जगह कहा गया है कि रिमोट एरिया के लिए आरक्षण बढ़ाया जा सकता है। मप्र में ओबीसी की जनसंख्या 52 फीसदी है, उस हिसाब से आरक्षण मिलना चाहिए। वहीं इसके खिलाफ में तर्क दिए गए कि 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं हो सकता है। इंद्रा साहनी केस में फैसला दिया जा चुका है और इसी आधार पर एपेक्स कोर्ट ने अन्य राज्यों के अधिक आरक्षण पर रोक लगाई है।
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प्रज्ञा शुक्ला वाला मामला भी उठा
वहीं मामले में प्रज्ञा शुक्ला केस भी उठा, जिसमें 4 अप्रैल 2024 को आदेश हुआ था कि 13 फीसदी होल्ड की मेरिट जारी हो, लेकिन जब पालन नहीं हुआ तो जुलाई में हाईकोर्ट ने 50 हजार की कास्ट लगाई। साथ ही शासन को इसका पालन के लिए कहा। यह केस फिर सुप्रीम कोर्ट गया और वहां से वापस हाईकोर्ट आ गया लेकिन इस पर अभी तक पालन नहीं हुआ। इस पर भी चीफ जस्टिस ने अगली फाइनल सुनवाई में ही पक्ष सुने जाने की बात कही।
इससे पहले 25 नवंबर को हुई थी सुनवाई
इसके पहले इस मामले में 25 नवंबर को सुनवाई हुई थी। इसमें सभी पक्षों से जवाब मांगते हुए सुनवाई को आगे बढ़ा दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट से वापस लौटी कुछ याचिकाएं भी इसमें जुड़ी हुई हैं। यह अलग-अलग भर्तियों को लेकर उठे मुद्दे हैं जिसमें मुख्य तौर पर 27 फीसदी आरक्षण देने या नहीं देने का मुद्दा है। फिर साथ ही 87-13 फीसदी का भी मुद्दा है, ताकि 13 फीसदी रिजल्ट अनहोल्ड हो और इसके साथ ही सौ फीसदी भर्ती दिए जाने का मुद्दा है। लेकिन यह तभी साफ होगा जब ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण को लेकर स्थिति साफ होगी।
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27 फीसदी पर असमंजस ही असमंजस
- या तो हाईकोर्ट से साफ हो कि जो 27 फीसदी का एक्ट पास है और इस पर रोक नहीं लग सकती। फिर भर्ती 100 फीसदी पर हो और वह भी 14 की जगह 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के साथ। क्योंकि शिक्षक भर्ती के केस में हाईकोर्ट चीफ जस्टिस ने यह सवाल उठाया था कि जब एक्ट से पास है तो फिर रोक क्यों है। लेकिन इसमें एक पेंच सुप्रीम कोर्ट में 27 फीसदी आरक्षण के संबंध में लगी ट्रांसफर याचिका का भी होगा, साथ ही संवैधानिक बेंच का फैसला है कि आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता है।
- दूसरा या तो संवैधानिक बेंच के 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं दिए जाने और हाल ही में बिहार के अधिक आरक्षण केस के सुप्रीम कोर्ट से हार जाने को देखते हुए कि एससी में केस होने तक 14 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं दिया जाए। इसमें फिर हाईकोर्ट से 13 फीसदी के रुके रिजल्ट को लेकर भी निर्देश जारी करने की उम्मीद की जाएगी, क्योंकि हजारों पद रुके हुए हैं।
- मुद्दा सौ फीसदी रिजल्ट का सबसे अहम है। सभी इस बात पर तो सहमत है कि रिजल्ट और भर्ती सौ फीसदी पर हो। लेकिन दो वर्ग जरूर बंटे हैं , एक 27 फीसदी के साथ 100 फीसदी रिजल्ट चाहता है और एक 14 फीसदी के साथ।
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