फॉर्मेसी काउंसिल बेपटरी, हजारों छात्रों की डिग्री के पंजीयन अटके

मध्यप्रदेश में बीते एक-डेढ़ साल से फार्मेसी काउंसिल का यही ढर्रा जारी है और मुश्किल डिग्री लेने वाले युवाओं को हो रही है। वे रजिस्ट्रेशन के बिना न तो अपना मेडिकल स्टोर खोल पा रहे, न दवा निर्माता कंपनियों में जॉब मिल रहा है...

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. कुछ साल पहले डिग्री बांटने के फर्जीवाड़े के बाद अब तक मध्यप्रदेश फार्मेसी काउंसिल में कामकाज पटरी पर नहीं लौटा है। यहां फुल टाइम रजिस्ट्रार नहीं है जिस वजह से छह-छह महीने तक छात्र रजिस्ट्रेशन के लिए भटक रहे हैं। काउंसिल बार-बार डिग्री के वेरिफिकेशन की प्रक्रिया जारी रहने का कहकर लौटा रही है। बीते एक-डेढ़ साल से फार्मेसी काउंसिल का यही ढर्रा जारी है और मुश्किल डिग्री लेने वाले युवाओं को हो रही है। वे रजिस्ट्रेशन के बिना न तो अपना मेडिकल स्टोर खोल पा रहे, न दवा निर्माता कंपनियों में जॉब मिल रहा है। स्वास्थ्य विभाग की भर्तियों से वंचित रह जाने का अंदेशा डिग्रीधारियों को सता रहा है।

फार्मेसी काउंसिल में कामकाज भगवान भरोसे

दरअसल इनदिनों जेपी अस्पताल परिसर स्थित मध्यप्रदेश फार्मेसी काउंसिल में कामकाज भगवान भरोसे चल रहा है। एक हॉल में बैठे चार कर्मचारी पंजीयन की पूरी व्यवस्था संभाल रहे हैं। यानी इन्हीं कर्मचारियों के हाथ में ऑनलाइन आवेदनों की जांच, डिग्री का सत्यापन और पंजीयन की प्रक्रिया के बाद सर्टिफिकेट जारी करने का काम है। रजिस्ट्रार को शासन से दोहरा दायित्व दिया गया है। इस वजह से वे ज्यादातर समय सतपुड़ा भवन में ही रहती है।

प्रदेश के फार्मेसी कॉलेजों से पढ़ाई के बाद हासिल डिग्री का काउंसिल में पंजीयन कराना जरूरी है। यानी पंजीयन न होने तक छात्र न तो मेडिकल स्टोर खोलकर अपना व्यवसाय शुरू कर सकता है। यही नहीं उसे निजी कंपनी या सरकारी नौकरी की पात्रता भी नहीं होती है। 

हर साल डिग्री ले रहे 15 हजार छात्र

मध्यप्रदेश में फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया से सर्टिफाइड कॉलेजों की संख्या 86 है। इनसे हर साल 15 हजार से ज्यादा छात्र डिग्री हासिल करके निकलते हैं। इन युवाओं को अपनी डिग्री के साथ काउंसिल के भोपाल स्थित कार्यालय में रजिस्ट्रेशन कराना होता है। यानी जब तक रजिस्ट्रेशन नहीं होता तब तक उनकी डिग्री किसी काम की नहीं होती। इसी वजह से फार्मेसी काउंसिल से रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट लेना अहम है जिसके लिए युवा रजिस्ट्रेशन के लिए चक्कर लगा रहे हैं। जानकारी के अनुसार काउंसिल कार्यालय में हर दिन 200 से ज्यादा लोग पहुंचते हैं। इनमें से नए रजिस्ट्रेशन और नवीनीकरण के लिए आने वालों की संख्या 50-50 फीसदी होती है। इनमें नवीनीकरण का काम तो जल्दी हो जाता है लेकिन नई डिग्री का रजिस्ट्रेशन छह-छह महीने तक अटका रहता है। 

पुराने फर्जीवाड़े का नया असर

अब आपको बताते हैं आखिर रजिस्ट्रेशन में कहां पेंच फंस रहा है। क्यों डिग्रीधारियों को बार-बार चक्कर लगवाए जा रहे हैं। दरअसल कुछ साल पहले फार्मेसी काउंसिल ऑफ मध्यप्रदेश से जारी रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट में धांधली पकड़ में आई थी। तब शासन स्तर पर जांच कराई गई तो पता चला कि बड़ी संख्या में अवैध डिग्रियों पर रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जारी किए गए हैं। इस फर्जीवाड़े की परतें खुलने के बाद काउंसिल में पदस्थ रजिस्ट्रार से लेकर कई कर्मचारियों को हटा दिया गया था। इस फर्जीवाड़े और व्यवस्था में बदलाव का असर अब सामान्य कामकाज पर नजर आ रहा है। रजिस्ट्रेशन के लिए ऑनलाइन आवेदन अकसर छह-छह महीने तक अटके रहते हैं। आवेदकों को दो-चार बार तो काउंसिल के चक्कर काटना ही पड़ता है।

वेरिफिकेशन का बना रहे बहाना

महीनों बाद भी रजिस्ट्रेशन न होने की वजह से जब आवेदन फार्मेसी काउंसिल पहुंचते हैं तो उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना होता है। अव्वल तो यहां कोई उनसे बात करने ही तैयार नहीं होता और आवेदन नंबर और नाम सुनकर ही वापस लौटा दिया जाता है। जब कोई ज्यादा दबाव बनाता है तो उन्हें संबंधित कॉलेज से अंकसूची का सत्यापन होने में लगने वाली देरी का हवाला देकर चुप करा दिया जाता है। वहीं काउंसिल में कनेक्शन होने की स्थिति में ऑनलाइन आवेदन के एक सप्ताह में ही रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है। इनमें से कई मार्कशीट की तो अब भी जांच नहीं हो रही। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संयोजक अनिकेत शेलके का कहना है युवाओं की परेशानी को लेकर फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष से मुलाकात कर चुके हैं। काफी समय बीत गया है। यदि जल्द निर्णय सामने नहीं आया तो परिषद इसको लेकर आंदोलन की रणनीति पर विचार कर  रही है। 

अव्यवस्था के लिए कौन जिम्मेदार

गुरुवार को खंडवा, इंदौर, सीधी, मंदसौर, बालाघाट जिलों से दर्जन भर युवा डिग्री और दस्तावेजों के साथ जेपी अस्पताल कैंपस पहुंचे थे। यहां वे दो घंटे से ज्यादा समय तक मप्र फार्मेसी काउंसिल कार्यालय के बाहर बैठकर अपनी बारी का इंतजार करते रहे। एक तो काउंसिल में कर्मचारियों का टोटा है। दरवाजा ज्यादातर बंद ही रहता है। काउंटर पर जानकारी देने भी कर्मचारी नहीं रहता। काउंसिल की जिम्मेदारी रजिस्ट्रार दिव्या पटेल की है लेकिन वे दोहरी जिम्मेदारी के कारण ध्यान नहीं दे पा रही हैं। रजिस्ट्रेशन कराने पहुंचे छात्रों का कहना था वे दो से तीन बार आ चुके हैं लेकिन कोई सुन ही नहीं रहा।

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