BHOPAL. मजाक बन चुके एम्पलायमेंट सिस्टम ने एक बार फिर प्रदेश के युवाओं को छला है। प्राथमिक शिक्षक भर्ती के दौरान बीते साल योग्यता की स्क्रूटनी के बिना दी गई नियुक्तियों को लोक शिक्षण संचालनालय ने रद्द कर दिया है। यानी एक साल पहले जो बेरोजगार युवा प्राथमिक शिक्षक बनकर स्कूलों में पढ़ा रहे थे वे फिर से बेरोजगार हो जाएंगे। डीपीआई के आदेश पर ऐसे प्राथमिक शिक्षकों की जानकारी जुटाई जा रही है। उधर इसके विरोध में कई संगठन विरोध में उतर आए हैं। ये शिक्षक संगठन लोक शिक्षण संचालनालय और स्कूल शिक्षा विभाग को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
सिस्टम की सबसे बड़ी चूक
प्रदेश में प्राथमिक शिक्षक भर्ती ( primary teacher recruitment ) की प्रक्रिया 2023 में चल रही थी। तब अलग-अलग श्रेणियों में शिक्षक भर्ती के लिए BEd और DLEd की अनिवार्यता को लेकर मामले सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) पहुंचे थे तब अगस्त 2023 के बाद प्राथमिक शिक्षक भर्ती के लिए DLEd को मान्य किया गया था। इसके साथ ही इस अवधि के बाद BEd की डिग्री को अमान्य करार दिया गया था, लेकिन लापरवाही के लिए मिसाल कायम करने वाले डीपीआई से इस ताजा आदेश के बाद भी चूक हो गई। यानी अगस्त 2023 के बाद भी प्राथमिक शिक्षक भर्ती में बीएड-डीएलएड के आधार पर स्क्रूटनी नहीं की गई। डीपीआई की इस अनदेखी के कारण नौकरी कर रहे युवा अब दोबारा बेरोजगारों की कतार में खड़े होने जा रहे हैं। डीपीआई ने आगर-मालवा, अलीराजपुर, अशोकनगर, छतरपुर, दमोह, डिंडौरी, गुना, कटनी, खंडवा, मंदसौर, मुरैना, नरसिंहपुर, नीमच, निवाड़ी, रायसेन, रतलाम, सागर, श्योपुर, शिवपुरी, सिंगरौली, सीधी, टीकमगढ़, पन्ना, उज्जैन और विदिशा समेत सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को पत्र भेजकर प्राथमिक शिक्षकों का ब्यौरा मांगा है। इसमें वे प्राथमिक शिक्षक हैं जिन्हें 11 अगस्त 2023 के बाद नियुक्ति दी गई है और उनके पास BEd की डिग्री थी।
अवमानना से बचने किया बेरोजगार
प्राथमिक शिक्षकों से नौकरी छीनने वाले डीपीआई के आदेश के खिलाफ ओबीसी अधिवक्ता कल्याण परिषद ने मोर्चा संभाल लिया है। परिषद के अलावा दूसरे शिक्षक संघ भी लोक शिक्षक संचालनालय की चूक की सजा शिक्षकों को देने पर नाराजगी जता रहे हैं। परिषद के अध्यक्ष रामेश्वर सिंह ठाकुर ने डीपीआई और स्कूल शिक्षा विभाग पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा जब साल भर पहले सुप्रीम कोर्ट से आदेश आ चुका था फिर विभाग इस पर बेसुध क्यों रहा। भर्ती के दौरान भी अधिकारियों को इसी सुध नहीं आई और प्राथमिक शिक्षकों के पदों पर नियुक्त आदेश जारी कर दिए गए। इसमें ऐसे युवाओं का दोष क्या है तो लंबे संघर्ष के बाद शिक्षक बने थे। परिषद के विनायक शाह ने स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में पक्ष रखने में लापरवाही बरतने के आरोप लगाए हैं। उनका कहना है सरकार की ओर से पक्ष रखते समय विभाग के अधिवक्ता तथ्यों से भटकते रहे। प्राथमिक शिक्षक के पद पर नियुक्ति के बाद विभाग विकल्प भी तलाश सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अधिकारी अवमानना की कार्रवाई से बचने अपना पल्ला झाड़कर बैठ गए हैं।
विवादों में घिरे हजारों पद
डीपीआई द्वारा बीएड धारी प्राथमिक शिक्षकों को नौकरी से बाहर करने के आदेश का असर प्रदेश के विभिन्न जिलों के स्कूलों पर पढ़ेगा। इनमें से ज्यादातर स्कूलों में तो प्राथमिक शिक्षक सहित एक या दो ही शिक्षक पदस्थ हैं। यानी कुछ स्कूल तो शिक्षकविहीन हो जाएंगे। ओबीसी अधिवक्ता कल्याण परिषद ने डीपीआई की कार्रवाई का विरोध किया है। परिषद का कहना है प्रदेश में सरकार और विभागों की ओर से न्यायालयों में पेश होने वाले अधिवक्ता गलत अभिमत रख रहे हैं। इस कारण हजारों पदों पर नियुक्तियां होल्ड हैं या विवाद में उलझी पड़ी हैं। उन्होंने सरकार की ओर से पक्ष रखने वाले अधिवक्ताओं की त्रुटि पर भी सवाल उठाए हैं। वहीं सीएम डॉ.मोहन यादव को भी ऐसे मामलों में संवेदनशीलता दिखाने और लापरवाहों पर कार्रवाई की मांग की है।
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