MP में 10 हजार बच्चों के भविष्य पर लटकी तलवार, एडमिशन के बाद स्कूलों की मान्यता रद्द

निजी स्कूलों की मान्यता रिन्यू नहीं होने से एमपी के कई बच्चों की पढ़ाई पर संकट है। इनमें से कई सआरटीई के तहत हुए एडमिशन अब अवैध माने जा रहे हैं।

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Rohit Sahu
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राजधानी समेत पूरे प्रदेश में आरटीई के तहत पढ़ रहे हजारों बच्चों की पढ़ाई पर संकट खड़ा हो गया है। सरकार की मुफ्त और अच्छी शिक्षा की योजना में इस बार तकनीकी नियम आड़े आ गए हैं। निजी स्कूलों की मान्यता नवीनीकरण की प्रक्रिया में बदलाव के चलते करीब एक हजार स्कूलों की मान्यता अटक गई है। 

इन स्कूलों में दस हजार से ज्यादा बच्चे आरटीई के तहत पढ़ाई कर रहे हैं। अब स्कूलों की मान्यता नवीनीकृत न होने के चलते इन बच्चों का प्रवेश अवैध माना जा रहा है। पेरेंट्स परेशान हैं कि बच्चों की आगे की पढ़ाई कहां होगी।

नए नियम बने संकट की जड़

मप्र स्कूल शिक्षा विभाग ने इस वर्ष मान्यता नवीनीकरण के नियमों में बदलाव किया है। अब स्कूलों को किरायानामा या रजिस्ट्री दिखाना अनिवार्य कर दिया गया है। इसका सीधा असर उन स्कूलों पर पड़ा है जो पट्टे की भूमि पर या ट्रस्ट द्वारा संचालित हैं। 

इन स्कूलों के पास न तो किरायानामा है और न ही रजिस्ट्री, जिसके कारण उनका मान्यता नवीनीकरण रुक गया है। इससे न सिर्फ स्कूलों का संचालन प्रभावित हो रहा है, बल्कि हजारों बच्चों का भविष्य भी अधर में है।

राजधानी में हालात और भी गंभीर

राजधानी भोपाल में 1600 प्राइवेट स्कूल हैं, जिनमें करीब एक लाख बच्चे कक्षा आठ तक आरटीई के तहत पढ़ते हैं।
इस साल ही 6 हजार नए एडमिशन हुए हैं। इनमें से बड़ी संख्या उन्हीं स्कूलों की है जिनकी मान्यता नवीनीकृत नहीं हो सकी। 

स्कूल संचालक अब राज्य शिक्षा केंद्र को पत्र लिख चुके हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं मिल पाया है। प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष अजीत सिंह ने कहा कि सरकार को बच्चों की पढ़ाई की चिंता करनी चाहिए।

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2011 से लागू है आरटीई

आरटीई (Right to Education) के तहत बच्चों के निजी स्कूलों में एडमिशन की शुरुआत साल 2011 से हुई थी। तब से यह प्रक्रिया हर साल चल रही है, केवल कोरोना काल में एडमिशन नहीं हुए थे। एमपी स्कूल शिक्षा विभाग हर वर्ष प्राइवेट स्कूलों से रिपोर्ट मांगकर फीस का भुगतान करता है।

इस साल मान्यता प्रक्रिया में दो बार समयसीमा बढ़ाई जा चुकी है, लेकिन अब भी हजारों स्कूल अटके हुए हैं।
जिला स्तर पर निर्णय लंबित हैं, जिसके कारण बच्चों और स्कूलों दोनों की स्थिति अनिश्चित बनी हुई है।

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