मध्यप्रदेश में रोजी रोजगार का मसला जमकर गरमाया हुआ है। एक तरफ तमाम योग्यता और पात्रता के बावजूद युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही है इसके लिए वो सड़कों पर उतरकर आंदोलन कर रहे हैं। जिन्हें नई-नई नौकरी मिली है यानी जो नवनियुक्त कर्मचारी हैं वो सैलरी से खुश नहीं हैं। सरकार की नीतियों और रोजगार के वादों को लेकर अलग-अलग वर्गों के लोगों ने मोर्चा खोल रखा है। अब सरकार का विरोध न केवल सड़कों पर हो रहा है, बल्कि सोशल मीडिया पर भी युवाओं ने डिजिटल प्रोटेस्ट छेड़ रखा है। नवनियुक्त कर्मचारी मध्यप्रदेश-सौ-फीसदी वेतन-दो हैशटैग ट्रेंड कराकर 70, 80 या 90 फीसदी नहीं बल्कि, सौ फीसदी सैलरी देने की मांग कर रहे हैं। अब इसी कड़ी में अलग-अलग भर्ती परीक्षाओं केद उम्मीदवार भी डिजिटल प्रोटेस्ट करने को मजबूर हो गए हैं। ये वो युवा हैं जो बेवजह 87-13 फीसदी फॉर्मूले का दंश झेल रहे हैं।
प्राथमिक शिक्षक भर्ती 2020 हैशटेग भी ट्रेंड में
ये युवा सोशल मीडिया पर #MP_OBC_पद_अनहोल्ड_करें ट्रेंड कराकर सरकार से होल्ड किए गए 13 फीसदी पदों को अनहोल्ड करने की मांग कर रहे हैं। #MP_OBC_पद_अनहोल्ड_करें के साथ अब तक हजारों पोस्ट की जा चुकी हैं। जिन्हें धड़ाधड़ रीपोस्ट और लाइक किया जा रहा है। इसी के साथ OBC को न्याय दो और प्राथमिक शिक्षक भर्ती 2020 हैशटेग भी खूब ट्रेंड कराए जा रहे हैं। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश ऐसा स्टेट बनता जा रहा है। जहां भौतिक और डिजिटल, हर तरह से प्रोटेस्ट पर प्रोटेस्ट हो रहे हैं। अब ये 13 फीसदी होल्ड पदों का क्या मामला है और इसे युवाओं के लिए अभिशाप क्यों कहा जा रहा है। उस पर विस्तार से बात करते हैं।
OBC वर्ग को साधने के लिए आरक्षण बढ़ाया
कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में OBC वर्ग को साधने के लिए आरक्षण बढ़ाया गया था। मध्यप्रदेश में 08 मार्च 2019 को अध्यादेश जारी कर ओबीसी आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया गया था। फिर 14 अगस्त 2019 को सरकार ने बाकायदा आरक्षण संबंधी कानून बनाकर विधानसभा में पारित कर दिया और आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4 (2) में संशोधन कर कानून को लागू भी कर दिया। इससे पहले मध्यप्रदेश में ओबीसी वर्ग को 14%, एससी 16%, एसटी को 20% और EWS को 10% आरक्षण मिलता था। ओबीसी वर्ग का आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% करने के बाद कुल आरक्षण 73% हो गया।
08 मार्च 2019 को 27% ओबीसी आरक्षण लागू होने के बाद 12 मार्च 2019 को हाईकोर्ट में पहली याचिका लगाई गई। जो नेशनल इलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट यानी NEET PG 2019-20 में दाखिले से जुड़ी थी। इस याचिका में ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण नहीं देने की मांग की गई थी। याचिका की सुनवाई में हाईकोर्ट ने 19 मार्च 2019 को संभावना के आधार पर अंतरिम आदेश दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि यह आदेश केवल याचिका की विषयवस्तु पर ही लागू होगा। ओबीसी आरक्षण की पैरवी के लिए सरकार की ओर से नियुक्त विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने 13 सितंबर 24 को GAD के सचिव से 13% होल्ड पदों को अनहोल्ड करने के बारे में चर्चा की। इस दौरान उन्हें बताया गया कि काउंसलिंग की अधिसूचना 06 मार्च 2019 को ही जारी की जा चुकी है। काउंसलिंग में तो 27% ओबीसी आरक्षण का कोई सवाल नहीं उठता था। इससे पहले 27% ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में एक के बाद एक कई याचिकाएं दाखिल की गईं, जिनमें 19 मार्च 2019 का अंतरिम आदेश लागू किया गया था। अब याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर की जा चुकी हैं। हाईकोर्ट के सभी अंतरिम आदेश प्रभावहीन हो गए। इसलिए मांग की जा रही है कि सभी होल्ड पदों को अनहोल्ड कर ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों को दिए जाएं।
युवाओं के भविष्य पर क्या असर होगा
सितंबर 2022 में 27% ओबीसी आरक्षण विवाद के बाद GAD ने 87-13% फॉर्मूला निकाला और 13% पदों को होल्ड कर 87% पर भर्ती देना शुरू किया। ये फॉर्मूला पहले MPPSC और बाद में ESB की भर्तियों पर लागू कर तर्क दिया गया कि 13% होल्ड पद ओबीसी उम्मीदवारों को देना है या जनरल कैटेगरी को देना है। ये कोर्ट के फैसले के बाद तय होगा। होल्ड पदों पर दोनों ही वर्गों के उम्मीदवारों को शामिल करेंगे, लेकिन रिजल्ट घोषित नहीं करेंगे। इसी वजह से MPPSC की राज्य सेवा और राज्य वन सेवा की 2010 से 2020 और 2021 की परीक्षा की अंतिम भर्ती होने के बावजूद सैकड़ों पद होल्ड पर हैं और हजारों अभ्यर्थी सालों से इंतजार कर रहे हैं।
एडवोकेट आदित्य सांघी ने रखे तर्क
20 अगस्त की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन के सामने याचिकाकर्ता के एडवोकेट आदित्य सांघी ने तर्क रखा था। आदित्य सांघी का कहना है कि संवैधानिक बेंच ने आरक्षण के 50 से ज्यादा मामलों पर रोक लगाई है। लेकिन मध्यप्रदेश सरकार ने आरक्षण बढ़ा दिया। जबकि मराठा आरक्षण में भी अतिरिक्त आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने अमान्य करार दिया है। ऐसे में मध्यप्रदेश सरकार किस आधार पर 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दे रही है। एडवोकेट सांघी ने ये भी कहा कि मार्च 2019 में ओबीसी आरक्षण के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट से स्टे लिया था। जिसके बाद मामले पर लगातार सुनवाई हुई। लेकिन फैसले से पहले ही मध्यप्रदेश सरकार ने ट्रांसफर पिटीशन लगा दी और सारी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हो गई।
सरकारी भर्तियों और परीक्षाओं 13% पदों को होल्ड किया गया
1. शिक्षक भर्ती : उच्च माध्यमिक भर्ती में 27% आरक्षण दिया। 4 विषयों के उम्मीदवार कोर्ट पहुंचे थे। ऐसे में 12 विषयों में तो ओबीसी को 27% आरक्षण, 4 में 14% आरक्षण दिया। करीब 499 पदों पर नियुक्ति अटकी है। इसके अलावा प्राथमिक शिक्षक भर्ती 2020 में ओबीसी के 13% यानी 882 पदों पर चयनित उम्मीदवारों की नियुक्ति अटकी है। कुल 1381 पदों पर नियुक्ति नहीं हो पा रही है।
2. सब इंजीनियर भर्ती : ग्रुप-3 के लिए संयुक्त भर्ती परीक्षा-2022 का रिजल्ट ओबीसी को 27% आरक्षण देते हुए जारी किया गया। सामान्य उम्मीदवार हाईकोर्ट पहुंचे। कोर्ट ने रोक लगाई तो 11 विभागों ने रिजल्ट रिवाइज्ड कराए बिना ही अपने स्तर पर 13% पद होल्ड कर लिए। 20 विभागों ने 27% के हिसाब से भर्ती कर दी। इससे कम अंक वालों को नियुक्ति। ज्यादा वाले होल्ड पर हैं।
3. MPPSC में 13% पद होल्ड : एमपीपीएससी ने 1 नवंबर 2022 से अब तक राज्य सेवा परीक्षा-2019 सहित 35 भर्ती परीक्षाओं के रिजल्ट घोषित किए हैं। 5077 पद विज्ञापित किए गए। इनमें से 87% मुख्य भाग में करीब 4451 पद के लिए रिजल्ट घोषित किए गए हैं। वहीं, 13% यानी 599 पद पर नियुक्ति होल्ड की गई हैं। राज्य सेवा-2019 के रिजल्ट में 571 पद में से 87 पद होल्ड किए गए।
जनवरी 2024 से पहले ईसीबी 27% ओबीसी आरक्षण के साथ परीक्षा कराकर रिजल्ट घोषित कर रहा था, लेकिन इसके बाद ईएसबी की भर्ती परीक्षाओं में एमपीपीएससी की तरह 87-13% फॉर्मूला लागू कर 13% पद होल्ड किए जाने लगे। दरअसल तत्कालीन महाअधिवक्ता के अभिमत के आधार पर सामान्य प्रशासन विभाग यानी जीएडी मप्र शासन की ओर से इस तरह का सर्कुलर निकाला गया। जिसके बाद पूरी भर्ती में ये सिस्टम लागू हो गया।
बड़े स्तर पर डिजिटल प्रोटेस्ट शुरू किया
मध्यप्रदेश में सरकारी भर्तियों और प्रतियोगी परीक्षाओं में लागू 87-13% फॉर्मूला युवाओं के लिए जी का जंजाल बन गया है। क्योंकि इस फॉर्मूले के फेर में फंसकर हजारों उम्मीदवारों का वक्त बर्बाद हो रहा है। मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग यानी MPPSC समेत बाकी सरकारी एजेंसियों की परीक्षाएं देने वाले हजारों अभ्यर्थी लंबे समय से 13 फीसदी होल्ड रिजल्ट जारी करने की मांग कर रहे हैं। सरकार और आयोग की लापरवाही से युवा इतने परेशान हो चुके हैं कि बीते दिनों हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिखकर इच्छामृत्यु की मांग तक कर चुके हैं। फिर भी कोई हल नहीं निकला और इसी बीच प्रदेश में ओबीसी वर्ग को आरक्षण देने से जुड़े 2019 से अब तक के मामले सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हो गए। अगस्त में सुनवाई के बाद कोर्ट मध्यप्रदेश सरकार को कई नोटिस भी जारी कर चुका है। अब सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई अक्टूबर में होगी। एक बार फिर 13 फीसदी होल्ड रिजल्ट जारी करने की मांग तेज हो गई है। और अब युवाओं ने बड़े स्तर पर डिजिटल प्रोटेस्ट शुरू कर दिया है। हालांकि अब मामले की अगली सुनवाई अक्टूबर में यानी इसी महीने होनी है। इसके बाद ही हजारों युवाओं के भविष्य पर कोई फैसला हो पाएगा। यानी युवाओं का इंतजार लगातार बढ़ता जा रहा है। उनके पास मध्यप्रदेश सरकार को कोसने और भौतिक या डिजिटल प्रोटेस्ट करने के अलावा कोई दूसरा ऑप्शन नहीं बचा है।
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