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मध्यप्रदेश में नौकरशाही मानो बेलगाम हो चुकी है। कुछ अफसरों को न जनता की परवाह है और ना ही कानून का डर। अदालतों के आदेशों की तो धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। कुछ सरकारी महकमों में लापरवाही और मनमानी इस कदर हावी हो गई है कि मानो चंद अधिकारी खुद को किसी के प्रति जवाबदेह ही नहीं समझते। हालात यह हैं कि अदालतें बार-बार आदेश जारी कर रही हैं, पर ये अफसर अपनी मनमानी पर अड़े हैं। अदालत के आदेशों की सरेआम अवहेलना हो रही है, अवमानना की जा रही है और कुछ अफसरों के रवैये में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा।
अदालत के स्पष्ट निर्देशों...
अब ताजा मामला सामने आया है लोक निर्माण विभाग (PWD) के चीफ इंजीनियर एससी वर्मा का, जिन्होंने अदालत के स्पष्ट निर्देशों को ठेंगा दिखा दिया। मामला दैवेभो (दैनिक वेतनभोगियों) के नियमितीकरण का था, पर उन्होंने इसे गंभीरता से लेना तो दूर, कोर्ट के आदेश को भी नजरअंदाज कर दिया। इस मनमानी पर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए चीफ इंजीनियर एससी वर्मा को जमकर लताड़ लगाई और विभागीय जांच के आदेश दे दिए। इतना ही नहीं, कोर्ट ने चीफ इंजीनियर पर एक लाख रुपए का जुर्माना भी ठोका है। HC ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, कोर्ट आंख पर पट्टी बांधकर काम नहीं करता है।
यह सिर्फ एक मामला नहीं है। बीते एक महीने में ऐसे आधा दर्जन से ज्यादा केस सामने आ चुके हैं, जहां कुछ अफसरों ने न्यायालय के आदेशों की अवमानना की है। 'द सूत्र' की इस रिपोर्ट में पढ़िए उन मामलों की पूरी डिटेल, जिनमें अदालत ने अफसरों को जमकर फटकार लगाई और उनकी मनमानी पर सख्ती की है...।
केस 01:
पीड़ितों को दुत्कार कर भाग दिया था
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने लोक शिक्षण आयुक्त शिल्पा गुप्ता के खिलाफ 10,000 का जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। कोर्ट ने 23 अक्टूबर 2024 को आरक्षित वर्ग के मेरिटोरियस शिक्षकों को चार सप्ताह में पोस्टिंग देने का आदेश दिया था, जिसका चार महीने बाद भी पालन नहीं हुआ। शिकायतों की अनदेखी पर शिक्षकों ने अवमानना याचिका दायर की, जिसके बाद हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया और आयुक्त को कंप्लायंस रिपोर्ट के साथ पेश होने का निर्देश दिया।
यह था मामला
हाईकोर्ट ने 23 अक्टूबर 2024 को आरक्षित वर्ग के मेरिटोरियस प्राथमिक शिक्षकों को उनकी पसंद के अनुसार DPI के स्कूलों में चार सप्ताह के भीतर पोस्टिंग देने का आदेश दिया था। यह आदेश 50 से अधिक शिक्षकों के पक्ष में था, जिन्हें ट्रायबल वेलफेयर स्कूलों में अनारक्षित वर्ग में अवैध रूप से पदस्थ किया गया था। लेकिन चार महीने बाद भी आदेश का पालन नहीं हुआ। शिक्षकों के बार-बार अनुरोध के बावजूद डीपीआई कार्यालय ने उन्हें दुत्कार दिया, जिससे नाराज होकर उन्होंने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की थी।
केस 02:
भोपाल कलेक्टर के खिलाफ जमानती वारंट
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने भोपाल कलेक्टर के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था। मामला RERA द्वारा बिल्डर के खिलाफ जारी 23.26 लाख के आरआरसी (राजस्व वसूली प्रमाण पत्र) को लागू न करने से जुड़ा है। कोर्ट ने पहले भी कलेक्टर को आदेश दिया था, लेकिन अनुपालन नहीं हुआ। इसके बाद हाईकोर्ट ने अवमानना याचिका पर सख्त कदम उठाते हुए कलेक्टर को सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने का निर्देश दिए थे।
यह था मामला:
याचिकाकर्ता प्रताप भानु सिंह ने RERA के अक्टूबर 2020 के आदेश के तहत बिल्डर से 23,26 लाख रुपए वसूलने के लिए शिकायत दर्ज कराई थी। भोपाल कलेक्टर को RRC लागू करना था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। हाईकोर्ट ने जुलाई 2023 में 3 महीने के भीतर आदेश का पालन करने का निर्देश दिया, पर कलेक्टर ने इसे भी अनदेखा कर दिया। आदेश की बार-बार अवहेलना पर याचिकाकर्ता ने अवमानना याचिका दायर की, जिस पर हाईकोर्ट ने अब जमानती वारंट जारी कर दिया।
केस 03:
हाईकोर्ट की फटकार: खुद को शेर समझते हैं अफसर
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने पिछले दिनों ग्वालियर कलेक्टर रुचिका चौहान को कड़ी फटकार लगाई थी। मामला लोक निर्माण विभाग (PWD) के कर्मचारी रामकुमार गुप्ता के वेतन भुगतान से जुड़ा है, जिसे अदालत के आदेश के बावजूद अब तक पूरा नहीं किया गया। कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा, अफसर ऑफिस में बैठकर खुद को शेर समझते हैं, किसी की नहीं सुनते, कोर्ट के आदेशों को भी नहीं गिनते। इसके बाद हाईकोर्ट ने कलेक्टर को हाजिर होने के आदेश दिए थे।
यह था मामला
रामकुमार गुप्ता को उपयंत्री के पद पर प्रमोशन मिला था, लेकिन उन्हें नए पद के अनुसार वेतन नहीं दिया गया। लेबर कोर्ट ने उन्हें 17.61 लाख रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया, लेकिन विभाग ने आदेश की अनदेखी की। मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां जस्टिस ने कलेक्टर रुचिका चौहान को तलब किया और कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी। कलेक्टर ने बताया कि उन्होंने तहसीलदार को तलब किया और PWD की एक संपत्ति को कुर्क किया, लेकिन कोर्ट ने इसे असंतोषजनक करार दिया।
केस 04
उमरिया कलेक्टर पर अदालत ने ठोका जुर्माना
उमरिया जिले की 65 वर्षीय मुन्नी उर्फ माधुरी तिवारी को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट ने उमरिया कलेक्टर पर 25 हजार का जुर्माना लगाया है। इस मामले की सुनवाई में कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की। कहा, कलेक्टर और कमिश्नर ने बिना दिमाग लगाए सिर्फ डाकघर की तरह आदेश पास कर दिया। महिला की बात सुने बिना ही उसे सजा दे दी।
यह है मामला:
माधुरी तिवारी पर गांजा तस्करी और मारपीट के मामले दर्ज थे। पुलिस ने उन्हें जिला बदर करने की सिफारिश की, जिसे कलेक्टर और कमिश्नर ने मंजूरी दे दी। माधुरी ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने पाया कि माधुरी के खिलाफ झूठे मामलों के आधार पर कार्रवाई हुई। कलेक्टर और कमिश्नर ने बिना गहराई से विचार किए आदेश पारित कर दिया। इसके बाद कोर्ट ने कलेक्टर पर 25 हजार का जुर्माना लगाया और 7 दिन में पीड़िता को भुगतान करने का निर्देश दिया।
केस 05
भिंड कलेक्टर पर हाईकोर्ट सख्त
ग्वालियर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने भिंड कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव के काम पर सवाल उठाते हुए अवमानना का दोषी माना। कोर्ट ने कहा, कलेक्टर ने पुरानी सुनवाई से कोई सबक नहीं सीखा और उनकी कार्रवाई मात्र दिखावा है। हाईकोर्ट ने कहा, भिंड कलेक्टर ने सिर्फ दिखावटी कार्रवाई की। अब ऐसा अधिकारी फील्ड में रहना चाहिए या नहीं, यह प्रदेश के मुख्य सचिव तय करें। आदेश की कॉपी मुख्य सचिव को भेजने के निर्देश दिए गए थे।
यह है मामला:
पीडब्ल्यूडी के कर्मचारियों को वेतन भुगतान नहीं हुआ, जिसकी राशि करीब 3.50 करोड़ थी। हाईकोर्ट ने कलेक्टर को भुगतान सुनिश्चित करने का आदेश दिया था, लेकिन उन्होंने आदेश का पालन नहीं किया। कर्मचारी सुभाष सिंह भदौरिया ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की। कोर्ट ने कलेक्टर को तलब किया और लगातार सुनवाई जारी है। कलेक्टर को 11 मार्च को कोर्ट में मौजूद रहने का आदेश दिया गया। कलेक्टर ने बताया कि उन्होंने 13 मई 2024 को पीडब्ल्यूडी की संपत्ति कुर्क की, लेकिन सिर्फ 20 हजार की नीलामी हो सकी। श्रम न्यायालय में सिर्फ 15,614 जमा कराए गए, जबकि कर्मचारियों का बकाया करोड़ों में है। कोर्ट ने इस जवाब को अस्वीकार कर कलेक्टर को लताड़ लगाई।
द सूत्र: त्वरित टिप्पणी
अफसरशाही की मनमानी खत्म होगी या जनता यूं ही पिसती रहेगी?
ऊपर आपने जो केस पढ़े ये सिर्फ एक महीने के दरमियान के हैं। सालभर के ऐसे दर्जनों मामले हैं। सरकारी अफसरों की लापरवाही अब असहनीय हो चुकी है। नियुक्तियों से लेकर पेंशन और अन्य जनकल्याणकारी मामलों तक, हर जगह अधिकारियों की निष्क्रियता और लचर रवैया देखने को मिल रहा है। हां, ये भी सच है कि सभी अधिकारी ऐसे नहीं हैं। वे ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ काम कर रहे हैं, पर कुछ गैरजिम्मेदार अफसरों की वजह से पूरा सिस्टम कठघरे में खड़ा हो जाता है। सरकार से जनता जो उम्मीदें रखती है, उसे कुचलने का काम ये लापरवाह अफसर करते हैं। क्या सरकार इस पर चुप बैठी रहेगी? क्या जनता को हर छोटी-बड़ी बात के लिए अदालतों के चक्कर लगाने पड़ेंगे? या फिर अब इन अफसरों पर सीधी
गाज गिरेगी?
एक आम नागरिक, जो उम्मीद लेकर सरकारी दफ्तरों में जाता है, उसकी फाइल महीनों और सालों तक धूल खाती रहती है। क्यों? क्योंकि अफसरों को जवाबदेही से बचने की आदत पड़ चुकी है। पेंशन के लिए बुजुर्ग धक्के खाते हैं। सरकारी नियुक्तियां लटकाई जाती हैं। वास्तविक गरीबों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। हर छोटी बात पर मामला कोर्ट में धकेल दिया जाता है। क्या सरकारी दफ्तरों का यही काम रह गया है कि जनता को कोर्ट में धकेलकर सरकारी धन और समय की बर्बादी की जाए?
कोर्ट का समय बर्बाद, सरकार की फजीहत
सरकारी निकम्मेपन के कारण कोर्ट पर केसों का बोझ बढ़ता जा रहा है। अफसर अपना काम नहीं करेंगे, जनता न्याय के लिए भटकेगी और कोर्ट में फाइलों का ढेर बढ़ता जाएगा। अदालत बार-बार फटकार लगाती है, लेकिन क्या इसका कोई असर पड़ता है? नहीं! यह सिस्टम का सबसे बड़ा मजाक है। जो अफसर काम नहीं करते, वे रिटायर हो जाते हैं और जब कोर्ट सख्ती दिखाती है, तो नए अफसरों पर जिम्मेदारी डाल दी जाती है। पुराने अफसर मलाई खाकर निकल जाते हैं और नया अफसर फंस जाता है।
लापरवाह अफसरों पर प्रहार करो सरकार!
सरकार को अब सीधे सस्पेंशन और बर्खास्तगी की कार्रवाई करनी होगी। हर लंबित फाइल के लिए जिम्मेदार अफसर पर कार्रवाई होनी चाहिए। इसके लिए लापरवाही अधिकारियों को चिह्नित कर पूरा सिस्टम डेवलप करना होगा। अगर जनता कोर्ट जाने को मजबूर होती है तो अफसर की वेतन से हर्जाना वसूला जाए। जो अफसर जनता के कामों में देरी करते हैं, उसकी पदोन्नति रोकी जाए। सरकार को अब यह तय करना होगा कि वह जनता के साथ है या उन अफसरों के साथ जो सिस्टम को दीमक की तरह चाट रहे हैं।
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