कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल हुए विधायक राम निवास रावत सोमवार को डॉ. मोहन यादव की नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार में मंत्री तो बन जाएंगे, लेकिन उन्हें विधायकी से इस्तीफा देना होगा। इस्तीफा देने के 6 महीने के भीतर उन्हें विधायक का चुनाव लड़ना होगा अगर वह जीतते हैं तो ही मंत्री पद पर रह पाएंगे। ऐसा क्यों होगा द सूत्र की यह खबर अंत तक पढ़िए और समझ लिजिए...
श्योपुर की विजयपुर सीट से 6 बार के विधायक रामनिवास रावत के कांग्रेस छोड़ने की पटकथा ठीक उस समय लिखना शुरू हुई जब कांग्रेस आलाकमान ने उमंग सिंघार को विधानसभा नेता प्रतिपक्ष घोषित कर दिया। रावत आलाकमान से इस निर्णय से नाराज हो गए उन्होंने अपनी नाराजगी बड़े नेताओं के सामने जाहिर भी की लेकिन उनकी आवाज सुनी ही नहीं गई। आखिरकार उन्होंने अपनी विचारधारा को ताक पर रखा और पाला बदलने का निर्णय ले लिया।
राम निवास रावत ने नरोत्तम मिश्रा के संपर्क में रहते हुए बीजेपी में शामिल हो गए। इसके बाद भी उनके बीजेपी में शामिल होने न होने पर संशय बना रहा, इधर कांग्रेस ने उनकी शिकायत विधानसभा अध्यक्ष से की। इस शिकायत में कांग्रेस ने कहा कि चूंकि कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली है इसलिए उनपर दल बदल कानून के तहत कार्रवाई की जाए। कांग्रेस की शिकायत पर अब तक कोई निर्णय़ नहीं लिया, मामला लंबित है। अब राम निवास रावत बीजेपी सरकार में मंत्री पद की शपथ लेते हैं तो दलबदल कानून के तहत उन्हें विधायक पद से इस्तीफा देना होगा।
इस उदाहरण से समझिए
छिंदवाड़ा जिले की अमरवाड़ा सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीतकर आए कमलेश शाह ने लोकसभा चुनाव के पहले 29 मार्च 2024 को विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी के सदस्यता ग्रहण की थी। उनके इस्तीफा देने के बाद ही निर्वाचन आयोग ने इस सीट से फिर से चुनाव के लिए कार्यक्रम घोषित किया। इस समय अमरवाड़ा में चुनाव प्रक्रिया चल रही है। ऐसे ही अगर विजयपुर सीट से विधायक रामनिवास रावत भी इस्तीफा देते हैं तो निर्वाचन आयोग इस सीट पर चुनाव करवाएगा।
अब समझिए दल बदल कानून क्या है?
दल-बदल विरोधी कानून एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाने पर संसद सदस्य ( सांसद ) या विधानसभा सदस्य ( विधायक) को दंडित करता है। किसी भी पार्टी के विधायकों को दल बदलने से हतोत्साहित करके सरकारों में स्थिरता लाने के लिए संसद ने साल 1985 में इसे संविधान की दसवीं अनुसूची के रूप में जोड़ा था। दसवीं अनुसूची जिसे दल-बदल विरोधी अधिनियम के नाम से जाना जाता है, 52वें संशोधन अधिनियम, 1985 के माध्यम से संविधान में शामिल किया गया था। यह किसी अन्य राजनीतिक दल में दल-बदल के आधार पर निर्वाचित सदस्यों की अयोग्यता के प्रावधान निर्धारित करता है।
दसवीं अनुसूची के तहत, किसी व्यक्ति को इसका सदस्य होने से अयोग्य ठहराया जा सकता है
- लोकसभा
- राज्य सभा
- राज्य विधान सभा
- राज्य की विधान परिषद
अयोग्यता का अर्थ है कि अयोग्य व्यक्ति इन में से किसी भी सदन का सदस्य नहीं हो सकता है। इस अधिनियम के बाद दल बदलने की प्रक्रिया में बहुत हद तक कमी आई थी।
अयोग्यता का सामना किए बिना दल बदलना
अयोग्यता का सामना किए बिना किसी का राजनीतिक दल बदलना ऐसी कुछ परिस्थितियां हैं जिनमें विधायक या सांसद अयोग्यता का सामना किए बिना अपनी पार्टी बदल सकते हैं। दल बदल कानून किसी राजनीतिक दल को किसी अन्य दल के साथ विलय की अनुमति देता है। यदि उसके कम से कम दो-तिहाई विधायी सदस्य विलय के लिए सहमत हों। विलय की स्थिति में, पार्टी के विधायी सदस्यों को अयोग्यता का सामना नहीं करना पड़ेगा, भले ही वे विलय के लिए सहमत हुए हों, या विलय के बिना एक अलग समूह के रूप में कार्य करने का विकल्प चुना हो।
विधायकों को कौन ठहरा सकता है अयोग्य
किसी विधायक ( संसद में किसी सांसद ) को अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए या नहीं इसका निर्णय विधानमंडल के सभापति या अध्यक्ष यानी पीठासीन अधिकारी द्वारा लिया जाता है। एक विधायक को पीठासीन अधिकारी के फैसले के खिलाफ अदालत में अपील करने की अनुमति है।
जब एक ही दिन में तीन बार बदली पार्टी
आखिर दल बदल कानून क्यों लाया गया इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है। बात 1967 की है। हरियाणा की हसनपुर विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी गया लाल ने जीत दर्ज की। उन्होंने एक ही दिन में 3 बार पार्टी बदली। पहले उन्होंने कांग्रेस का हाथ थामा फिर कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी में शामिल हो गए। 9 घंटे में ही उन्होंने फिर से पार्टी बदली और दोबारा कांग्रेस का दामन थाम लिया। इस घटना के साथ ही दल बदलुओं के लिए आया राम गया राम की कहावत प्रसिद्ध हो गई।
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