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सर्दियों में मालवा क्षेत्र की खास डिश गराडू का जिक्र जरूर होता है। रतलाम की मिट्टी में पैदा होने वाला यह जिमीकंद न सिर्फ स्वाद में लाजवाब है, बल्कि मसालेदार और नींबू वाले नाश्ते के तौर पर भी इसका लुत्फ उठाया जाता है। मालवा में ठेलों से लेकर घरों तक हर जगह गराडू का स्वाद और इसका अनूठा जायका मशहूर है। जानिए इस स्वादिष्ट डिश की खेती और खासियत के बारे में, जो अब सिर्फ रतलाम के बांगरोद गांव तक सीमित रह गई है।
रतलाम में सबसे मशहूर है गराडू
मालवा क्षेत्र के कुछ ही इलाकों में गराडू की खेती होती है, जिसमें रतलाम में सबसे मशहूर है। यहां की काली मिट्टी और उपयुक्त जलवायु गराडू की अच्छी पैदावार में मदद करती है। इस गांव में कई दशकों से पारंपरिक रूप से गराडू की खेती की जा रही है, जिससे यहां के किसानों को बेहतर उपज मिलती है।
गराडू की ऐतिहासिक शुरुआत
गराडू की खेती की शुरुआत रतलाम के खेतलपुर गांव से हुई थी, जब 30-40 साल पहले इसे शकरकंद के साथ बोया गया था। तब से लेकर आज तक बांगरोद गांव में इसकी पैदावार जारी है और यहां की मिट्टी ने इसे खास पहचान दी है। किसान कन्हैयालाल मेहता के मुताबिक, इस बीज को लाया गया और खेती में सफल प्रयोग किए गए, जिसकी वजह से आज बांगरोद का गराडू पूरे देश में मशहूर है।
गराडू की खेती की प्रक्रिया
गराडू की फसल को तैयार होने में 5 से 6 महीने का वक्त लगता है। किसानों को इसके लिए विशेष मेहनत करनी पड़ती है, जिसमें बेल को बांस और रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ाना, नियमित सिंचाई और उचित देखभाल शामिल है। मई-जून में इसकी चौपाई की जाती है, और नवंबर तक यह बाजार में बिकने के लिए तैयार हो जाता है। एक हेक्टेयर में लगभग 20 क्विंटल उत्पादन होता है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है।
गराडू का अनोखा स्वाद
गराडू एक शकरकंद की प्रजाति है, लेकिन इसका स्वाद शकरकंद से बिलकुल अलग होता है। यह आलू की तरह होता है, और नाश्ते के तौर पर तला जाता है। सर्दियों में इसे मसालों और ताजे नींबू के साथ खाने का अलग ही मजा है। इसकी तासीर गर्म होने के कारण सर्दियों में इसे खाने से शरीर को कई फायदे होते हैं।
मसालेदार गराडू की रेसिपी
गराडू का मौसम आते ही मालवा के शहरों और कस्बों में गराडू के ठेले सज जाते हैं, जहां तीन तरह के गराडू मिलते हैं- मुलायम, सख्त और हलवा गराडू। इसे स्वादानुसार मसाले, नींबू और चाट मसाला डालकर तला जाता है। हलवा गराडू में इसे मसलकर नमकीन हलवे की तरह परोसा जाता है। गराडू को ग्राहकों की पसंद के हिसाब से मुलायम या सख्त तला जाता है।
गराडू बनाने का तरीका
गराडू को खेत से लाकर छीलकर बड़े-बड़े टुकड़ों में काट लिया जाता है। फिर इसे कुछ देर पानी में रखा जाता है ताकि इसकी चिपचिपाहट कम हो सके। इसके बाद इसे धीमी आंच पर तेल में तला जाता है। तलने के बाद इसमें मिर्च, गरम मसाला, सेंधा नमक और नींबू डालकर सर्व किया जाता है, जिससे इसका स्वाद और भी बढ़ जाता है।
रतलाम में गराडू की बढ़ती डिमांड
रतलाम की सेव जहां पूरे देश में मशहूर है, वहीं रतलाम के गराडू की मांग भी बढ़ती जा रही है। लोग इसे अपने रिश्तेदारों को उपहार के तौर पर भेजते हैं, ठीक वैसे ही जैसे सेव भेजी जाती है। रतलाम के लोग इस परंपरा को जीवित रखते हुए अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को गराडू भेजते हैं।
गराड़ू का भविष्य और खेती का संकट
रतलाम के बांगरोद गांव में गराडू की खेती तो हो रही है, लेकिन बढ़ती लागत, घटती जमीन और समय की मांग के कारण इसकी खेती का रकबा घटता जा रहा है। इस फसल की देखभाल के लिए किसानों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, जिसका असर भविष्य में इसकी खेती पर पड़ सकता है। फिर भी रतलाम के किसान अपने पारंपरिक नाश्ते की इस विरासत को बनाए रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
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