मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से करीब 28 किलोमीटर दूर उमरेठ गांव में मां निकुंबला देवी का मंदिर है। नवरात्रि के मौके पर यहां भक्तों की भारी भीड़ पहुंचती है ताकि वो मां के दर्शन कर सकें। इस मंदिर में विराजमान मां निकुंबला देवी के बारे में मान्यता है कि वो रावण की कुलदेवी हैं।
मां निकुंबला को लेकर क्या है इतिहास?
दरअसल, उमरेठ के नेहरू चौक में रावण की कुलदेवी मां निकुंबला मां का बहुत पुराना मंदिर है। इस मंदिर के बारे में लक्ष्मी प्रसाद विश्वकर्मा ने बताया कि इस स्थान पर प्राचीन काल से मां निकुंबला की मूर्ति स्थापित थी। लोग पूजा-अर्चना तो करते थे लेकिन लोगों को मां का नाम नहीं पता था। बड़ी संख्या में आदिवासी और अन्य समुदाय के लोग यहां मां के दर्शन के लिए आते थे। उन्होंने आगे बताया कि 3 दशक पहले ग्रामीणों ने मां का मंदिर बनाने का फैसला किया। इसी सिलसिले में सभी लोग ब्रह्मलीन जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी से मिलने झोंतेश्वर आश्रम गए थे।
शंकराचार्य जी ने मूर्ति की फोटो देखने के बाद पूछा कि क्या इस मूर्ति के आसपास और भी कुछ है? इस पर गांव वालों ने बताया कि इसके बगल में खंडेरा बाबा का चबूतरा बना हुआ है। हाथ जोड़कर मूर्ति को देखते हुए शंकराचार्य जी ने गांव वालों से कहा कि यह रावण की कुलदेवी और मेघनाथ की इष्ट देवी मां निकुंबला की मूर्ति है। इसके बाद गांव के सभी वर्गों के लोगों ने मिलकर मूर्ति के गर्भगृह को छेड़े बिना उसके चारों ओर मंदिर बना दिया। इसके बाद देवी की मूर्ति को मां निकुंबला के नाम से जाना जाने लगा।
कैसी है निकुंबला मां की प्रतिमा?
अगर निकुंबला मां की प्रतिमा की बात करें तो यह करीब ढाई से तीन फीट ऊंची है। इस प्रतिमा को देखकर साफ पता चलता है कि यह काफी पुरानी प्रतिमा है। इस प्रतिमा की सबसे खास बात यह है कि मां आशीर्वाद नहीं दे रही हैं बल्कि, दोनों हाथ जोड़े हुए हैं। जबकि प्रतिमा के बगल में एक तलवार रखी हुई है। वैसे तो यहां भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि के दौरान यहां काफी भीड़ देखने को मिलती है।
निकुंबला मां के नजदीक खंडेरा बाबा का स्थान
गौरतलब है कि छिंदवाड़ा जिले में आदिवासियों की संख्या काफी अधिक है। जिले का उमरेठ आदिवासी समुदाय की आस्था का केंद्र है। उमरेठ में मां निकुंबला के नजदीक ही खंडेरा बाबा का स्थान है। यहां होली के अवसर पर मेघनाथ की भव्य पूजा की जाती है। यहां आदिवासी समुदाय के साथ ही आसपास के दर्जनों गांवों से अन्य समुदाय के लोग अपनी मनोकामना पूरी होने पर पहुंचते हैं।
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