मध्य प्रदेश का एक ऐसा गांव जहां दशानन रावण को शादी का पहला कार्ड दिया जाता है। दहशरे के दिन यहां रावण को जलाया नहीं बल्कि सजाया जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में जो भी मन्नत मांगी जाती है वह पूरी अवश्य होती है। इस मंदिर में है रावण की विशाल प्रतिमा।
विदिशा से 40 किमी दूर है रावण का मंदिर
मध्य प्रदेश के विदिशा जिले से करीब 40 किमी दूर स्थित है रावन गांव। इस गांव की खास बात यह है कि यहां दशानन रावण की पूजा की जाती है। इसके अलावा हर शुभ काम का न्योता सबसे पहले रावण बाबा को दिया जाता है। यहां तक कि शादी का पहला कार्ड भी रावण मंदिर को जाता है। इस मंदिर का नाम लंकेश्वर महादेव मंदिर है।
क्या है पूरी कहानी?
रावन गांव में रहने वाले शुभम तिवारी ने बताया कि करीब 2 साल पहले मेरे दोस्त दीपक की शादी हो रही थी। तिलक वाले दिन रसोइया मेहमानों के लिए खाना बनाने की तैयारी कर रहा था। जैसे ही उसने गैस की भट्ठी जलाने की कोशिश की तो वह नहीं जली। काफी प्रयासों के बाद भी जब कोई भी भट्ठी नहीं जला पाया तो गांव वालों को लगा कि यह एक अपशकुन है। गांव के लोग बड़े बुजुर्गों के पास पहुंचे और उन्हें पूरी बात बताई। बुजुर्गों ने पूछा कि क्या रावण बाबा को शादी का न्योता दिया था? परिवार वालों ने कहा कि नहीं दिया। इसके बाद सभी लोग शादी का कार्ड और पूजन सामग्री लेकर रावण बाबा के मंदिर पहुंचे, उन्हें न्योता दिया। जब वह घर लौटे तो भट्ठी आराम से जल गई और खाना भी पक गया।
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यह मंदिर है परमारकालीन
रावन गांव में रावण का परमारकालीन मंदिर है। इस गांव में हर कोई जय लंकेश कहकर एक दूसरे का अभिवादन करता है। मंदिर के मुख्य द्वार पर लंकेश्वर महादेव मंदिर लिखा हुआ है। मंदिर के बाएं तरफ एक चबतूरा है, जिस पर प्राचीन देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियां रखी हुई हैं। पास में ही देवी की एक पत्थर की मूर्ति भी रखी हुई है।
10 सिर और 20 भुजाओं वाली रावण की प्रतिमा
गांव वाले कहते हैं कि इस देवी मूर्ति की प्राचीन काल से पूजा की जा रही है। मंदिर के दाहिने तरफ शिव-पार्वती का मंदिर है। मंदिर का शिखर नहीं है, छत के तौर पर एक टीन शेड रखा है। मंदिर के भीतर 12 फीट की रावण की 10 सिर और 20 भुजाओं की लेटी हुई प्रतिमा है। गांव वालों ने बताया कि यहां अखंड ज्योत जलती है। इसके अलावा मंदिर के सामने वाली दीवार पर रावण चालीसा का बैनर लगा हुआ है।
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मन्नत पूरी होने पर होती है सत्यनारायण की पूजा
गांव में रहने वाली चंदाबाई ने बताया कि गांव में पहली पूजा रावण बाबा की होती है। कुछ समय पहले उनकी मां और भाई ने रावण बाबा से मन्नत मांगी थी, जो पूरी हो गई। रावण बाबा हम गांव वालों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। मन्नत पूरी होने पर मंदिर में सत्यनारायण की पूजा की जाती है।
रावण की मूर्ति को लेकर है दो कहानियां प्रचलित...
चलिए जानते हैं मंदिर की पहली कहानी: रावण के मंदिर में पूजा करने वाले पुजारी पं.नरेश महाराज बताते हैं कि मंदिर से 2 किमी दूर बूदे नाम की पहाड़ी स्थित है। माना जाता है कि यहां बूदे नाम का योद्धा रहता था। वह बहुत ही शक्तिशाली था। उसने देश के बड़े-बड़े योद्धाओं को परास्त किया था। एक दिन उसने सभा में अपने जैसे बलवान व्यक्ति के साथ युद्ध करने की इच्छा जताई। जिस पर उसके सलाहकारों ने कहा कि, आपके जैसा बलवान एक ही है, वो है रावण। आप लंका जाकर उससे युद्ध करें। इतना सुनकर वह लंका चला गया। रावण को देखने के बाद बूदे की युद्ध करने की इच्छा खत्म हो गई। जब वह वापस लौटा तो एक बार फिर उसकी रावण से युद्ध की इच्छा हुई। वह हर बार लंका जाता और रावण को देखकर उसकी युद्ध की इच्छा खत्म हो जाती। एक दिन लंका जाकर उसने रावण को सारी बात बताई। जिस पर रावण ने बूदे से कहा कि तुम मेरी तंत्र रूपी शिला अपने साथ ले जाओ और अपने पास रखो, इससे तुम्हें क्रोध नहीं आएगा। बूदे ने रावण की तंत्र रूपी प्रतिमा को यहां स्थापित किया था और इस गांव का नाम रावन रख दिया।
कहानी नंबर-2: अब दूसरी कहानी पर आते हैं। गांव के एक बुजुर्ग ने भी गांव में रावण की प्रतिमा आने की कहानी बताई। यह कहानी पहली कहानी से मिलती-जुलती है, बस आखिर में थाड़ी बदल जाती है। उन्होंने बताया कि जब बूदे रावण से लंका में मिलता है तो उससे कहता है कि मैं युद्ध करना चाहता हूं। रावण उससे युद्ध करने के लिए तैयार हो जाता है, लेकिन बूदे कहता है कि लंका आकर मेरी शक्ति और युद्ध की इच्छा खत्म हो जाती है। तुम्हें मेरे क्षेत्र में आकर मुझसे युद्ध करना होगा। रावण ने बूदे की चुनौती स्वीकार कर लिया और इसी बूदे पहाड़ी पर रावण और बूदे के बीच युद्ध हुआ था। रावण ने बूदे को आकाश की तरफ फेंका, जब उसका शरीर नीचे गिरा तो एक विशाल गड्ढा हो गया।
बूदे के नीचे गिरने के बाद रावण ने उसके सीने में तलवार घोंप दी। वह तालाब अभी भी मंदिर के सामने बना हुआ है। तालाब के बीच में 12 फीट लंबी पत्थर की तलवार है। गांव वाले बताते हैं कि मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद जब बीजेपी नेता उमा भारती रावण बाबा के दर्शन करने आई थीं, तब उन्होंने कहा था कि ये रावण की तलवार है, जो अब पत्थर की हो गई है।
किसने की थी रावण चालीसा की रचना
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहली कहानी का जिक्र रावण चालीसा में किया गया है। रावण चालीसा और रावण की आरती की रचना 20 साल पहले पंडित कामता प्रसाद की एक कमेटी ने की थी।
पहले खुले में स्थापित थी मूर्ति
12 साल पहले यहां मंदिर का निर्माण हुआ। इसके पहले रावण की मूर्ति खुले में थी। पुजारी नरेश महाराज बताते हैं कि जो भी श्रद्धालु मंदिर में आता है वह रावण बाबा की नाभि पर तेल की बाती रखकर पूजा करता है। ऐसा इसलिए क्योंकि रावण की नाभि में अमृत था।
तालाब में नहाने से दूर होती हैं ये समस्याएं
सुबह-शाम रावण की आरती होती है और रावण चालीसा भी पढ़ी जाती है। ग्रामीणों ने बताया कि रावण मंदिर के सामने जो तालाब है उसकी मिट्टी लगाने से हर तरह का चर्म रोग ठीक हो जाता है। वहीं, इस तालाब में स्नान करने से स्त्रियों को संतान प्राप्ति होती है।
शरीर और वाहनों पर लिखवाया जय लंकेश
रावन गांव में रावण के प्रति श्रद्धा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, गांव के लोग अपने घरों के मुख्य दरवाजे, वाहनों पर जय लंकेश लिखवाए हुए हैं। यही नहीं गांव के युवाओं के हाथ और सीने पर जय लंकेश के टैटू भी बने हुए हैं। गांव वालों का मानना है कि इससे रावण का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
गांव में हैं कई प्राचीन मंदिर
बालमुकुंद तिवारी कहते हैं कि हमारे गांव में रावण की तो पूजा होती है, दूसरे देवी-देवताओं को भी पूजा जाता है। यहां प्राचीन राम जानकी मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर, शिव पार्वती, दुर्गा माता और हनुमान जी का भी मंदिर स्थित हैं।
रावण में कई अच्छाइयां भी थीं
रावन गांव के लोग कहते हैं कि सीताहरण की एक बुराई को छोड़ दिया जाए तो रावण में कई अच्छाइयां भी थीं। वे चारों वेदों के ज्ञाता थे, परम विद्वान पंडित थे। दशहरे के दिन हम उनकी विशेष पूजा करते हैं, भव्य भंडारा होता है। आस-पास के क्षेत्रों के हजारों भक्त यहां आते हैं।
वृंदावन के संत आते हैं रावण को शिवपुराण सुनाने
गांव में रहने वाले मनीष तिवारी ने बताया कि साल 2020 में वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रियादास जी महाराज हमारे गांव आए थे। उन्होंने यहां भागवत कथा की थी। मंदिर में रावण बाबा के दर्शन भी किए और उनका आशीर्वाद लिया था। इस साल मार्च महीने में प्रियादास जी महाराज रावन गांव आए और उन्होंने शिवपुराण कथा सुनाई थी। 9 दिन कथा चली, इसके बाद विशाल भंडारे का आयोजन किया गया था।
प्रेमानंद महाराज ने भी पूजा को सही बताया
ग्रामीण मनीष ने बताया कि गांव के सरपंच राजेश वृंदावन गए थे। जहां उन्होंने प्रेमानंद जी महाराज से सवाल किया था कि हमारे गांव का नाम रावन है। यहां रावण की पूजा होती है। क्या ये सही है? इसके जवाब में प्रेमानंद महाराज ने कहा था कि रावण कोई साधारण आदमी नहीं था, उसने भगवान राम के लिए दैत्य भाव की लीला की थी। प्रेमानंद महाराज ने रामचरित मानस की एक चौपाई भी सुनाई थी। उन्होंने कहा कि रावण के लिए तुलसीदास जी ने लिखा है कि उत्तम कुल, पुलस्त्य कर नाती। यानी रावण उत्तम कुल में पैदा हुआ था। 10 प्रजातियों में से एक पुलस्त ऋषि के नाती थे। भगवान शिव का महान भक्त और समस्त शास्त्रों का पारंगत विद्वान था रावण।
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