सर्वर-सॉफ्टवेयर की आंखमिचौली में अटक रहीं रजिस्ट्री

मध्य प्रदेश में आवासीय जमीन और कृषि भूखंड की खरीद फरोख्त, नामांतरण-सीमांकन सहित दूसरे कामकाज के लिए नए सॉफ्टवेयर संपदा 2.0 का उपयोग शुरू किया है। हालांकि, इसे चलन में लाए अभी कुछ महीने ही हुए हैं लेकिन तकनीकी खामियां लोगों को परेशान कर रही हैं।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. राजस्व विभाग को हाइटेक बनाकर रफ्तार देने की सरकार की कोशिश की राह में तकनीकी समस्याएं रोड़ा अटका रही हैं। विभाग के पोर्टल संपदा-2 पर भूमि की रजिस्ट्री से लेकर दूसरे कामकाज कभी सॉफ्टवेयर तो कभी सर्वर संबंधी शिकायतें सामने आ रही हैं। यही स्थिति प्रदेश के सभी जिलों में बन रही है। इस वजह से सर्विस प्रोवाइडर नए सॉफ्टवेयर की जगह पुराने पोर्टल पर स्लॉट मांग रहे हैं। इसके कारण जमीन संबंधी मामलों को लेकर लोगों विशेषकर सर्विस प्रोवाइडर यानी रजिस्ट्री कराने वाले वेंडर्स को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में राजस्व विभाग ने इस नए सॉफ्टवेयर का उपयोग शुरू किया है। अभी विभागीय अधिकारी और  कर्मचारी भी इसके उपयोग संबंधी बारीकियों से अंजान है। इसी वजह से तकनीकी समस्याओं के कारण बार-बार काम ठप हो रहा है। 

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नए सॉफ्टवेयर संपदा 2.0

प्रदेश में आवासीय जमीन और कृषि भूखंड की खरीद फरोख्त, नामांतरण-सीमांकन सहित दूसरे कामकाज के लिए नए सॉफ्टवेयर संपदा 2.0 का उपयोग शुरू किया है। हालांकि, इसे चलन में लाए अभी कुछ महीने ही हुए हैं लेकिन तकनीकी खामियां लोगों को परेशान कर रही हैं। कभी रजिस्ट्री या दूसरे काम के बीच में ही सर्वर ठप हो जाने से काम बंद हो जाता है। कभी रजिस्ट्री के दौरान लोकेशन बदल जाती है और कलेक्टर गाइडलाइन के आधार पर तय कीमत में भी अंतर आ जाता है। यानी कभी शहरी क्षेत्र में जमीन की कीमत लाखों रुपए घट जाती है या कृषि भूमि की कीमत भी कई गुना ज्यादा दर्ज दिखाई देती है। 

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राजस्वकर्मियों को जानकारी की कमी

संपदा 2.0 की उलझन के संबंध में जानकारों का कहना है नए सॉफ्टवेयर के कारण अभी राजस्वकर्मियों को जानकारी की कमी है। इसके कारण भी इसे उपयोग में लेने में तकनीकी चूक हो रही है। सॉफ्टवेयर में कलेक्टर गाइडलाइन के आधार पर लोकेशन आधारित भूखंड की कीमत दर्शाने वाला पॉलीगॉन है। संपत्ति मूल्यांकन के साथ इस पर कृषि, नगरीय क्षेत्र, ग्रामीण अंचल पर आइडी दर्ज कर सर्चिंग शुरू करते ही संबंधित प्लॉट सामने आ जाता है। कई बार चिन्हित भूखंड या कृषि भूमि की लोकेशन बदल जाती है और उसी के अनुरूप संपत्ति की कीमत भी दिखने लगती है। यानी रजिस्ट्री और स्टॉम्प ड्यूटी की कीमत भी इस आधार पर बदल सकती है। इस वजह से पूरी प्रक्रिया फिर शुरूआत से करनी पड़ती है। यही नहीं इस दौरान सर्वर ही ठप होने से पूरा दिन इंतजार में बीत जाता है। राजस्व विभाग और पंजीयक कार्यालय पर नए सॉफ्टवेयर संपदा 2.0 को लेकर इस तरह की शिकायतें लगातार पहुंच रही हैं। पंजीयक महानिरीक्षक एम.सेलवेंद्रम का कहना है नए सॉफ्टवेयर पर लगातार सुधार हो रहा है। कर्मचारी भी इसके उपयोग में बेहतर हुए हैं और शिकायतों में भी कमी आई है।

इस वजह से रजिस्ट्री अटकती

अधिकारियों का भी मानना है कि नए सॉफ्टवेयर की वजह से व्यवस्था में भी कुछ बदलाव आया है। कर्मचारी भी पूरी तरह एक्सपर्ट नहीं हुए हैं। इस वजह से कभी-कभी काम काज के दौरान तकनीकी अड़चन आ रही है। कुछ  लोगों को काम रुकने के कारण इंतजार भी करना पड़ता है तो कई बार कर्मचारी भी एक ही प्रकरण में बार-बार प्रक्रिया करके झल्ला जाते हैं। सर्विस प्रोवाइडर रमेश कुमार का कहना है सबसे ज्यादा दिक्कत पॉलीगॉन में लोकेशन और कलेक्टर रेट में बदलाव से जुड़ी है। इस वजह से रजिस्ट्री भी अटकती हैं और कई बार इसमें त्रुटि हो जाती है जिसे दुरुस्त कराने आवेदन देकर चक्कर लगाना पड़ता है। भोपाल में ही रजिस्ट्री के दौरान कभी लोकेशन अकबरपुर की जगह मालनपुर दर्ज हो जाती है तो कभी मानलपुर की जगह अकबरपुर या दूसरी जगह दिखने लगती है। इसी आधार  पर कीमत भी घट या बढ़कर रजिस्ट्री हो जाती है। इसी वजह से काम में ज्यादा समय लग रहा है। यानी जितने समय में संपदा 1.0 पर काम होता है संपदा 2.0 पर उससे दोगुना तक समय लग जाता है। इसी वजह से नए सॉफ्टवेयर पर दोगुना तक स्लॉट बुक किए जा रहे हैं।

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