जबलपुर, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक मुस्लिम महिला प्रोफेसर को धार्मिक भावनाओं को भड़काने के आरोप में जमानत दे दी है। इस मामले में जस्टिस ए के सिंह की एकलपीठ ने यह महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया कि आरोपी को अनिश्चितकाल तक जेल में नहीं रखा जा सकता। महिला प्रोफेसर के खिलाफ यह कार्रवाई एक विवादित पोस्ट सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर की गई थी।
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क्या था मामला?
डिंडौरी में अतिथि प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत डॉ. नसीम बानो पर आरोप था कि उन्होंने व्हाट्सअप ग्रुप में धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली एक टिप्पणी और वीडियो पोस्ट किया। यह वीडियो एक कार्टून था जिसमें माता सीता के अपहरण का जिक्र किया गया था। इसके साथ ही, डॉ. बानो ने पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले को लेकर एक टिप्पणी भी की थी, जिसमें उन्होंने यह लिखा था कि "आतंकवादी द्वारा धर्म पूछकर गोली मारने और 'जय श्री राम' के नारे के साथ गोली मारने में कोई फर्क नहीं है।"
इस टिप्पणी के बाद, डॉ. नसीम बानो पर धार्मिक भावनाओं को भड़कानेऔर सामाजिक सौहार्द को बिगाडऩे का आरोप लगाया गया। डिंडौरी कोतवाली पुलिस ने उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 196, 299, और 353 (2) के तहत मामला दर्ज किया था।
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कोर्ट का निर्णय
जबलपुर हाईकोर्ट की एकलपीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि डॉ. बानो 28 अप्रैल 2025 से जेल में थीं। ट्रायल कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका 30 अप्रैल 2025 को खारिज कर दी थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने यह माना कि उनके खिलाफ कोई अन्य आपराधिक मामला दर्ज नहीं है और उन्हें लंबे समय तक जेल में रखने का कोई औचित्य नहीं था।
कोर्ट ने यह भी कहा कि एक शिक्षित व्यक्ति और कॉलेज में प्रोफेसर होने के नाते डॉ. बानो को व्हाट्सअप पर संदेश भेजने में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए थी, लेकिन केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले मैसेज या वीडियो भेजने के आधार पर किसी को अनिश्चितकाल तक जेल में नहीं रखा जा सकता।
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सशर्त जमानत
हाईकोर्ट ने डॉ. नसीम बानो को सशर्त जमानत दी है। इसका मतलब यह है कि उन्हें जमानत मिलने के बाद कुछ शर्तों का पालन करना होगा, और अगर वे इन शर्तों का उल्लंघन करती हैं तो उनकी जमानत रद्द भी हो सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि मामले की जांच जारी रहेगी और ट्रायल कोर्ट अपनी कार्यवाही को जारी रखेगा।
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विरोध और समर्थन
यह मामला देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। जहां कुछ लोगों ने डॉ. बानो के विचारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत उचित ठहराया, वहीं दूसरे ने इसे धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली गंभीर गलती के रूप में देखा।
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि अदालत धार्मिक संवेदनाओं को भड़काने वाले मामलों में सख्त कार्रवाई करती है, लेकिन किसी को अनिश्चितकाल तक जेल में रखना संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। हाईकोर्ट ने डॉ. बानो को जमानत देने का आदेश देकर न्यायिक विवेक और संविधान के सिद्धांतों का पालन किया है।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का बड़ा फैसला