BHOPAL. आज की सबसे चर्चित खबर है कि मध्यप्रदेश की रियल स्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी यानी रेरा के चेयरमैन और पूर्व आईएएस अधिकारी एपी श्रीवास्तव पर ईओडब्ल्यू ने प्राथमिकी यानी प्राइमरी इन्फॉरमेशन दर्ज की है। उन पर पद के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया है। एक्टिविस्ट प्रभाष जेटली का आरोप है कि श्रीवास्तव ने रेरा में हुई नियुक्तियों में गड़बड़ी की है। आकृति बिल्डर्स के मामलों को रद्द करने पर भी उन पर सवाल खड़े किए गए हैं।
'द सूत्र' ने की 360 डिग्री पड़ताल
अब ये तो हुई एक बात। इस मामले की तह तक जाने के लिए 'द सूत्र' ने 360 डिग्री पड़ताल की। हमने यह जानने की कोशिश की कि आखिर एपी श्रीवास्तव अचानक कैसे बिल्डर्स और मीडिया के निशाने पर आ गए? क्यों उन्हें हटाने के लिए घेराबंदी की जाने लगी?
दरअसल, रेरा चेयरमैन एपी श्रीवास्तव की सख्ती से बिल्डर्स मनमानी नहीं कर पा रहे हैं। उनकी सख्ती के चलते बिल्डर्स नियम विरुद्ध प्रोजेक्ट को स्वीकृति न मिलने से अवैध कॉलोनियां काटकर मुनाफा नहीं बटोर पा रहे हैं। लिहाजा, श्रीवास्तव को हटाने के लिए पूरा खेल रचा गया है। ये हम यूं ही नहीं कह रहे। रेरा के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं। डेटा पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि बीते वर्षों में रेरा के काम में रिकॉर्ड तेजी आई है। जितने हाउसिंग प्रोजेक्ट को रेरा ने तीन सालों में स्वीकृति दी है, वे अपने आप में बेमिसाल हैं। रेरा के बदले तेवरों का सबसे ज्यादा फायदा हजारों होमबायर्स यानी घर खरीदने वालों को ही मिला है।
पहले शिकायतें अटकी पड़ी रहती थीं
गड़बड़ियों के आरोपों में घिरे एपी श्रीवास्तव के कामकाज को समझने के लिए आपको थोड़े पीछे चलना होगा। दरअसल, मध्यप्रदेश में वर्ष 2017 से भू संपदा विनियामक प्राधिकरण यानी रेरा अस्तित्व में आया। तब से साल 2020 तक रेरा में आने वाली शिकायतों की सुनवाई भी महीनों या फिर सालों तक अटकी रहती थी। वहीं कॉलोनियों को स्वीकृति देने में भी छह माह या साल भर तक लग जाता था, पर अब रेरा के तेवर बदले हैं। रेरा अब नए अवतार में धड़ाधड़ शिकायतों की सुनवाई कर उनका निराकरण कर रहा है, इससे होमबायर्स की परेशानियां कम हो गई हैं। वे अब आसानी से न केवल अपनी शिकायत रजिस्टर करा पा रहे हैं, बल्कि सीमित समय में उनकी परेशानी का समाधान हो रहा है।
कब कितनी शिकायतें आईं और फिर क्या हुआ?
प्रदेश में 2017-18 में बड़ी संख्या में कॉलोनाइजर अपने प्रोजेक्ट लेकर रेरा पहुंचे। 2199 आवेदनों से हाउसिंग प्रोजेक्ट की बाढ़ आ गई। इसमें से 1806 प्रोजेक्ट को स्वीकृति दे दी गई। हालांकि इसके बाद के साल यानी 2018-19, 2019-20, 2020-21 में नए-पुराने हाउसिंग प्रोजेक्ट के आवेदन आते रहे और प्रोजेक्ट अटकते रहे। इसी दौर में प्रदेश में अवैध कॉलोनियों का तेजी से विस्तार होता रहा।
साल-दर-साल की कहानी यह...
साल 2017-18 में रेरा के पास 2199 हाउसिंग प्रोजेक्ट स्वीकृति के लिए पहुंचे। इनमें से 1702 प्रोजेक्ट पंजीकृत करने के साथ कुल 1806 का निपटारा कर दिया गया। 395 प्रोजेक्ट विभिन्न वजहों से रोक लिए गए थे। इसके बाद साल 2018-19 में 452 नए प्रोजेक्ट रेरा पहुंचे। इस साल नए—पुराने में से 493 प्रोजेक्ट का निराकरण कर दिया गया। साल 2019-20 में 499 नए आवेदन पहुंचे। 363 लंबित प्रोजेक्ट को मिलाकर इस साल 597 प्रोजेक्ट पास किए गए और 290 लंबित रह गए थे। वहीं साल 2020—21 में लंबित 290 और नए 427 यानी कुल 731 प्रोजेक्ट पहुंचे थे। इनमें से 305 को स्वीकृति दी गई थी। इसके बाद अगले साल से रेरा के काम में जो बदलाव आया उसने प्राधिकरण को नया रूप दे दिया।
इस तरह बदली रेरा की तस्वीर
साल 2021-22 में रेरा की कमान एपी श्रीवास्तव ने संभाली। इसके साथ ही बोर्ड को भी नए सदस्य मिले। इस साल तक रेरा के पास 426 प्रोजेक्ट लंबित थे। वहीं 565 नए आवेदन पहुंचे थे। नए और पुराने कुल 992 आवेदनों में से इस वर्ष 482 प्रोजेक्ट स्वीकृत किए गए। इसके अगले साल यानी 2022-23 में 1321 आवेदनों में से 1080 को स्वीकृति मिली। साल 2023-24 में लंबित 241 और नए 1073 यानी 1314 आवेदनों में से 911 प्रोजेक्ट को स्वीकृति मिली। रेरा की स्थापना के बाद से अब तक 6460 हाउसिंग प्रोजेक्ट की स्वीकृति के लिए आवेदन पहुंचे हैं। 8 साल के कार्यकाल में रेरा ने कुल 5012 प्रोजेक्ट स्वीकृत किए गए हैं इनमें से 2993 चेयरमैन एपी श्रीवास्तव के कार्यकाल के हैं।
इस तरह बदल गई धारणा
शुरुआत से लेकर साल 2020 तक रेरा को बिल्डरों के हाउसिंग प्रोजेक्ट का पंजीयन करने वाली संस्था माना जाता था। रेरा के पास होमबायर्स के हितों के संरक्षण का सामर्थ्य है, लोग यह नहीं जानते थे। कई बार तो घर खरीदने वाले की शिकायत पर भी फैसला बिल्डर और कॉलोनाइजर्स के पक्ष में जाता था। अब बीते तीन साल में रेरा ने कार्यशैली को बदल दिया है। हाउसिंग प्रोजेक्ट की अनुमति ही नहीं होमबायर्स की शिकायत पर नोटिस जारी होने पर बिल्डर्स के माथे पर बल पड़ जाते हैं। गठन के बाद शुरुआती पांच साल यानी 2017 से 2020 तक प्राधिकरण के पास होमबायर्स की 4,249 शिकायतें पहुंची थीं। जबकि 2020 से 2024 तक 2,285 मामले आए हैं। अब इनमें से केवल 333 शिकायत ही शेष रह गई हैं।
एपी श्रीवास्तव की घेराबंदी की क्या है वजह?
रेरा चेयरमैन एपी श्रीवास्तव की अब घेराबंदी करने की बड़ी वजह एजी-8 वेंचर्स के दर्जन भर प्रोजेक्ट्स हैं। इनमें बिल्डर कंपनी ने करोड़ों रुपए लोगों से जमा कराए थे, लेकिन मकान बनाकर नहीं दिए। यह मामले साल 2015 से चल रहे हैं। होमबायर्स ने परेशान होकर रहवासी संस्था के सदस्यों के रूप में रेरा, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी एजी-8 के प्रमोटर हेमंत सोनी की शिकायत की थी। करोड़ों रुपए के इन प्रोजेक्ट से रुपए वापस न लौटाना पड़े, इसके लिए बिल्डर हेमंत सोनी ने मीडिया समूह के साथ मिलकर खुद को डिफॉल्टर घोषित कराने की साजिश भी रची थी। हालांकि रेरा और होमबायर्स की सजगता के चलते साजिश विफल हो गई। इसी से परेशान होकर राजधानी के कुछ बिल्डर-प्रमोटर्स ने रेरा चेयरमैन को घेरना शुरू कर दिया था। पिछले दिनों सरकार से भी रेरा द्वारा हाउसिंग प्रोजेक्ट अस्वीकृत करने की निराधार शिकायतें भी की गई थीं।
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