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भोपाल स्थित राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (RGPV) की पीएचडी उपाधियों को लेकर बड़ा विवाद सामने आया है। यूनिवर्सिटी पर आरोप है कि University Grants Commission (UGC) के नियमों की अनदेखी कर 291 शोधार्थियों को बिना कोर्स वर्क (Course Work) के पीएचडी की डिग्रियां दे दी गईं। अब ये डिग्रियां सवालों के घेरे में आ गई हैं।
UGC के नियमों के खिलाफ बांटी डिग्री
पूरे विवाद की जड़ 11 जुलाई 2009 की वो नोटिफिकेशन है, जिसमें यूजीसी ने पीएचडी और एमफिल उपाधियों के लिए न्यूनतम मानक और प्रोसेस से जुड़े रेगुलेशन जारी किए थे। इन नियमों के तहत कोर्स वर्क को अनिवार्य कर दिया गया था। RGPV ने इस नियम को लगभग एक साल बाद 28 जून 2010 से लागू किया। इसी एक साल के भीतर, 291 शोधार्थियों को डिग्रियां दी गईं जिनमें से किसी ने कोर्स वर्क नहीं किया था।
नेशनल लेवल कॉलेजों में पढ़ा रहे हैं डिग्रीधारी
इस मामले की गंभीरता इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि इन 291 में से लगभग 80 पीएचडी होल्डर वर्तमान में देश के प्रमुख टैक्नोलॉजी कॉलेजों में पढ़ा रहे हैं। इनमें RGPV के साथ-साथ MANIT Bhopal, SGSITS Indore, MITS Gwalior और SATI Vidisha जैसे प्रतिष्ठित संस्थान शामिल हैं।
RGPV के अनुसार 2010 में कुल 306 पीएचडी उपाधियां दी गईं। इनमें से केवल 15 शोधार्थियों ने कोर्स वर्क किया था, जबकि 291 को डिग्री उस पुराने ऑर्डिनेंस-11 के तहत दी गई जो वर्ष 2000-01 से लागू था और 2007 में संशोधित किया गया था।
उस समय कोर्स वर्क की अनिवार्यता नहीं थी, लेकिन 2009 के यूजीसी रेगुलेशन इसे अनिवार्य कर चुके थे। यूनिवर्सिटी के कार्यपरिषद के निर्णय से 2010 में इसे लागू किया, जिससे नियमों के बीच टकराव की स्थिति बन गई।
अब होगी उच्चस्तरीय जांच
डिग्रियों की वैधता को लेकर उपजा विवाद अब जांच के घेरे में है। RGPV प्रशासन ने तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाई है, जो एक माह के भीतर जांच रिपोर्ट सौंपेगी। विवि के डिप्टी रजिस्ट्रार डॉ. राजेश भार्गव ने इस मामले की नेशनल लेवल के एक्सपर्ट्स द्वारा जांच कराने की सिफारिश की है, ताकि किसी भी प्रकार की अनदेखी या अनियमितता की सटीक पड़ताल हो सके।
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फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के दायरे में पूरी प्रक्रिया
RGPV की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी अब पूरे पीएचडी अवॉर्डिंग सिस्टम की प्रक्रिया की जांच कर रही है। मुख्य आरोप यही है कि UGC के नियमों कोई RGPV ने अपनी सुविधा के अनुसार लागू किया, जिससे कोर्स वर्क के बिना डिग्रियां दे दी गईं। रिपोर्ट आने के बाद ही तय होगा कि इन डिग्रियों की मान्यता बरकरार रहेगी या रद्द की जाएगी।
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