केंद्र सरकार ने सरकारी अधिकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में शामिल होने पर रोक लगाने वाले आदेश को रद्द कर दिया है। प्रतिबंधात्मक संगठन की सूची से संघ को नौ जुलाई के आदेश से ही बाहर किया है, लेकिन इस मामले में इंदौर हाईकोर्ट ने बेहद अहम टिप्पणियां की है और साथ ही तत्कालीन केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। हाईकोर्ट ने यहां तक कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि संघ जैसे लोकहित, राष्ट्रहित में काम करने वाले संगठन को प्रतिबंधात्मक संगठन की सूची से हटाने में केंद्र सरकार को पांच दशक लग गए।
पहले देखते हैं क्या है मामला
मप्र हाईकोर्ट में यह याचिका केंद्र सरकार के सेवानिवृत्त अधिकारी पुरुषोत्तम गुप्ता ने एडवोकेट मनीष नायर के माध्यम से साल 2023 में दायर की थी। कहा कि आरएसएस द्वारा की जाने वाली सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों से प्रभावित होकर याचिकाकर्ता एक सक्रिय सदस्य के रूप में आरएसएस में शामिल होना चाहते हैं। इसकी गतिविधियों का हिस्सा बनना चाहते हैं। लेकिन इसे प्रतिबंधात्मक संगठन में रखा गया है। याचिका में कहा गया है कि आरएसएस गैर राजनीतिक संगठन है और याचिकाकर्ता को अन्य संगठनों की तरह इसकी गतिविधियों में शामिल होने का अधिकार है।
हाईकोर्ट में पेश हुआ शपथपत्र
हाईकोर्ट की सुनवाई में केंद्र की ओर से डिप्टी सॉलिसिटर जनरल हिमांशु जोशी, डिप्टी एडवोकेट जनरल अनिकेत नायक ने शपथपत्र पेश किया जिसमें बताया गया कि केंद्र ने 9 जुलाई 2024 को ही आदेश जारी कर संघ को प्रतिबंधात्मक संगठन से बाहर कर दिया है।
अब हाईकोर्ट ने संघ को लेकर की यह अहम टिप्पणियां...
हाईकोर्ट ने कहा कि देखा जाए तो केंद्र ने बता दिया है कि आरएसएस को प्रतिबंधात्मक सूची से हटा दिया है और हमें यह याचिका निराकृत कर देना चाहिए। लेकिन इस मामले में कई अहम प्रश्न सामने आए हैं। ऐसे में हम विस्तृत आदेश जारी कर रहे हैं...
- साल 1966, 1970, 1980 में आदेश जारी कर प्रतिबंधात्मक सूची में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ को डाला गया। यह मामला विशेष रूप से सबसे बड़े स्वैच्छिक गैर सरकारी संगठन में से एक से जुड़ा है।
- यह विस्तृत टिप्पणी इसलिए जरूरी क्योंकि यह सार्वजनिक और राष्ट्रीय हित में काम करने वाले किसी भी प्रतिष्ठित स्वैच्छिक संगठन को वर्तमान सरकार की सनक और पसंद के आदेश से सूली पर नहीं चढ़ाया जाए जैसा कि आरएसएस के साथ हुआ है। बीते पांच दशकों से इसके साथ हो रहा है।
- सबसे बड़ी बात यह कि धर्मनिरपेक्षता का हनन नहीं हो और अधिकारी राजनीतिक गतिविधियों में शामिल नहीं हो केवल इसी सोच के आधार पर कोई बिना किसी रिपोर्ट, सर्वे के आधार पर जारी हो सकता है क्या?
- आखिर 1960 और 1990 के दशकों में आरएसएस की गतिविधियों को किस आधार पर सांप्रदायिक माना गया और रिपोर्ट कौन सी थी, जिसके कारण सरकार इस फैसले पर पहुंची। इस सोच पर पहुंचने का क्या आधार था।
- इस तरह की कोई रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश नहीं हुई, इसके लिए कई बार पूछा गया। हाईकोर्ट ने विविध सुनवाई में इन परिपत्र को लेकर सवाल उठाए, लेकिन जवाब नहीं मिला।
- सार्वजनिक ज्ञान का विषय है कि आरएसएस सरकारी सिस्टम के बाहर एकमात्र राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित स्वसंचालित स्वैच्छिक संगठन है, जिसमें सक्रिय रूप से भाग लेने वाले देश के सभी जिलों और तालुकों में सबसे अधिक सदस्य है।
- संघ की छत्रछाया में धार्मिक, सामाजिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य और कई गैर राजनीतिक गतिविधियां संचालित हो रही है। जिनका राजनीतिक गतिविधियों से कोई लेना-देना नहीं है।
- संघ के कई सहायक संगठन जैसे सरस्वती शिशु मंदिर, राष्ट्रीय सेवा भारती और अन्य है जो सामाजिक काम करते हैं।
- अर्थ यह है कि संघ की सदस्यता लेने का लक्ष्य स्वयं को राजनीतिक गतिविधियों में शामिल करना नहीं हो सकता है और सांप्रदायिक या राष्ट्रविरोधी या धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों में शामिल होना तो फिर दूर की बात है। जब 50 साल पहले यह आदेश हुए तो इन बारीक अंतर को शायद नजरअंदाज किया गया।
- हर व्यक्ति को मौलिक अधिकार 14 और 19 के तहत अधिकार मिले हैं।
भविष्य के लिए भी दी हाईकोर्ट ने चेतावनी
यह भी ध्यान रखने की बात है कि ऐसा नही हो कि बाद में किसी सरकार की पसंद हो और किसी संगठन को फिर प्रतिबंधात्मक सूची में डाल दिया जाए। इसका स्पष्ट कारण, आधार होना चाहिए। ऐसी सामग्री होना चाहिए।
आरएसएस को सांप्रदायिक, धर्मनिरपेक्ष विरोधी बताने के गंभीर परिणाम होंगे
आरएसएस को सांप्रदायिक, धर्मनिरपेक्ष विरोधी और राष्ट्रीय हित के खिलाफ बताना एक ऐसा फैसला है जिसके गंभीर परिणाम होंगे। इस तरह के प्रतिबंध के लिए ठोस डेटा, सामग्री होना चाहिए। संघ को गलत तरीके से प्रतिबंधात्मक संगठनों की सूची में रखा गया था। इस सूची से इसे हटाना सही कदम है। इस प्रतिबंध के कारण पांच दशकों में कई कर्मचारी जो देश सेवा करना चाहते थे उनकी संख्या कम हो गई।
हर केंद्रीय सरकारी विभाग, दफ्तर में भेजे यह फैसला
हाईकोर्ट ने निर्देश दिए है कि यह केंद्र सरकार कार्मिक विभाग अपनी वेबसाइट पर नौ जुलाई का आदेश अपलोड करें और साथ ही 15 दिन के भीतर केंद्र सरकार के सभी सरकारी दफ्तर, विभागों में यह आदेश भेजा जाए।
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RSS पर हाईकोर्ट इंदौर की अहम टिप्पणी- सरकार की सनक, पसंद के कारण बेवजह लगा था बैन
मध्य प्रदेश में इंदौर हाईकोर्ट ने RSS पर बैन को लेकर अहम टिप्पणियां की है। हाईकोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि संघ जैसे राष्ट्रहित में काम करने वाले संगठन से सरकारी कर्मचारी के शामिल होने पर बैन हटाने में 50 साल लग गए...
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केंद्र सरकार ने सरकारी अधिकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में शामिल होने पर रोक लगाने वाले आदेश को रद्द कर दिया है। प्रतिबंधात्मक संगठन की सूची से संघ को नौ जुलाई के आदेश से ही बाहर किया है, लेकिन इस मामले में इंदौर हाईकोर्ट ने बेहद अहम टिप्पणियां की है और साथ ही तत्कालीन केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। हाईकोर्ट ने यहां तक कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि संघ जैसे लोकहित, राष्ट्रहित में काम करने वाले संगठन को प्रतिबंधात्मक संगठन की सूची से हटाने में केंद्र सरकार को पांच दशक लग गए।
पहले देखते हैं क्या है मामला
मप्र हाईकोर्ट में यह याचिका केंद्र सरकार के सेवानिवृत्त अधिकारी पुरुषोत्तम गुप्ता ने एडवोकेट मनीष नायर के माध्यम से साल 2023 में दायर की थी। कहा कि आरएसएस द्वारा की जाने वाली सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों से प्रभावित होकर याचिकाकर्ता एक सक्रिय सदस्य के रूप में आरएसएस में शामिल होना चाहते हैं। इसकी गतिविधियों का हिस्सा बनना चाहते हैं। लेकिन इसे प्रतिबंधात्मक संगठन में रखा गया है। याचिका में कहा गया है कि आरएसएस गैर राजनीतिक संगठन है और याचिकाकर्ता को अन्य संगठनों की तरह इसकी गतिविधियों में शामिल होने का अधिकार है।
हाईकोर्ट में पेश हुआ शपथपत्र
हाईकोर्ट की सुनवाई में केंद्र की ओर से डिप्टी सॉलिसिटर जनरल हिमांशु जोशी, डिप्टी एडवोकेट जनरल अनिकेत नायक ने शपथपत्र पेश किया जिसमें बताया गया कि केंद्र ने 9 जुलाई 2024 को ही आदेश जारी कर संघ को प्रतिबंधात्मक संगठन से बाहर कर दिया है।
अब हाईकोर्ट ने संघ को लेकर की यह अहम टिप्पणियां...
हाईकोर्ट ने कहा कि देखा जाए तो केंद्र ने बता दिया है कि आरएसएस को प्रतिबंधात्मक सूची से हटा दिया है और हमें यह याचिका निराकृत कर देना चाहिए। लेकिन इस मामले में कई अहम प्रश्न सामने आए हैं। ऐसे में हम विस्तृत आदेश जारी कर रहे हैं...
भविष्य के लिए भी दी हाईकोर्ट ने चेतावनी
यह भी ध्यान रखने की बात है कि ऐसा नही हो कि बाद में किसी सरकार की पसंद हो और किसी संगठन को फिर प्रतिबंधात्मक सूची में डाल दिया जाए। इसका स्पष्ट कारण, आधार होना चाहिए। ऐसी सामग्री होना चाहिए।
आरएसएस को सांप्रदायिक, धर्मनिरपेक्ष विरोधी बताने के गंभीर परिणाम होंगे
आरएसएस को सांप्रदायिक, धर्मनिरपेक्ष विरोधी और राष्ट्रीय हित के खिलाफ बताना एक ऐसा फैसला है जिसके गंभीर परिणाम होंगे। इस तरह के प्रतिबंध के लिए ठोस डेटा, सामग्री होना चाहिए। संघ को गलत तरीके से प्रतिबंधात्मक संगठनों की सूची में रखा गया था। इस सूची से इसे हटाना सही कदम है। इस प्रतिबंध के कारण पांच दशकों में कई कर्मचारी जो देश सेवा करना चाहते थे उनकी संख्या कम हो गई।
हर केंद्रीय सरकारी विभाग, दफ्तर में भेजे यह फैसला
हाईकोर्ट ने निर्देश दिए है कि यह केंद्र सरकार कार्मिक विभाग अपनी वेबसाइट पर नौ जुलाई का आदेश अपलोड करें और साथ ही 15 दिन के भीतर केंद्र सरकार के सभी सरकारी दफ्तर, विभागों में यह आदेश भेजा जाए।
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