बेतवा के उद्गम झिरी को सहेजने ग्रामीण विकास विभाग ने बनाई कार्य योजना

'द सूत्र' ने भी राजधानी से 25 किमी दूर रातापानी टाइगर रिजर्व में स्थित बेतवा के उद्गम स्थल की दुर्दशा को उजागर किया था। लगातार बढ़ रहे मानवीय हस्तक्षेप बेतवा की झिर सूख रही हैं।

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Sanjay Sharma
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Rural Development Department
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BHOPAL. अपने उद्गम झिरी में बेतहाशा अतिक्रमण और वृक्षों की कटाई से सिकुड़ रही जीवनदायी बेतवा को बचाने सरकार एक कदम आगे आई है। पर्यावरणप्रेमी और बेतवा में आस्था रखने वालों की अपील पर सीएम डॉ.मोहन यादव भी संजीदा हैं। 'द सूत्र' ने भी राजधानी से 25 किमी दूर रातापानी टाइगर रिजर्व में स्थित बेतवा के उद्गम स्थल की दुर्दशा को उजागर किया था। लगातार बढ़ रहे मानवीय हस्तक्षेप, कांक्रीट के निर्माण और पेड़ों की कटाई के कारण जमीन से रिसने वाली नदी की झिर सूख रही हैं। इस वजह से बेतवा का अस्तित्व खतरे में हैं।

'द सूत्र' ने Betwa के संरक्षण के लिए आवाज उठाने वाले पर्यावरण प्रेमियों की आवाज को भी सरकार तक पहुंचाया है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की पीएस दीपाली रस्तोगी ने वन विभाग, पंचायत विभाग, प्रशासनिक अधिकारियों और एन्वायरमेंट एक्टिविस्ट के साथ बैठक कर कई अहम निर्णय लिए हैं। बेतवा के उद्गम को सहेजने और प्रदेश की प्रमुख नदी को बचाने की दिशा में इस पहल को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

लाखों एकड़ खेती को सींचती है बेतवा

बेतवा मध्य प्रदेश की प्रमुख नदी है जो भोपाल के नजदीक झिरी बहेड़ा गांव से निकलने के बाद 590 किमी लंबा सफर तय करके उत्तरप्रदेश के हमीरपुर में यमुना नदी में मिल जाती है। वेत्रवती के रूप में धार्मिक महत्व रखने वाली बेतवा  मध्य प्रदेश और उत्तरप्रदेश की लाखों एकड़ खेती को सींचती है। बेतवा के पानी पर मध्यप्रदेश के रायसेन, विदिशा, सागर, अशोकनगर, टीकमगढ़, छतरपुर के साथ ही उत्तरप्रदेश के ललितपुर, जालौन, महोबा और हमीरपुर जिलों के छोटे-बड़े शहरों की पेयजल व्यवस्था भी निर्भर है। इसके बावजूद बेतवा को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। 

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आखिर रंग लाए पर्यावरण प्रेमियों के प्रयास 

रातापानी टाइगर रिजर्व के बीच स्थित होने के बावजूद बेतवा मानवीय छेड़छाड़ का शिकार है। उसके उद्गम यानी झिरी को कांक्रीट से ढंक दिया गया है। आसपास में भी कांक्रीट के निर्माण कार्य जारी है। जबकि पर्यावरण और वन्यजीवों के संरक्षित क्षेत्र में इसकी अनुमति नहीं है। बेतवा के उद्गम को संकट में डालने वाली इन गतिविधियों को एन्वायरमेंट एक्टिविस्टों ने प्रमुखता से उठाया है। इस मामले में 'द सूत्र' ने भी बेतवा की व्यथा को आमजन के साथ ही सरकार के सामने रखा है। जिसके बाद सरकार हरकत में आई है। सीएम डॉ.मोहन यादव ने भी अधिकारियों से बेतवा के उद्गम पर मंडरा रहे खतरे पर रिपोर्ट तलब की है। 

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झिरी को सहेजने बन रही व्यापक कार्ययोजना 

पर्यावरणविद् सुभाष सी. पांडे का कहना है इस अहम बैठक में उन्हें और पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले अन्य जानकारों को भी आमंत्रित कर उनकी सलाह ली गई है। इसके आधार पर सरकार कार्ययोजना तैयार कर रही है। संभवतया एक सप्ताह बाद इसका असर बेतवा के उद्गम पर नजर आ शुरू हो जाएगा। उन्होंने बताया दो दशक में विकास के नाम पर चल रहे हाउसिंग प्रोजेक्ट, मंडीदीप में औद्योगिक गतिविधियों के अलावा रायसेन-विदिशा के बीच सबसे ज्यादा संकटग्रस्त है। झिरी गांव में पक्के निर्माणों पर तुरंत रोक लगाने का निर्णय प्रमुख सचिव ने लिया है। उन्होंने भरोसा दिलाया है अब झिरी में ऐसा कोई निर्माण नहीं हो यह सुनिश्चित किया जाएगा। बेतवा के उद्गम के आसपास पहाड़ियों और लो लाइन एरिया में मानसून से पहले ज्यादा से ज्यादा पौधरोपण होगा। पहाड़ों से उतरकर बहने वाले पानी को जमीन में उतारने के लिए वॉटर बॉडी बनाने पर भी ध्यान दिया जाएगा। 

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Betwa के संरक्षण की सुध लेती रहे सरकार 

सरकार की पहल से पर्यावरण प्रेमियों में बेतवा के उद्गम को बचाने की उम्मीद बढ़ गई है। विदिशा के पर्यावरणप्रेमी मनोज शर्मा और संजय प्रजापति का कहना है सरकार जिस तेजी से बेतवा को सहेजने के लिए आगे आई है वह थमना नहीं चाहिए। अक्सर सरकार की नजर  हटते ही अधिकारी पल्ला झाड़ लेते हैं और ऐसा बेतवा के साथ न हो। पर्यावरण प्रेमियों को आशा है  झिरी को संरक्षित करने से बेतवा फिर अपने मूल स्वरूप में निर्बाध बहेगी। उसे सदानीरा बनाने वाली भूमिगत झिर भी मानवीय हस्तक्षेप से बच जाएंगी।

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