संविधान दिवस पर मंदिर प्रवेश को लेकर दिग्विजय सिंह ने किया खुलासा

संविधान दिवस पर आयोजित बहुजन इंटेलेक्ट समिट में एससी-एसटी के मंदिर प्रवेश पर दिग्विजय सिंह ने अपने पिता द्वारा किए गए ऐतिहासिक प्रयास का उल्लेख किया।

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संविधान दिवस के अवसर पर भोपाल के समन्वय भवन, न्यू मार्केट में आयोजित "All India Bahujan Intellect Summit-2024" ने संविधान के महत्व और उसके संरक्षण की आवश्यकता पर व्यापक चर्चा की। इस वर्ष का विषय "संविधान विहीन भारत: एक काल्पनिक दृष्टिकोण" था, जो देश के प्रमुख बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के विचारों का केंद्र बना।

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कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दिग्विजय सिंह ने अपने संबोधन में कहा, "संविधान भारत की आत्मा है। इसके बिना सामाजिक न्याय, समानता और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। हमें संविधान के मूल्यों को हर नागरिक तक पहुंचाने की दिशा में काम करना होगा।" उन्होंने कहा कि कांग्रेस हमेशा से संविधान की पक्षधर रही है और इसे बनाए रखना अंतिम व्यक्ति तक न्याय पहुंचाने के लिए आवश्यक है।

पिता ने किले के मंदिरों में एसटी-एससी का प्रवेश शुरू कराया था

दिग्विजय सिंह ने कहा- मैं इस बात को कह सकता हूं कि मेरा परिवार फ्यूडल बैकग्राउंड का रहा। लेकिन मेरे पिता ने 1940 में खादी पहनना शुरू किया और सन 1941 में हमारे किले में जितने भी मंदिर थे उनमें अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों का प्रवेश उसी दिन से चालू हो गया था। मैं मूल रूप से राजतंत्र में पैदा जरूर हुआ। लेकिन पैदा होने के बाद 1947 के बाद राजतंत्र समाप्त हो गया और लोकतंत्र आ गया। इसलिए मेरा जन्म जरूर राजतंत्र में हुआ, लेकिन कर्म मेरा लोकतंत्र में है, विश्वास लोकतंत्र में हैं। आपके हर प्रकार के जन आंदोलन में हम साथ हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी संविधान की रक्षा के लिए साथ खड़ी है। 

 


वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े ने कहा, "भारतीय लोकतंत्र यदि आज जीवित है तो वह संविधान की वजह से है। परंतु आज कुछ राजनीतिक दल इसे कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं।" उन्होंने चौथे स्तंभ यानी मीडिया की जिम्मेदारी पर जोर देते हुए कहा कि संविधान के बिना भारत में केवल अराजकता और असमानता रह जाएगी।

लॉ कमीशन के पूर्व सदस्य प्रो. डी. एन. संदानशिव ने कहा कि “संविधान केवल कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि यह एक सामाजिक अनुबंध है, जो भारत की विविधता को एकजुट करता है। यदि यह अनुबंध समाप्त हो जाए, तो यह संघर्ष का कारण बन जाएगा।”
वरिष्ठ पत्रकार बादल सरोज ने कहा, "संविधान विहीन भारत की कल्पना उन खतरों की ओर इशारा करती है, जो संविधान की अनदेखी से उत्पन्न हो सकते हैं। यह हमें अधिकार ही नहीं, बल्कि कर्तव्य भी प्रदान करता है। संविधान के बिना गरीबों, पिछड़ों और महिलाओं के अधिकार समाप्त हो जाएंगे।"

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सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. मनोज राजे ने कहा, "अंग्रेजों का मानना था कि भारत का लोकतंत्र आजादी के बाद विफल हो जाएगा। लेकिन हमारे संविधान निर्माताओं की दूरदृष्टि ने इसे गलत साबित किया। संविधान के कारण ही भारत का लोकतंत्र आज दुनिया में मजबूत और प्रतिष्ठित है।"

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संविधान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में दलित चिंतक प्रो डॉ. एसके सदावर्ते ने भी संबोधित किया। 

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सामाजिक कार्यकर्ता सुनील बोरसे ने संविधान को हमारी पहचान और अधिकारों का स्तंभ बताते हुए कहा, "हमें समाज के सभी वर्गों को इसके महत्व से अवगत कराना चाहिए। संविधान की रक्षा के लिए जनजागरण अभियान चलाने की योजना है।"

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इस आयोजन में बड़ी संख्या में दर्शकों ने भाग लिया। कार्यक्रम ने संविधान के प्रति जनजागरूकता बढ़ाने और इसके संरक्षण के महत्व को रेखांकित करने में अहम भूमिका निभाई। आयोजन समिति ने सभी वक्ताओं और सहभागियों का आभार व्यक्त किया। संविधान दिवस पर यह सम्मेलन संविधान की अनमोल विरासत को सुरक्षित रखने की दिशा में एक प्रेरणादायक पहल साबित हुआ।

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FAQ

एससी-एसटी के मंदिर प्रवेश को लेकर दिग्विजय सिंह ने क्या खुलासा किया?
दिग्विजय सिंह ने बताया कि उनके पिता ने 1941 में किले के मंदिरों में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों का प्रवेश शुरू कराया था।
संविधान दिवस 2024 का मुख्य विषय क्या था?
इस वर्ष का मुख्य विषय था "संविधान विहीन भारत: एक काल्पनिक दृष्टिकोण।"
दिग्विजय सिंह ने संविधान को क्या बताया?
उन्होंने संविधान को भारत की आत्मा और लोकतंत्र का आधार बताया।
कार्यक्रम में और कौन-कौन से वक्ता शामिल थे?
कार्यक्रम में अशोक वानखेड़े, प्रो. डी. एन. संदानशिव, बादल सरोज, और डॉ. मनोज राजे जैसे प्रमुख वक्ता शामिल थे।

 

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