सिंधिया राजघराने का मुखिया करता है इस मजार पर फूल गिरने तक इबादत, जानें आधी रोटी की कहानी

मध्यप्रदेश के ग्वालियर में सिंधिया राजघराने का मुखिया पितृपक्ष यानी श्राद्ध के दूसरे दिन बाबा मंसूर शाह औलिया की मजार पर इबादत करने जरूर जाता है। इसके पीछे की वजह और परंपरा क्या है आइए बताते हैं इसका रोचक इतिहास...

Advertisment
author-image
Jitendra Shrivastava
एडिट
New Update
thesootr
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

सिंधिया राज घराने के मुखिया और केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) श्राद्ध के दूसरे दिन को महाराज बाड़ा के गोरखी परिसर में स्थित देवघर पहुंचे। यहां उन्होंने परंपरागत तरीके से धोती ओढ़कर बाबा मंसूर शाह औलिया ( Baba Mansur Shah Auliya ) की इबादत की। इसके बाद सिंधिया उर्स में शामिल हुए और फूलों का गुम्बद सजाया। सिंधिया वहीं बैठकर तब तक चंवर झलते रहे, जब तक कि उस गुम्बद से एक फूल नीचे नहीं गिर गया। फूल उठाकर सिंधिया ने मत्था टेका और वहां मौजूद सभी लोगों ने उन्हें बधाई दी।

एक सूफी औलिया की इबादत इतनी शिद्दत से क्यों

सिंधिया परिवार की यह परंपरा 250 से भी अधिक सालों से लगातार चली आ रही है। कट्टर हिन्दू सिंधिया राजघराना आखिरकार एक सूफी औलिया की इबादत इतनी शिद्दत से क्यों करता है? इसका किस्सा बहुत रोचक और रोमांचक है। माना जाता है कि मंसूर शाह ने ही सिंधिया परिवार को राजवंश में बदलने का आशीर्वाद दिया और साथ में आधी रोटी दी थी। यह रोटी आज भी सिंधिया परिवार के पास सुरक्षित है।

दरअसल, सिंधिया राजशाही के संस्थापक और मराठा सेना नायक महाद जी के गुरु औलिया मंसूर शाह सोहरावर्दी थे। मंसूर शाह की मूल जगह महाराष्ट्र के बीड जिले में है और सिंधिया परिवार भी मूलतः महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक गांव से संबंध रखता है। लेखक डॉ. राम विद्रोही की किताब नागर गाथा में लिखा है कि सूफी संत मंसूर शाह के चमत्कारों के अनेक किस्से हैं। 15वीं-16वीं सदी में बीड मराठा सरदार निम्बालकर की जागीर का हिस्सा था। महाद जी सिंधिया पेशवा सेना के सेना नायक थे। पानीपत के युद्ध में मुस्लिम हमलावरों से मुकाबला करते हुए पेशवा की हार हुई थी। उसी समय महाद जी की मां सूफी संत मंसूर साहब के पास पहुंची और रोते हुए अपने बेटे की सलामती के लिए उनसे प्रार्थना करने लगी। यही पर बाबा मंसूर शाह ने कहा था कि तेरा बेटा जीवित है वापस लौटेगा और तेरी पांच पीढ़ियां राज करेंगी। 

महाराज दौलत राव सिंधिया ने ग्वालियर को बनाया राजधानी 

उस समय में जब पेशवा शाही कमजोर पड़ने लगी थी तब महाद जी ने सिंधिया साम्राज्य की स्थापना की। बाबा मंसूर का आशीर्वाद उनको फलीभूत हुआ। उज्जैन इलाके को उन्होंने राजधानी बनाया और बाबा साहब का स्थान भी, लेकिन जब सिंधिया साम्राज्य मालवा से दिल्ली तक फैलता गया तो सामरिक और नियंत्रण की दृष्टि से तत्कालीन महाराज दौलत राव सिंधिया ने अपनी राजधानी ग्वालियर को बना लिया। महाराज दौलत राव ने यहां गोरखी महल बनाया और इसी महल के परिसर में एक देवघर भी बनाया। गोरखी देवघर में चांदी के तीन सिंहासन है इनमें एक सिंहासन दोनों से बड़ा और ऊंचा है। बड़े सिंहासन के शीर्ष पर औलिया मंसूर शाह की गद्दी और कुलदेवता प्रतिष्ठित हैं।

हरे रेशमी कपड़े में लपेटकर सुरक्षित रखी है आधी रोटी

औलिया मंसूर शाह की गद्दी पर दो सोने और एक चांदी का डिब्बा रखा है। इनमें बाबा मंसूर शाह के कपड़े और पोथी आज भी सुरक्षित रखे हैं। इसी के पास मंसूर शाह महाद जी को सुरक्षा कवच के रूप में दिया गया गण्डा, सोने का ताबीज और श्रीफल भी सुरक्षित रखा है। इन सभी चीजों के साथ एक और अमानत एक हरे रेशमी कपड़े में लपेटकर सुरक्षित रखी हुई है इसकी नियमित देखभाल भी होती है। यह है एक रोटी का आधा टुकड़ा जो औलिया ने महाद जी को दिया था। 

देवघर में रखे हैं बाबा मंसूर शाह के अवशेष 

देवघर असल में सिंधिया परिवार का मंदिर है। इसके गर्भगृह में सिंधिया राजघराने के कुलदेवता ज्योतिबा नाथ महाराज के अलावा सभी हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का विग्रह है। इसी के साथ बाबा मंसूर शाह के अवशेष भी सुरक्षित रखे हैं। इनकी नियमित पूजा की जाती है। मंदिर में एक अखंड ज्यौत भी है जो सैकड़ों सालों से प्रज्ज्वलित हो रही है। बताया जाता है कि राजवंश की परंपरा के अनुसार साल में कम से कम तीन बार सिंधिया राजघराने के मुखिया यहां परम्परा के अनुसार पूजा करने जरूर पहुंचते हैं। खासतौर से विजयादशमी, श्राद्ध पक्ष की द्वितीया और मंसूर शाह के उर्स के मौके पर। गुरुवार, 19 सितंबर को भी ज्योतिरादित्य सिंधिया उर्स शरीफ के मौके पर पहुंचे थे। 

thesootr links

द सूत्र की खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें

एमपी न्यूज ग्वालियर न्यूज ज्योतिरादित्य सिंधिया पितृपक्ष एमपी न्यूज हिंदी सिंधिया राजघराने बाबा मंसूर शाह औलिया आधी रोटी की कहानी फूल गिरने की कहानी