JABALPUR. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रतिबंध हटाने के मामले में न्यायाधीशों के द्वारा की गई टिप्पणी को वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने उनकी निजी राय बताया है। हाइकोर्ट का हवाला देते हुए विवेक तन्खा ने न्यायाधीशों को यह समझाइश दी है कि वह विवादित टिप्पणी करने से बचें।
टिप्पणी न्यायाधीशों की निजी राय
आरएसएस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के नामी वकील और कांग्रेस से राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने कहा कि आरएसएस से प्रतिबंध सरकार ने अलग किया था। इस मामले में हाई कोर्ट के द्वारा फैसला सिर्फ दो लाइनों में भी किया जा सकता था, पर इस पर की गई टिप्पणी न्यायाधीशों की निजी राय है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार न्यायाधीशों को फैसले में अपनी निजी राय जाहिर नहीं करनी चाहिए।
बीजेपी से अलग होना साबित करे RSS
विवेक तन्खा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक गतिविधियों पर भी सवाल खड़ा करते हुए कहा कि आरएसएस को यह साबित करना होगा कि वह बीजेपी से नहीं जुड़ी हुई है। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी का चुनाव में आरएसएस के द्वारा पूरा समर्थन किया जाता है। विवेक तन्खा ने आगे बताया कि उन्होंने भी पिछले दो चुनाव लड़े हैं और उनके पास इसके सबूत है कि आरएसएस के द्वारा भारतीय जनता पार्टी का पूरा प्रचार और सपोर्ट किया जाता है। तो अब यह आरएसएस की जिम्मेदारी है कि वह यह साबित करें कि वह बीजेपी से नहीं जुड़ी है, क्योंकि जनता इस बात पर भरोसा नहीं करती।
इंदौर हाई कोर्ट ने सुनाया था फैसला
केंद्र सरकार ने सरकारी अधिकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में शामिल होने पर रोक लगाने वाले आदेश को रद्द कर दिया था। प्रतिबंधात्मक संगठन की सूची से संघ को नौ जुलाई के आदेश से ही बाहर किया था। इस मामले में इंदौर हाईकोर्ट ने अपने फैसले में बेहद अहम टिप्पणिया की थी और साथ ही तत्कालीन केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था। हाईकोर्ट ने यहां तक कहा था कि यह दुर्भाग्य की बात है कि संघ जैसे लोकहित, राष्ट्रहित में काम करने वाले संगठन को प्रतिबंधात्मक संगठन की सूची से हटाने में केंद्र सरकार को पांच दशक लग गए।
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