संस्कृति मंत्री धर्मेन्द्र लोधी के OSD जीवन रजक को शिखर सम्मान देने की तैयारी, क्या ये महज इत्तेफाक है?

भोपाल में संस्कृति मंत्री धर्मेन्द्र लोधी के ओएसडी, डॉ. जीवन रजक को शिखर सम्मान देने की तैयारी है। उन्होंने स्वयं अपना नाम इस पुरस्कार के लिए आगे बढ़ाया। इस पर अफसरशाही में विवाद शुरू हो गया है। क्या यह महज इत्तेफाक है या किसी और कारण से?

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Jitendra Shrivastava
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Photograph: (THESOOTR)

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BHOPAL. राजधानी भोपाल में इन दिनों डॉ. जीवन रजक का नाम सुर्खियों में है। राज्य प्रशासनिक सेवा के इस अफसर ने ऐसा कमाल किया है कि प्रशासनिक गलियारों में हलचल है। संस्कृति मंत्री धर्मेन्द्र लोधी के ओएसडी रहते हुए डॉ.रजक को संस्कृति के शिखर सम्मान से नवाजा जाने वाला है।

दिलचस्प यह कि इस सम्मान के लिए खुद रजक ने ही अपना नाम आगे बढ़ाया है। डेढ़ साल में यह तीसरा सम्मान होगा, जो रजक साहब की झोली में गिरने वाला है। उन्हें 2024 में उर्दू अकादमी पुरस्कार मिला था। 

सूत्रों की मानें तो ज्यूरी ने उनका नाम बिना हिचक मंजूर भी कर लिया। फिर जैसे ही मामला खुला तो संस्कृति विभाग में हलचल हो गई। आनन-फानन में विभाग के डायरेक्टर एनपी नामदेव ने भारती राजपूत को ज्यूरी से हटा दिया। अब नई जिम्मेदारी पूजा शुक्ला को दी है। 

पुरस्कार के पीछे की परतें

यह पहला मौका नहीं है जब डॉ. जीवन रजक सुर्खियों में आए हों। शिवराज सरकार के दौर में वे मंत्री तुलसी सिलावट के ओएसडी थे। उस वक्त भी उनका नाम विवादों से जुड़ा था। मामले ने इतना तूल पकड़ा था कि रजक को रेप केस में फंसाने की धमकी मिली थी। खुद को पत्रकार बताने वाली एक महिला ने उनसे दो करोड़ रुपए मांगे थे। धमकी से परेशान डॉ.रजक ने हबीबगंज थाने में केस दर्ज कराया था। 

नाम ज्यूरी फाइनल करती है, फिर हंगामा क्यों?

संस्कृति विभाग के भीतर सिस्टम ऐसा है कि ज्यूरी अगर किसी का नाम तय कर दे तो सरकार के स्तर पर उसमें छेड़छाड़ नहीं की जाती। जब बात ओएसडी पर आई तो अफसरशाही में कानाफूसी शुरू हो गई। आखिर कोई खुद ही अपने नाम की सिफारिश कर दे और वही पास भी हो जाए, तो इसे क्या कहा जाएगा। 

लेखक, कवि और फिल्म के नायक

डॉ.जीवन रजक साहित्य के क्षेत्र में खुद को स्थापित करने में पीछे नहीं रहे। पिछले साल उन्होंने पांचवीं किताब पुण्य प्रवाह लॉन्च की थी। इससे पहले अहसास, अंतर्मन और तुम्हारे न होने से...जैसे कविता संग्रह छप चुके हैं। इसके अलावा PSC के परीक्षार्थियों के लिए लोक प्रशासन, मनोविज्ञान और दर्शनशास्त्र पर उनकी एक किताब भी बाजार में है।

इतना ही नहीं, डॉ. साहब के संघर्ष और संवेदनशील छवि पर शॉर्ट फिल्म भी बन चुकी है, इसका नाम त्वमेव सर्वम है। भोपाल के मिंटो हॉल में इसके प्रीमियर में तुलसी सिलावट, ऊषा ठाकुर और प्रभुराम चौधरी पहुंचे थे। 35 मिनट की इस फिल्म में उनके पिता मूलचंद का किरदार अभिनेता संजय मिश्रा ने निभाया है। कहानी एक ऐसे बेटे की है, जिसने 15 नौकरियां छोड़ीं, सिर्फ इसलिए कि उसे डिप्टी कलेक्टर बनकर जनता की सेवा करनी थी।

अफसरशाही से सवाल, क्या ये सब इत्तिफाक है?

डॉ. रजक की उपलब्धियों की लिस्ट लंबी हो सकती है, लेकिन सवाल छोटा है कि क्या ओएसडी रहते हुए खुद को ही शिखर सम्मान दिला देना नैतिक रूप से सही है? डायरेक्टर ने ज्यूरी बदल दी, लेकिन क्या इससे जवाबदेही खत्म हो जाएगी? विभाग के गलियारों में चर्चा गरम है। संस्कृति मंत्री धर्मेंद्र लोधी और डायरेक्टर एनपी नामदेव के लिए यह परीक्षा की घड़ी है कि वे इस पूरे घटनाक्रम पर क्या कदम उठाते हैं।

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