एमआर 10 से लगे हुए रामकृष्ण बाग के 200 से ज्यादा रहवासी उलझ गए हैं। उनके मकान तोड़ने की उलटी गिनती शुरू हो गई है। यह जमीन श्रीराम बिल्डर्स (शशिभूषण खंडेलवाल) की है, जो उन्होंने 2003 में न्याय नगर गृह निर्माण सहकारी संस्था से खरीदी थी।
हाईकोर्ट इंदौर में कलेक्टर, एसडीएम, तहसीलदार और निगमायुक्त के खिलाफ लगी अवमानना याचिका के तहत सभी को अल्टीमेटम है कि 30 जून तक इन्हें तोड़ना ही है। ऐसा नहीं होने पर 8 जुलाई को होने वाली सुनवाई में इसपर हाईकोर्ट अधिकारियों पर ही सख्त रूख अपनाएगा।
रहवासी परेशान, 24 जून ही एक आस
रहवासियों को नोटिस भी इसके लिए भेजे जा चुके हैं। रहवासियों ने इसे लेकर अधिकारियों से मुलाकात की, विधायक रमेश मेंदोला ने भी चर्चा की लेकिन किसी के हाथ में कुछ भी नहीं है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा चुका है और कहीं से भी राहत नहीं मिली है।
आस की उम्मीद केवल 24 जून है, जिसमें जिला कोर्ट में जमीन को लेकर केस की सुनवाई है। इसमें रहवासियों को कोई राहत नहीं मिली तो फिर इसमें कुछ नहीं हो सकेगा, 30 जून तक मकान तोड़े जाएंगे।
यह है पूरा मसला
खजराना के सर्वे नंबर 66/2 की 0.720 हेक्टेयर जमीन का मसला है। यह जमीन साल 2003 में न्यायनगर संस्था से खरीदी थी। इसमें सहकारिता विभाग के अधिकारियों ने मंजूरी दी थी। बाद में यह जमीन आईडीए की स्कीम 132 (जो अब स्कीम 171 है) में आ गई। इस जमीन की आईडीए से एनओसी के लिए बिल्डर ने कोर्ट में केस लगाए और लंबी लड़ाई के बाद इसे 2019 एनओसी मिली।
इसी दौरान जमीन के अतिक्रमण हटाने के लिए भी केस लगाए। हाईकोर्ट से लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, इसमें अतिक्रमण हटाने के आदेश हुए। लेकिन शासन इसके लिए समय मांगता रहा क्योंकि रहवासियों के मकान बन चुके थे।
वहीं यह भी बात चली कि इन्हें फ्लैट दे दिए जाएं, लेकिन नियम में है कि कब्जाधारियों को यह नहीं दिए जा सकते हैं। उधर, आदेश का पालन नहीं होने पर बिल्डर ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर कर दी। इसमें हाईकोर्ट ने अधिकारियों को साफ तौर पर अंतिम चेतावनी दे दी और 30 जून तक इसका पालन करने के लिए कहा है।
जमीन पर बिल्डिंग मंजूरी भी हुई थी निरस्त
सोसायटी की जमीन भूमाफियाओं से मुक्त कराने के लिए इंदौर में तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह के समय चले भूमाफिया अभियान के दौरान सहकारिता विभाग ने न्याय नगर संस्था से श्रीराम बिल्डर्स को जमीन बिक्री की मंजूरी को निरस्त कर दिया। वहीं इसके विविध सर्वे नंबर पर निगम से हुई बिल्डिंग मंजूरी को भी निगम ने निरस्त कर दिया था।
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