श्री गुरुसिंघ सभा इंदौर के लिए हो रहे चुनाव में उतरे उम्मीदवार क्या रहत मर्यादा का पालन करते हैं? क्या वह वाकई अमृतधारी सिख है? यह सिख समाज में एक बड़ा सवाल है, क्योंकि संगत की सेवा करने का मौका इन्हीं को ही दिया जाता है। समाज की सेवा के लिए प्रतिनिधियों को संगत चुनाव के लिए जरिए चुनेगी, लेकिन चुनाव में कौन असली उम्मीदवार है, इसकी तो चुनाव अधिकारी ने पहचान ही नहीं की।
दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीएमसी) के सिरसा केस में दिल्ली हाईकोर्ट भी गुरमुखी टेस्ट का आर्डर कर चुका है। अकाल तख्त से भी इसके लिए स्पष्ट आदेश जारी है। सबसे बड़ी बात इंदौर श्री गुरुसिंघ सभा के नियमों में ही कई बातें साफ है, लेकिन चुनाव अधिकारी ने किसी भी उम्मीदवारों को लेकर इनका सत्यापन ही नहीं किया।
इंदौर श्री गुरुसिंघ सभा के नियम
इंदौर श्री गुरसिंघ सभा फर्म्स एंड सोसायटी में रजिस्टर्ड संस्था भी है। सभा के सदस्य बनने के नियम 1 में लिखा है कि-
- कम से कम 18 साल का हो
- गुरुमुकी लिख-पढ़ सकता हो या पढ़ने का प्रण करें
- वहीं कार्यकारिणी कमेटी के मेंबर के लिए नियम 19 में साफ है कि -
- कैशधारी होकर अमृतधारी हो और रहित मर्यादा में पक्का हो
- जो गुरुमुखी अच्छी तरह से लिख-पढ़ सकता हो
- जो गुटका और तंबाकू इस्तेमाल नहीं करता हो
चुनाव अधिकारी को करना थी 38 उम्मीदवारों की पहचान
चुनाव के लिए अध्यक्ष और सचिव पद के लिए दो-दो उम्मीदवार है। वहीं 17 कार्यकारिणी सदस्य के लिए 34 सदस्य है। कुल 38 उम्मीदवार मैदान में है। चुनाव नियमों में भी अमृतधारी सिख की बात है, लेकिन इसके बाद भी मुख्य चुनाव अधिकारी हरप्रीत सिंह सूदन (बक्शी) ने इस ओर ध्यान भी नहीं दिया। उन्होंने ना ही चुनाव नियमों और अकाल तख्त से आए निर्देशों का और खुद श्री गुरुसिंघ सभा के नियमों पर उम्मीदवारों को परखा।
क्या है दिल्ली हाईकोर्ट का सिरसा केस
दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के निर्वतमान अध्यक्ष मनजिंदर सिंह ने बैकडोर से इस कमेटी में फिर से आने का प्रयास किया और एसजीपीसी ने उन्हें इस कमेटी में सदस्य मनोनीत कर दिया। इस पर शिरोमणि अकाली दल के हरविंदर सिंह सरना ने आपत्ति ली और कहा कि वह अमृतधारी सिख नहीं है और उन्हें तो गुरमुखी (पंजाबी) भी लिखना और पढ़ना नहीं आता है तो वह नियमों के तहत सदस्य नहीं बन सकते हैं।
जब कमेटी ने यह कहा कि इसे लेकर स्पष्ट नियम नहीं है तो वह दिल्ली हाईकोर्ट चले गए। इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने नियमों को देखने के बाद चुनाव अधिकारी को स्पष्ट आदेश दिए कि उनका गुरमुखी टेस्ट लिया जाए। जब यह टेस्ट हुआ तो सिरसा गुरमुखी और गुरबानी टेस्ट में फेल हो गए। वह ना पंजाबी पढ़ सके और जब लिखने का कहा गया तो उनके लिखे 46 शब्द में 27 शब्द गलत थे। इसके बाद उनका मनोनयन निरस्त कर दिया गया।
इंदौर में क्यों नहीं हो सभी का धार्मिक टेस्ट
जब अकाल तख्त से ही साफ नियम है कि अमृतधारी सिख हो और गुरमुखी लिख-पढ़ सकता हो तो फिर इस मामले में बक्शी ने अभी तक किसी भी उम्मीदवार की उम्मीदवारी की जांच क्यों नहीं की? सिर्फ नामांकन फार्म लिए गए और नामांकन फार्म में भरी जानकारी को ही सत्य मानते हुए उसे मान्य कर लिया और उनकी उम्मीदवारी को अंतिम रुप दे दिया। कायदे से सभी का धार्मिक यानी गुरुमुखी टेस्ट होना चाहिए और वह असल में अमृतधारी सिख है या नहीं इसकी पहचान होना चाहिए और इसके लिए भी दावे-आपत्ति, सबूत बुलाने चाहिए जो चुनाव अधिकारी ने किए ही नहीं। इसके बाद ही उसे संगत की सेवा करने का मौका मिल सकता है।
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