नाबालिग बच्चों से शराब बनवाने का काम करने वाली सोम डिस्टलरी के वकीलों ने हाई कोर्ट में मामले को आबकारी अधिनियम और शॉप इस्टेब्लिशमेंट एक्ट के बीच इस तरह बांटा की सोम डिस्टलरी को फायदा हो गया। अब लाइसेंस रद्द करने के आदेश में अगली सुनवाई तक स्थगन मिल गया है।
बच्चों से मजदूरी करवाने और उनकी जान को जोखिम डालने के मामले में रंगे हाथों पकड़े गए सोम डिस्टलरी के मालिकों को इस सबके बाद भी कानून की पेचीदगियों और कमी के चलते हाइकोर्ट से फौरी राहत तो मिल ही गई है।
इसके साथ ही यह बात भी सामने आ गई है कि आबकारी नीति में डिस्टलरी में बाल श्रम का कोई उल्लेख या कानून नहीं है। यानी शराब दुकान में काम करने के लिए तो कर्मचारियों की उम्र निर्धारित है पर शराब के कारखाने या कहे डिस्टलरी में काम करने वाले मजदूरों के लिए ऐसा कोई नियम ही नहीं है, जिसके आधार पर लाइसेंस निरस्त करने की कार्यवाही की जा सके।
डिस्टलरी से इतने चाइल्ड लेबर रेस्क्यू
कुछ दिन पहले सोम डिस्टलरी से 58 चाइल्ड लेबर को रेस्क्यू गिया गया था। जिसमें 39 लड़के और 19 लड़कियां शामिल थीं। एनसीपीसीआर के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने अपनी टीम के साथ इस शराब फैक्ट्री में छापा मारकर इन चाइल्ड लेबर को वहां से छुड़ाया था।
इसके बाद मध्य प्रदेश सरकार ने शराब फैक्ट्री सोम डिस्टिलरीज का लाइसेंस अगले 20 दिनों या लेबर डिपार्टमेंट से रिपोर्ट आने तक (जो भी देर से हो) के लिए निलंबित कर दिया था। इस आदेश के खिलाफ सोम डिस्टलरी ने हाइकोर्ट में याचिका लगाई थी।
नियम विरुद्ध रद्द किया लाइसेंस
सोम डिस्टलरी की ओर से अधिवक्ता ने संजय अग्रवाल ने 19 जून को लाइसेंस निलंबन के आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष के द्वारा सोम डिसलरी में की गई छापे की कार्यवाही के बाद इस मामले में रायसेन के उमरावगंज थाने में FIR भी दर्ज हुई थी।
इसके दूसरे दिन 15 जून को इस कार्यवाही के बारे में समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था। इन खबरों और कार्रवाई से प्रभावित होकर एक्साइज कमिश्नर ने 16 जून को कारण बताओं नोटिस दिया था।
इसका जवाब डिस्टलरी के द्वारा देने के बाद भी 19 जून को उनका लाइसेंस बिना किसी लिखित जवाब या सुनवाई के निरस्त कर दिया गया। जबकि आबकारी अधिनियम की धारा 31 में यह स्पष्ट उल्लेख है किसी तरह के लाइसेंस में निलंबन की कार्यवाही के पहले अधिकारी को लाइसेंस धारक को लिखित में इसका कारण और सुनवाई का मौका भी दिया जाना चाहिए।
आबकारी अधिनियम की कमियों का मिला फायदा
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ने सबसे पहले तो यह तथ्य रखा की सोम डिस्टलरी शॉप एंड एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के अंतर्गत आता ही नहीं है क्योंकि वह एक शॉप नहीं है। इसके बाद लाइसेंस निलंबन की कार्यवाही केविन नियम विरुद्ध होने के आरोप लगाए।
कोर्ट ने भी अपने आदेश में लिखा कि आबकारी अधिनियम की धारा 22 के अनुसार ऐसे किसी भी परिसर में कोई 21 वर्ष या उससे कम उम्र का व्यक्ति कार्य नहीं कर सकता, जिसमें मदिरा बेची जा रही हो या पिलाई जा रही हो। सामान्य लाइसेंस नियम के उल्लंघन के आधार पर जो कार्यवाही की गई है, वह गलत है क्योंकि यह नियम दुकानों के लिए हैं, जंहा शराब पिलाई जाती है। इस नियम में डिस्टलरी या कारखानों का कहीं उल्लेख ही नहीं है ।
लाइसेंस के निलंबन पर मिला स्टे
जस्टिस संजय द्विवेदी की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि आबकारी अधिनियम की धारा 31(b) और 31 (1-A) के अनुसार लाइसेंस के निलंबन के पहले शो कॉज नोटिस में मिले जवाब से अधिकारी सन्तुष्ट क्यों नहीं थे ये लिखित में दिया जाना चाहिए।
वहीं लाइसेंस होल्डर के ऊपर यह कार्यवाही क्यों हुई है यह उसे पता होने और उसका पक्ष भी पूरा सुना जाने का अधिकार है। जस्टिस द्विवेदी ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता के ऊपर FIR दर्ज हो चुकी है और वह दोषी है या नहीं इस पर कानून के अनुसार उसे दोषी पाए बिना इस तरह की कार्यवाही नहीं की जा सकती।
इसके साथ ही कोर्ट ने सोम डिस्टलरी के लाइसेंस के निलंबन के आदेश पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है। इस मामले में प्रतिवादियों को जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय मिला है। मामले की अगली सुनवाई 26 जुलाई को होगी।
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