प्रेमानंद महाराज ने 150 पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध बना चुके भक्त को दिया मार्गदर्शन...

प्रेमानंद महाराज ने कहा कि यह प्रवृत्ति आपकी आत्म-चेतना की उपज नहीं है और न ही यह आपके वास्तविक स्वभाव का प्रतिबिंब है। महाराज जी ने आगे कहा कि यदि आप इस संस्कार से संघर्ष नहीं करेंगे और इसे पार नहीं करेंगे, तो समाज में आपकी छवि प्रभावित हो सकती है।

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Reena Sharma Vijayvargiya
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MP News : प्रेमानंद महाराज के दर्शन के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं। वे न केवल भक्तों से मिलते हैं, बल्कि उनके जीवन से जुड़ी समस्याओं को सुनकर समाधान भी सुझाते हैं। इसी सिलसिले में एक व्यक्ति महाराज से मिलने आया और उसने बताया कि वह समलैंगिक है तथा अब तक लगभग 150 पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध बना चुका है। उसने यह भी कहा कि वह भीतर से बेहद दुखी है और इस स्थिति से बाहर निकलने का कोई मार्ग उसे नहीं दिख रहा।

यह सुनकर प्रेमानंद जी महाराज ने समझाते हुए कहा कि यह प्रवृत्ति आपकी आत्म-चेतना की उपज नहीं है और न ही यह आपके वास्तविक स्वभाव का प्रतिबिंब है। यह एक प्रकार का मानसिक संस्कार है, जो समय के साथ आपके भीतर गहराता गया है। महाराज ने आगे कहा कि यदि आप इस संस्कार से संघर्ष नहीं करेंगे और इसे पार नहीं करेंगे, तो समाज में आपकी छवि प्रभावित हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि मनुष्य को यह शरीर आत्म-विकास और आत्म-नियंत्रण के लिए मिला है, न कि किसी मानसिक प्रवृत्ति के अधीन होकर जीवन बिताने के लिए।

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देशभर से आते हैं श्रद्धालु

महाराज न केवल भक्तों से आत्मीयता से मिलते हैं, बल्कि उनकी समस्याओं का समाधान भी बताते हैं। एक बार एक व्यक्ति उनसे मिला और अपनी स्थिति साझा की कि वह समलैंगिक है और अब तक 150 से अधिक पुरुषों के साथ संबंध बना चुका है।

उस व्यक्ति की स्थिति

स्वीकारोक्ति उस व्यक्ति ने अपने समलैंगिक संबंधों की बात खुलकर महाराज जी के सामने रखी, जो कि अपने-आप में एक साहसिक कदम है, क्योंकि भारत जैसे समाज में आज भी इस विषय पर खुलकर बात करना कठिन होता है।

भीतर का दुख : उसने बताया कि वह भीतर से बहुत दुखी है — इसका मतलब यह हुआ कि चाहे उसने अपने इ‘छानुसार जीवन जिया हो, लेकिन कहीं न कहीं उसे संतोष नहीं मिला।

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कम उम्र में शुरू हुआ आध्यात्मिक सफर

प्रेमानंद महाराज का आध्यात्मिक सफर बहुत ही कम उम्र में शुरू हो गया था। उन्होंने नौवीं कक्षा में ही आध्यात्मिक मार्ग को अपनाने का निर्णय ले लिया था। उस समय वे मात्र 1& वर्ष के थे। ईश्वर की खोज में उन्होंने परिवार को बिना बताए एक तडक़े सुबह तीन बजे घर छोड़ दिया था। युवावस्था में ही उन्होंने नैष्ठिक ब्रह्मचर्य की दीक्षा ली और संत जीवन को अपनाया।

उनका पहला आध्यात्मिक नाम "श्री आनंद स्वरूप ब्रह्मचारी" रखा गया। इसके बाद उन्होंने आजीवन संन्यास धारण कर लिया और आध्यात्मिक साधना में लीन हो गए। कालांतर में जब उन्होंने गहन साधना और महाकाव्य ज्ञान को अपनाया, तो उन्हें "स्वामी आनंदाश्रम" के नाम से जाना जाने लगा।

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महाराज के दृष्टिकोण की विशेषता

आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद महाराज अपने करुणामय स्वभाव, गहन आध्यात्मिकता और व्यवहारिक सलाहों के लिए जाने जाते हैं। उनके पास दूर-दराज से लोग केवल दर्शन करने ही नहीं, बल्कि अपने जीवन की कठिनाइयों का समाधान पाने की आशा लेकर भी आते हैं।

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