छात्रसंघ चुनाव से सात साल से परहेज, फिर भी छात्रों से वसूल लिए 26 करोड़

चुनावों पर पाबंदी के चलते युवा छात्रों में नेतृत्व की क्षमता घट रही है। मध्‍य प्रदेश के कॉलेजों में चुनाव नहीं होने के कारण छात्र संघ के मुद्दे पर प्रतिद्वंद्वी संगठन एनएसयूआई और एबीवीपी की भी एक राय है। इनकी मांग है कि छात्रसंघ चुनाव कराना चाहिए...

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. एक बार फिर प्रदेश के कॉलेजों में छात्रसंघ चुनाव की सुगबुगाहट चल पड़ी है। फिलहाल यह साफ नहीं है कि इस बार भी चुनाव होंगे या नहीं, लेकिन विश्वविद्यालय और उनसे संबद्ध कॉलेजों ने बीते सात सालों में छात्रसंघ चुनाव के नाम पर जमकर वसूली की है। विश्वविद्यालयों को छात्रसंघ चुनाव कराने से तो परहेज हैं लेकिन छात्रों से इसी नाम पर वसूली में ये संस्थाएं कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। प्रदेश में आखिरी बार साल 2017 में छात्र संघ चुनाव कराए गए थे और उसके बाद से छात्र लगातार चुनाव की मांग करते आ रहे हैं। प्रदेश भर में छात्र संगठन एबीवीपी_ एनएसयूआई भी छात्रों के आंदोलन कर चुके हैं। वहीं छात्र संघ चुनाव को लेकर राजधानी के बरकतउल्ला सहित प्रदेश भर के विश्वविद्यालय इस पर सहमत नहीं हैं। यही वजह है कि सरकार भी छात्र संघ चुनाव कराने की पहल करने से बच रही है। 

हर साल 75 लाख रुपया जमा होता है

प्रदेश में छात्रसंघ चुनाव को लेकर टालमटोल करने वाले विश्वविद्यालयों ने कैसे इसी नाम पर कमाई की है हम आपको बताते हैं। प्रदेश के कॉलेज में प्रवेश लेने वाले छात्रों से अलग-अलग मदों में शुल्क जमा कराया जाता है। इसी में एक मद छात्र संघ कल्याण की भी है। इसमें प्रत्येक छात्र का अंश 25 रुपए होता है। इस राशि में से 15 रुपए विश्वविद्यालय और 10 रुपए संबद्ध कॉलेज के हिस्से में आते हैं। राजधानी भोपाल स्थित बरकतउल्ला विश्वविद्यालय और इससे संबद्ध कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या करीब 3 लाख है। यानी हर साल छात्र संघ की मद में 75 लाख रुपया जमा होता है। इसमें से 40 लाख विश्वविद्यालय और 35 लाख संबद्ध कॉलेजों के हिस्से में आता है। बीते सात साल में भी छात्रों की संख्या 3 लाख से कम नहीं रही है। ऐसे में हर साल 75 लाख रुपए के औसत से अब तक कॉलेज और विश्वविद्यालय सवा 5 करोड़ रुपए वसूल चुके हैं। बरकतउल्ला सहित प्रदेश के दूसरे विश्वविद्यालय और उनसे संबद्ध कॉलेजों द्वारा छात्र संघ के नाम पर हर साल चार करोड़ रुपए वसूले जा रहे हैं। यानी सात साल में यह राशि 28 करोड़ से ज्यादा पहुंच जाती है। 

छात्र नेतृत्व को उभरने नहीं देना चाहती सरकार

प्रदेश में बीजेपी की सरकार है ओर पार्टी का सहयोगी छात्र संगठन एबीवीपी भी कॉलेजों में छात्र संघ चुनाव कराने का पक्षधर है। वहीं कांग्रेस का सहयोग छात्र संगठन एनएसयूआई भी इस मांग पर एबीवीपी से सहमत है। यानी छात्र संघ चुनाव को लेकर आपस में धुर विरोधी छात्र संगठनों में पूरी सहमति है। एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष आशुतोष चौकसे का कहना है सरकार हर बार आश्वासन का लॉलीपॉप थमा कर छात्र नेताओं से छल कर रही है। वर्तमान सीएम डॉ.मोहन यादव और पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान दोनों ही छात्र राजनीति से उभरकर आए हैं। इसके बावजूद दोनों ही छात्र संघ चुनाव टालते रहे हैं। इससे छात्रों में नेतृत्व क्षमता का विकास ही नहीं हो रहा है। क्या सरकार इससे भयभीत है कि छात्र नेतृत्व उसकी खामियों और नाकामियों को उजागर कर देंगे।

चुनाव नहीं तो छात्र संघ के नाम पर वसूली क्यों

एनएसयूआई के छात्र नेता अक्षय तोमर  और विकास ठाकुर ने भी छात्र संघ चुनाव न कराने वाले विश्वविद्यालय और सरकार पर छात्र राजनीति को दबाने के आरोप लगाए हैं। वहीं बरकत उल्ला विश्वविद्यालय की एबीवीपी इकाई के अध्यक्ष दिवाकर शुक्ला का कहना है छात्रों में नेतृत्व क्षमता का विकास हो इसके लिए प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराना जरूरी है। सरकार को छात्र संघ चुनाव कराने की पहल करनी चाहिए, क्योंकि विश्वविद्यालय प्रबंधन छात्र संघ चुनाव टालता आ रहा है। जबकि विद्यार्थियों से इसी मद में सात साल से फीस वसूली जा रही है। जब चुनाव नहीं हुए और छात्र संघ ही अस्तित्व में नहीं है तो विश्वविद्यालय और उससे संबद्ध कॉलेज छात्रों से फीस क्यों वसूल रहे हैं। इसकी भी जांच होनी चाहिए।

14 साल में दो बार हुए चुनाव, वो भी अप्रत्यक्ष

छात्र नेताओं का कहना है कि प्रदेश में दो दशक से ज्यादा समय से प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनावों पर पाबंदी है। साल 2011 में और फिर 2017 में दो बार ही छात्र आंदोलनों के चलते सरकार की पहल पर चुनाव कराए गए, लेकिन दोनों बार ही ये चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से हुए थे। इस वजह से छात्र संघ भी प्रभावी नहीं रहे। साल 2017 के बाद पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगा दी थी। तब से अब तक यह रोक जारी है। पूर्व सीएम शिवराज खुद सक्रिय छात्र राजनीति के सहारे आज इस मुकाम पर हैं। तो वर्तमान सीएम डॉ. मोहन यादव भी कॉलेज में विद्यार्थी परिषद की राजनीति करते हुए यहां तक पहुंचे हैं। छात्र राजनीति से उठकर सीएम बने दोनों नेता ही छात्र संघ चुनाव क्यों नहीं कराना चाहते यह सवाल अनुत्तरित है, जबकि प्रदेश के सभी विश्वविद्यालय और कॉलेजों के छात्र संगठन चुनाव कराने के मामले पर एकमत हैं। 

ये है कॉलेजों की स्थिति...

छात्रों की  संख्या - 14,85,457

यूनिवर्सिटी की संख्या - 16

कॉलेजों की संख्या- 570     

अनुदान प्राप्त कॉलेज- 74

उत्कृष्ट कॉलेज-  08

शासकीय कॉलेज- 1360

स्वशासी कॉलेज- 18

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