BHOPAL. मध्यप्रदेश में एक ओर भ्रष्टाचार के मामले बढ़ रहे हैं तो दूसरी ओर घपले_घोटालेबाजों पर जांच एजेंसी की कसावट ढीली पड़ रही है। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे सरकारी कारिंदे अपनी पहुंच के सहारे बच निकलने के रास्ते तलाश रहे हैं। अब हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि लोकायुक्त-इओडब्ल्यू जैसी जांच एजेंसियों की गिरफ्त में आए दागी अधिकारी अपने विरुद्ध दर्ज मामले को दबाने के लिए कार्यालयों से फाइल ही गायब कराने लगे हैं।
नगर निगम भोपाल में दो साल पहले तक प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ रहे अपर आयुक्त कमलेन्द्र सिंह की फाइलें भी उनके मूल विभाग मप्र होमगार्ड के जबलपुर कार्यालय से गायब हो गई हैं। कमलेन्द्र सिंह के विरुद्ध दर्ज रिश्वत के मामले की जांच कर रही लोकायुक्त पुलिस विभागीय जांच संबंधी जिन दस्तावेजों को तलब कर रही है वो गायब हो चुके हैं। लोकायुक्त पुलिस को ये जानकारी होमगार्ड मुख्यालय और जबलपुर कार्यालय द्वारा चिट्ठी भेजकर दी गई है। ऐसे में लोकायुक्त पुलिस की जांच आगे नहीं बढ़ पा रही है और दो साल से मामला फाइलों में ही बंद है।
दो साल से अधर में जांच
कमलेन्द्र सिंह मूल रूप से होमगार्ड में डिवीजनल कमांडेंट के पद पर पदस्थ थे। अपनी पहुंच का फायदा उठाकर वे भोपाल नगर निगम में अपर आयुक्त के पद पर प्रतिनियुक्ति पाने में कामयाब रहे। उनके पास नगर निगम में कई महत्वपूर्ण दायित्वों के साथ कौशल विकास प्रशिक्षण का काम भी था। इसी काम के बदले में एक निजी संस्था के प्रतिनिधि से रिश्वत लेने के मामले में लोकायुक्त पुलिस ने साल 2022 में उनके विरुद्ध अपराध दर्ज किया था। इस मामले के बाद कमलेन्द्र सिंह को उनके मूल विभाग वापस भेजते हुए विभागीय जांच के आदेश जारी किए गए थे। भ्रष्टाचार के आरोपी को जबलपुर होमगार्ड कार्यालय में स्टाफ ऑफीसर के पद पर तैनात कर दिया गया और तभी से वे वहां काबिज है। प्रतिनियुक्ति वापस होने के बावजूद सिंह ने भोपाल में आवंटित सरकारी आवास नहीं छोड़ा।
घर बुलाकर ली थी रिश्वत
नगर निगम के पूर्व अपर आयुक्त कमलेंद्र सिंह परिहार द्वारा रिश्वत मांगने की शिकायत आवेदक सौरभ गुप्ता ने 20 दिसंबर 2022 में की थी। गुप्ता की संस्था बालाजी साइबर द्वारा एमपीकॉन के माध्यम से भोपाल में कौशल प्रशिक्षण का कार्य किया जा रहा है। नगर निगम से 13 दिसंबर को संस्था को 13 लाख 32 हजार 437 रुपये की दूसरी किस्त जारी हुई थी। इसके एवज में तत्कालीन अपर आयुक्त कमलेंद्र सिंह परिहार ने 10% राशि की रिश्वत की मांग की थी। उनके दबाव में 15 दिसंबर को गुप्ता ने कमलेंद्र सिंह के चार इमली स्थित सरकारी आवास पर जाकर 84 हजार रुपए का भुगतान किया था। गुप्ता ने कमलेन्द्र सिंह की मांग से परेशान होकर इस लेनदेन का वीडियो भी बनाया था। जिसके आधार पर लोकायुक्त पुलिस द्वारा केस दर्ज किया गया।
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ऑफिस से ही रिकॉर्ड गायब
लोकायुक्त पुलिस द्वारा कमलेन्द्र सिंह के विरुद्ध की गई विभागीय जांच से संबंधित फाइल होमगार्ड डीआईजी कार्यालय से तलब की थी। करीब एक साल पहले मांगी गई ये फाइल अब तक लोकायुक्त पुलिस को नहीं मिली है। इसको लेकर किए गए पत्राचार के जवाब में होमगार्ड डीआईजी मनीष कुमार अग्रवाल के कार्यालय से 27 नवम्बर 2024 को जबलपुर कार्यालय को निर्देशित किया गया। जिसके पालन में जबलपुर कार्यालय से बताया गया कि प्रकरण से संबंधित रिकॉर्ड कार्यालय में उपलब्ध ही नहीं है। इसके बाद लोकायुक्त पुलिस के विधि सलाहकार होमगार्ड डीजी को भी पत्र भेज चुके हैं। हांलाकि डेढ़ साल बाद भी होमगार्ड जबलपुर और भोपाल से रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं कराया जा सका है।
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रिश्वत के आरोपी को जिम्मेदारी
रिश्वत लेते पकड़े जाने के बाद प्रतिनियुक्त वापस होने के बाद भी कमलेन्द्र सिंह अपनी पहुंच का फायदा उठाने में कामयाब रहे। उन्होंने पहले अपनी पोस्टिंग जबलपुर में डिवीजनल कमांडेंट के पद पर कराई और फिर एसडीईआरएफ में सिविल डिफेंस स्टाफ ऑफिसर का प्रभार भी हासिल कर लिया। रिश्वत के आरोपी को मूल विभाग के बाहर कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती लेकिन कमलेन्द्र सिंह के रसूख के आगे विभागीय नियम बौने साबित हो गए हैं। सिंह डेढ़ साल से दो_दो जिम्मेदारी संभाल रहे हैं और उनके विरुद्ध दर्ज भ्रष्टाचार के मामले की जांच के लिए लोकायुक्त पुलिस बेबस नजर आ रही है।