INDORE : न्याय नगर संस्था की कृष्णबाग कॉलोनी में बचे 58 मकानों को तोड़ने के मामले में मंगलवार 5 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने रहवासियों को राहत देते हुए रिमूवल की कार्रवाई पर तीन महीने का स्टे दे दिया है। इस दौरान किसी भी प्रकार की तोड़फोड़ नहीं होगी। वहीं इस फैसले से श्रीराम बिल्डर्स को सुप्रीम झटका लगा है। वह लंबे समय से इस जमीन पर कब्जे हटवाकर पजेशन लेने में जुटा था और इसके लिए हाईकोर्ट में अवमानना याचिका भी दायर की हुई थी। इसी के चलते कलेक्टर आशीष सिंह और निगमायुक्त शिवम वर्मा को कुछ मकान तोड़ने की कार्रवाई करना पड़ी थी। कलेक्टर सिंह ने स्टे मिलने की जानकारी देते हुए कहा कि रिमूवल कार्रवाई नहीं की जाएगी।
अवमानना की प्रोसिडिंग पर भी जोर नहीं दिया जाए
याचिकाकर्ता के एडवोकेट पद्मनाभ सक्सेना ने बताया कि सहकारिता विभाग की परमिशन से न्याय नगर संस्था ने श्रीराम बिल्डर को जमीन बेची थी। वह परमिशन सहकारिता विभाग ने वापस ले ली थी। इसी से संबंधित पिटिशन हाई कोर्ट में पेंडिंग है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को कहा है कि वह तीन महीने में फैसला करें और अभी यथा स्थिति बनी रहने दें। अवमानना की प्रोसिडिंग पर जोर नहीं दिया जाए।
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हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ लगी थी याचिका
दिसम्बर 2022 और सितम्बर 2023 में हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा दिए गए आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी, जिस पर मंगलवार को सुनवाई हुई। पिछले माह जिला प्रशासन ने 15 मकानों को तोड़ने की कार्रवाई की थी। ये वे मकान थे जो उस दिन खाली थे। इनमें से 5 मकान वे हैं जिन पर स्टे था। तब रहवासियों के विरोध पर प्रशासन ने 7 अगस्त तक लोगों को शिफ्ट होने को कहा था, ताकि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी हो जाए।
यह है पूरा श्रीराम बिल्डर्स का खेल
एमआर 10 से लगे हुए रामकृष्ण बाग के 200 से ज्यादा रहवासी इसमें उलझे हैं। जमीन श्रीराम बिल्डर्स (शशिभूषण खंडेलवाल) ने 2003 में न्याय नगर गृह निर्माण सहकारी संस्था से खरीदी थी। खजराना के सर्वे नंबर 66/2 की 0.720 हेक्टेयर जमीन का मसला है। यह जमीन साल 2003 में न्यायनगर संस्था से श्रीराम बिल्डर्स ने खरीदी थी। इसमें सहकारिता विभाग के अधिकारियों ने मंजूरी दी थी। बाद में यह जमीन आईडीए की स्कीम 132 (जो अब स्कीम 171 है) में आ गई। इस जमीन की आईडीए से एनओसी के लिए बिल्डर ने कोर्ट में केस लगाए और लंबी लड़ाई के बाद इसे 2019 एनओसी मिली।
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इसी दौरान जमीन के अतिक्रमण हटाने के लिए भी केस लगाए। हाईकोर्ट से लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, इसमें अतिक्रमण हटाने के आदेश हुए। शासन ने रहवासियों के मकान देख कार्रवाई नहीं की। वहीं यह भी बात चली कि इन्हें फ्लैट दे दिए जाएं लेकिन नियम में है कि कब्जाधारियों को यह नहीं दिए जा सकते हैं। उधर आदेश का पालन नहीं होने पर बिल्डर ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर कर दी जिसमें हाईकोर्ट ने अधिकारियों को साफ तौर पर अंतिम चेतावनी दे दी और रिमूवल करने के आदेश दिए।
जमीन पर बिल्डिंग मंजूरी भी हुई थी निरस्त
सोसायटी की जमीन भूमाफियाओं से मुक्त कराने के लिए इंदौर में तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह के समय चले भूमाफिया अभियान के दौरान सहकारिता विभाग ने न्याय नगर संस्था से श्रीराम बिल्डर्स को जमीन बिक्री की मंजूरी को निरस्त कर दिया, वहीं इसके विविध सर्वे नंबर पर निगम से हुई बिल्डिंग मंजूरी को भी निरस्त कर दिया था।
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