BHOPAL. इश्क और राजनीति कभी कभी एक ही जैसी लगती हैं न। तभी तो जो शेर, जो शायरियां मोहब्बत पर लिखी गईं वो राजनीति पर भी मौजू नजर आती हैं। क्या आपको ऐसा नहीं लगता। अगर नहीं लगता तो एक बार फिर मीर तकी मीर के इस शेर को ले लीजिए। एक बार फिर उसे पढ़ता हूं गौर से सुनिएगा-
इब्तिदा-ए-इश्क है रोता है क्या, आगे-आगे देखिए होता है क्या
अब इस इश्क को राजनीति कहकर पढ़े तो क्या कुछ गलत होगा। देश और मध्यप्रदेश की सियासत में जो उथलपुथल मच रही है। उसे देखकर ये कहा जा सकता है कि एक नई सियासत की शुरूआत है जिसे देखकर फिलहाल कांग्रेस के पास रोने या यूं कहें कि हाथ मलने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा है तो इब्तिदा ए सियासत तो कांग्रेस देख ही रही है और आगे-आगे क्या होता है ये भी देखना अभी बाकी है। ये शेर कांग्रेस के उस हाल के लिए कि वो तिल-तिल कर टूट रही है और बेबसी ये कि चाह कर भी कुछ कर नहीं सकती। पूरा देश हो या सिर्फ मध्यप्रदेश दोनों ही जगह हाल एक सा है। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से और खासतौर से साल 2020 के बाद से जिस तरह बीजेपी कांग्रेस को तोड़ती चली जा रही है, वो सिलसिला अब भी जारी है। शुरूआत सिर्फ कांग्रेस को तोड़ने से हुई थी और अब तो बात इंडिया गठबंधन तक जा पहुंची है।
गांधी परिवार के करीबी कांग्रेस से दूर होते गए
साल 2020 में पार्टी ने अपने सबसे बड़े नेता को बीजेपी में जाते देखा। ये नेता थे ज्योतिरादित्य सिंधिया। जो अपने साथ कुछ और कांग्रेसियों को ले गए। उनके इधर से उधर जाने पर कांग्रेस ने खूब उंगलियां उठाईं। उन्हें गद्दार और विभिषण तक कहा गया, लेकिन सिंधिया का बीजेपी में आना क्या हुआ। ऐसा लगा जैसे सियासत की धूरी के दो ग्रहों का पोर्टल ही खुल गया हो। उसके बाद एक-एक कर कई बड़े नेता और गांधी परिवार के करीबी कांग्रेस से दूर होते चले गए। ताजा हालात से पहले एक नजर जरा उन पुराने परिवारों पर डाल लीजिए जिन पर कभी कांग्रेसी होने का ठप्पा लगा था और अब वो भाजपाई रंग में रंग चुके हैं। सिंधिया घराने की बात तो आप सब जानते हैं। उसके अलावा।
8 साल में बीजेपी ने कांग्रेस सहित कई दलों को शामिल किया है
कांग्रेस मौजूदा समय में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। इन बीते आठ सालों में बीजेपी ने ना केवल अपने वोट बैंक को मजबूत किया है, बल्कि कांग्रेस समेत कई क्षेत्रिय दलों के नेताओं को भी अपने दल में शामिल किया है। आइए आपको बताते हैं कि इन आठ सालों में बीजेपी ने किन वंशवादी नेताओं को अपनी तरफ खींचने में सफलता हासिल की है।...
- पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। जाखड़ परिवार कांग्रेस की पंजाब में मजबूत नींव था।
- चार दशक से अधिक समय तक कांग्रेस में रहने के बाद बीरेंद्र सिंह 2014 में बीजेपी में शामिल हो गए। उनकी पत्नी और बेटा भी इसी पार्टी का हिस्सा बन चुके हैं।
- पश्चिम बंगाल में राजनीति की धुरी समझे जाने वाले सुवेंदु अधिकार तृणमूल कांग्रेस में थे। उनके पिता शिशिर अधिकारी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस से की थी।
- बुहुगुणा परिवार का कांग्रेस से बहुत पुराना रिश्ता था। हेमवती नंदन बुहुगुणा को इंदिरा गांधी का बेहद करीबा माना जाता था। वहीं उनके बेटे विजय बहुगुणा और रीता बहुगुणा काफी सालों तक कांग्रेस में रहे, लेकिन अब ये दोनों ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए हैं।
- मुलायम सिंह यादव परिवार की बहू अपर्णा यादव ने समाजवादी पार्टी से अपना दामन छुड़ाकर बीजेपी को अपना लिया। हालांकि, बीजेपी ने चुनाव में अपर्णा को टिकट नहीं दिया, लेकिन बावजूद इसके उन्होंने बीजेपी के झंडे तले ही अपना राजनीतिक करियर आगे बढ़ाने का फैसला किया।
- दो दशक तक कांग्रेस में रहने के बाद जतिन प्रसाद ने साल 2021 में बीजेपी का दामन थाम लिया। बता दें कि प्रसाद परिवार की तीन पीढ़िया कांग्रेस में रही हैं, लेकिन अब जतिन बीजेपी का हिस्सा है।
- कभी राहुल गांधी की टीम का एक अहम हिस्सा रहे आरपीएन सिंह जनवरी 2022 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए। बता दें की आरपीएन सिंह के पिता सीपीएन सिंह कांग्रेस के एक बड़े नेता थे। जिन्हें इंदिरा गांधी राजनीति में लेकर आई थी।
इंडिया गठबंधन के सूत्रधार नीतीश कुमार धोखा दे चुके हैं
ये तो हुई उन बड़े चेहरों की बात जिनका पार्टी छोड़ना कांग्रेस के लिए किसी सेटबैक से कम नहीं है। इन चेहरों के जाने के बाद भी कांग्रेस ने डैमेज कंट्रोल की कोई कोशिश की हो, ऐसा नजर नहीं आता। उल्टे बीजेपी ने हर बड़े नेता को नवाजने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जिसकी वजह से हर नेता बीजेपी से जुड़ना चाहता है। इंडिया गठबंधन का भी देशभर में यही हाल है। जिसके सूत्रधार नीतीश कुमार जो धोखा दे चुके हैं उसके आगे पीठ में खंजर घोंपने की कहावत भी छोटी ही नजर आ रही है। जयंत चौधरी भी भारत रत्न के ऐलान के बाद बीजेपी की तरफ नर्म हो ही चुके हैं। महाराष्ट्र से कब कोई खबर आए और महाअघाड़ी मोर्चा कमजोर पड़ जाए कहा नहीं जा सकता। आप की नाराजगी की खबरें भी आती ही जा रही हैं। ममता बनर्जी के तेवर फिलहाल ठंडे हैं। ऐसे में इंडिया गठबंधन की गठान ढीली पड़ती नजर आने लगी है।
मप्र में भी कांग्रेस ढलान की तरफ लुड़कती जा रही है
वैसे भी ये कहावत बहुत पुरानी है कि डूबते जहाज का साथ चूहे भी छोड़ देते हैं। राहुल गांधी की तमाम कोशिश और तमाम यात्राओं के बावजूद कांग्रेस का जहाज मोदी लहर पर डगमगाता ही दिख रहा है। तो फिर ये नेता तो कोई चूहे भी नहीं हैं। अपने-अपने क्षेत्र के दमदार और कद्दावर नेता हैं। जिन्हें एक बेहतर विकल्प अपने सामने नजर आ रहा है। मध्यप्रदेश में भी लगातार कांग्रेस ढलान की तरफ लुड़कती जा रही है। महाकौशल में कांग्रेस को डबल झटका लग चुका है। बहुत मेहनत से कांग्रेस ने इस बार कुछ नगर निगम पर कब्जा जमाया था। उसमें से एक अहम नगर निगम, जबलपुर के मेयर जगत बहादुर अन्नू बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। उनके अलावा डिंडोरी, सिंगरौली के भी कुछ नेता बीजेपी में शामिल हो गए। उससे बड़ा झटका कांग्रेस को तब लगा जब विवेक तन्खा के करीबी और पूर्व महाधिवक्ता शशांक शेखर भी बीजेपी का हिस्सा बन गए। राम मंदिर के नाम पर उन्होंने बीजेपी का रंग अपना लिया। वो अपने साथ करीब पचास एक्टिव कांग्रेस नेता लेकर गए हैं।
राजनीति नाम ही अस्थिरता का है, कुछ भी हो सकता है
जो हालात बने हुए हैं, उन्हें देखकर लगता है कि अभी कांग्रेस को और बड़ा सदमा लगना है। क्योंकि अन्नू और शशांक शेखर दोनों ही विवेक तन्खा के नजदीकियों में माने जाते थे। अगर अटकलें सही हुईं थीं कांग्रेस एक और बड़ा नाम गंवाने की कगार पर पहुंच चुकी है। इस बड़े फेरबदल के अलावा कुछ छुटपुट नेता अशोक नगर के भी हैं जो कांग्रेस से बीजेपी में आ गए हैं। इसमें कांग्रेस नेता अजय सिंह यादव और उनकी मां बाई साहब यादव का नाम भी शामिल है। अजय सिंह कांग्रेस के प्रवक्ता भी रहे हैं। चुनाव से पहले ऐसा ही कोई झटका ग्वालियर-चंबल से लग जाए तो हैरान मत होइएगा। मुरैना की महापौर शारदा सोलंकी पहले से ही दल बदल की अटकलों का शिकार हैं। हालांकि, वो कांग्रेस में हैं और कांग्रेस में ही रहने का दम भर रही हैं, लेकिन राजनीति नाम ही अस्थिरता का है। कभी भी कुछ भी हो सकता है।
बड़े नामों के बीजेपी में जाने की बातें चल रही हैं, खैर... बाते हैं बातों का क्या
वैसे अटकलें तो एक और बड़े नाम की हैं। जिस पर यकीन नहीं होता। पर बाते हैं बातों का क्या। तो बात ये भी सुनने में आई कि कमलनाथ भी कांग्रेस से बीजेपी में जा सकते हैं। हालांकि, फिर कहता हूं कि इस पर यकीन करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। लेकिन अटकलें उठी तो सवाल हुए जिसके जवाब में कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि हम बासे फल क्यों लेंगे। वो आना भी चाहें तो बीजेपी के दरवाजे उनके लिए बंद हैं, लेकिन कल क्या हो, किसको क्या खबर।
पुराने चेहरे बचा कर रखना भी जरूरी हैं
पर सबसे बड़ा और गंभीर सवाल ये कि कांग्रेस इसी तरह नेता गंवाती रही तो कब तक अपनी साख बचा कर रख सकेगी। जीतू पटवारी के रूप में नए चेहरे को कमान तो सौंप दी है, लेकिन पुराने चेहरे बचा कर रखना भी जरूरी हैं। छोटे से छोटा कार्यकर्ता और बड़े से बड़े नेता का जाना भी पार्टी को हार की तरफ धकेल रहा है। इंडिया गठबंधन तो इन नेताओं से भी ज्यादा कमजोर साबित होता जा रहा है। ऐसे में क्या कांग्रेस के पास कोई रणनीति है जो उसे फिर से देश की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी साबित कर सके।