फिलहाल देश और प्रदेश के लिए सबसे बड़ा मुद्दा क्या है... बेशक आप बिना वक्त गंवाए यही कहेंगे कि बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। देश और प्रदेश में बढ़ती बेरोजगारी पर सरकार के दावों और हकीकत के बीच की खाई लगातार गहराती जा रही है। युवाओं के लिए रोजगार के अवसर दिन-ब-दिन कम हो रहे हैं। इसके उलट सरकार आत्मनिर्भर भारत के नारे लगा रही है।
मौजूदा हालात ये हैं कि डिग्रीधारी युवा गुजर बसर के लिए या तो छोटे-मोटे काम करने को मजबूर हैं या फिर सड़कों पर आंदोलन-प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकारी नौकरी के मौके सीमित होते जा रहे हैं। सरकार की रोजगार नीति कागजों में जितनी सुंदर दिखती है, हकीकत में उतनी ही खोखली साबित है। फिर भी आंखों में सपने संजोए लाखों बेरोजगार युवा हर साल प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों में समय और पैसा बर्बाद कर रहे हैं।
'द सूत्र' लगातार अवाम की आवाज बुलंद करता रहा है। इसी कड़ी में हम लेकर आए हैं बेरोजगारों के सबसे बड़े मुद्दे पर सबसे बड़ी मुहिम। जब वन नेशन, वन इलेक्शन हो सकता है तो 'वन फीस' क्यों नहीं? लिहाजा, मध्यप्रदेश में 'वन टाइम फीस' सिस्टम लागू हो, यही द सूत्र की मुहिम है। देखिए टीम 'द सूत्र' की बेहद खास पेशकश...
ईसीबी में इस तरह मची है अंधेरगर्दी
मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरी मिले न मिले, लेकिन युवाओं की आर्थिक स्थिति जरूर कमजोर होती जा रही है। उनके गले में एक्जाम फीस का फंदा लटका हुआ है। जिसकी वजह है मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरियों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं के नाम पर युवाओं से भारी भरकम फीस की वसूली। ये सिर्फ जुबानी जमा खर्च नहीं है। ये स्थिति तब है, जब कर्मचारी चयन मंडल यानी ईएसबी मालामाल है। सरकारी खाते में 400 करोड़ रुपए की भारी भरकम राशि जमा है।
युवाओं का संकट यहीं खत्म नहीं होता। ऐसे दूर दूर परीक्षा सेंटर बनाए जाते हैं कि अभ्यर्थियों को वहां पहुंचने में ही 5000 रुपए तक खर्च करने होते हैं, जबकि होना यह चाहिए कि आप यदि भोपाल के रहने वाले हैं तो कायदे से आपको भोपाल सेंटर मिलना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता है। इसमें न केवल अभ्यर्थियों का पैसा बल्कि समय भी बर्बाद होता है। कुल मिलाकर अंधेरगर्दी मची है।
ऐसे समझिए कितनी है ईएसबी की कमाई
ईएसबी हर साल औसतन 12 से ज्यादा परीक्षाएं कराता है। इनमें पात्रता और चयन परीक्षाएं शामिल हैं। हर परीक्षा में औसत पांच लाख तक अभ्यर्थी शामिल होते हैं। एक अभ्यर्थी को कम से कम 500 रुपए परीक्षा फीस चुकानी होती है। यदि परीक्षा में अनारक्षित वर्ग के एक लाख अभ्यर्थी हैं तो उनसे ही 5 करोड़ रुपए मिल जाते हैं। साल भर में ऐसी परीक्षाओं में केवल अनारक्षित वर्ग से मिलने वाली फीस 60 करोड़ से ऊपर पहुंचती है। इसमें छूट प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों की फीस जोड़ दें तो यह सवा करोड़ तक पहुंच जाती है। जबकि एक अभ्यर्थी के लिए परीक्षा पर केवल औसत रूप से 250 रुपए ही खर्च होता है। यानी आधी राशि खर्च भी मान लें तो ईएसबी को हर साल 65 से 70 करोड़ तक बच जाते हैं।
इस तरह समझें खर्च और आय का गणित
आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो ईएसबी ने परीक्षाओं की फीस से अपना खजाना भर लिया है। वर्ष 2016—17 में ईएसीबी को 145 करोड़ 45 लाख रुपए की आमदमी हुई थी, इसमें से 90 लाख 95 हजार रुपए खर्च हुए थे। ऐसे ही 2017—18 में 161 करोड़ 43 लाख की आय और करीब 76 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। इस तरह सीधे तौर पर ईएसबी को दोगुना मुनाफा हुआ था। वहीं, 2018—19 में 72 करोड़ आय और 53 करोड़ 26 लाख रुपए खर्च बताया गया। 2019—20 में 80 करोड़ 65 लाख आय व 35 करोड़ 99 लाख खर्च हुए। 2020—21 में 103 करोड़ 36 लाख आय और 32 करोड़ 16 लाख रुपए खर्च हुए। बीते 10 वर्षों में सरकार को प्रतियोगी परीक्षाओं की फीस से एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की आय हुई, जबकि खर्च करीब 500 करोड़ का ही हुआ है।
इस तरह लग रही फीस
पिछले दिनों ईएसबी ने सब इंजीनियर वर्ग 3 का भर्ती विज्ञापन जारी किया था। एक उम्मीदवार की योग्यता यदि अलग-अलग दो पदों के लिए मान्य है तो उसे सभी के लिए एक ही परीक्षा नहीं देकर अलग-अलग पेपर देने पड़े। इसके लिए उसे यदि अनारक्षित का है तो 500 रुपए प्रति पेपर कोड और यदि आरक्षित वर्ग का है तो 250 रुपए प्रति पेपर कोड फीस देय होगी। वहीं, एक अभ्यर्थी ने नाम छापने की शर्त पर बताया कि वह 6 पेपर कोड के लिए योग्य था। हाल ही में तकनीकी शिक्षा, कौशल विकास व रोजगार विभाग के आईटीआई टीओ परीक्षा फॉर्म भरे गए, उसमें उसे हर पेपर कोड के लिए 250 रुपए (क्योंकि ओबीसी का है) देने पड़े। साथ ही 60 रुपए आवेदन शुल्क दिया। यानी आरक्षित वर्ग का है तो 3060 रुपए कुल देय होंगे।
एमपीपीएससी में एक हजार रुपए तक खर्च
ये तो हुई ईसीबी की बात। अब मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग और दूसरी परीक्षाओं में भी स्थिति ऐसी ही है। युवाओं के गले में फीस का फंदा लगा है। जबलपुर के आदित्य त्रिपाठी सरकार के रवैए से नाराज हैं। वे कहते हैं, एक तो कोई परीक्षा समय पर नहीं होती। दूसरा, वन टाइम फीस को लेकर कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। 2019 से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे आदित्य का कहना है कि युवाओं के खर्च लाखों में हैं। बच्चे परीक्षा की तैयारी करने बड़े शहरों में पहुंचते हैं। रहने खाने से लेकर पात्रता परीक्षा और चयन परीक्षा में उनके लाखों रुपए खर्च हो जाते हैं। प्रवीण सिंह कहते हैं, सरकार को फीस कम करनी चाहिए। यदि किसी को एक परीक्षा की मैन्स का फॉर्म भरना है तो 800 से 1000 रुपए फीस देनी होगी।
इस उदाहरण से समझिए किस तरह समय और पैसा खर्च होता है
मान लीजिए कोई अभ्यर्थी सागर का रहने वाला है और वह 10 वर्षों से परीक्षा की तैयारी कर रहा है। उसने 2014 में पात्रता परीक्षा के लिए 500 रुपए फीस दी। वह बस से एक दिन पहले सागर से भोपाल आया, जिसमें उसके आने—जाने 800 रुपए और रहने—खाने में 1500 रुपए खर्च हुए। इस तरह एक परीक्षा में उनसे 2800 रुपए खर्च किए। फिर चयन परीक्षा के फॉर्म के लिए 500 रुपए चुकाए। आने—जाने, रहने—खाने में फिर उसके 2300 रुपए खर्च हो गए। मतलब, एक ही परीक्षा के लिए वह 5600 रुपए खर्च कर चुका। नौकरी मिलेगी, अथवा नहीं... यह कोई नहीं कह सकता। अब मान लीजिए, उसने साल में पांच परीक्षाएं दीं तो 28 हजार रुपए खर्च हो गए। इसी मान से यदि गणित निकालें तो वह दस वर्ष में 2 लाख 80 हजार रुपए खर्च कर चुका। ये बहुत सतही अनुमान है, इससे कहीं ज्यादा राशि उनकी खर्च होती है। युवाओं के गले में तो फीस का फंदा लटका है।
द सूत्र अभियान
परीक्षाओं की तैयारी करने वाले निम्न और मध्यम वर्ग के ज्यादा कैंडिडेट्स होते हैं। यदि सामान्य वर्ग के लिए 500 से 700 रुपए फीस है तो हर साल 3 से 6 हजार रुपए तो परीक्षाओं की फीस हो जाती है। कई छात्र ज्यादा फीस के चलते परीक्षा नहीं दे पाते। सरकार को चाहिए कि वह सिर्फ रोजगार देने के खोखले वादों से बाहर आकर ठोस कदम उठाए। योजनाएं कागजों पर नहीं, जमीनी स्तर पर लागू हों। वन टाइम फीस की व्यवस्था की जाए, ताकि हर बार युवाओं को फीस न देना पड़े। ऐसा नहीं हुआ तो बेरोजगारी का संकट युवा शक्ति को हताशा और निराशा के अंधकार में धकेलता रहेगा।
हमें दीजिए समर्थन और सुझाव
द सूत्र लगातार इस मुद्दे को उठाता रहेगा। आप भी अपनी बात हमें मोबाइल नंबर 9827829141 पर वॉट्सऐप कर सकते हैं। आप हमें वीडियो बनाकर भेज सकते हैं। लिखकर अपनी बात भेज सकते हैं। तो जुड़िए हमारी मुहिम के साथ। आपकी बात हम सरकार तक पहुंचाएंगे।
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