संजय शर्मा/अरविंद शर्मा@भोपाल.
जब ट्रेन की बात आती है तो अब छुक-छुक करने वाले डीजल और कोयला इंजन नहीं, बल्कि वंदे भारत, शताब्दी, दुरंतो जैसी ट्रेनों की रफ्तार याद आती है। अब जेहन में आते हैं चमचमाते रेलवे स्टेशन। वाकई ट्रेन का सफर हमेशा रोमांचित करने वाला होता है। भारतीय रेलवे में काम भी कमाल का हो रहा है। मगर, इस अद्भुत मीनाकारी के बीच दीया तले अंधेरा भी है। सुरक्षा की बातें करने वाले अधिकारी मानो नशे में हैं। ( The Sootr Expose )
राष्ट्र की जीवन रेखा...यही टैग लाइन है भारतीय रेलवे की, पर दुखद यह है कि यहां कोई सुरक्षित नहीं है। महज 200 रुपए में ईमान बिक जाता है। आपको जब चाहे, जहां और जो भी सामान भेजना हो, आसानी से बल्कि हम तो कहें कि जिम्मेदारी और सुरक्षा के साथ पहुंच जाएगा।
बस आपने 200 रुपए खर्च भर किए हों
रेलवे ( Indian Railways ) की पोल खोलने के लिए 'द सूत्र' ने जब स्टिंग किया तो पूरी हकीकत सामने आ गई। टीम ने 5 दिन ट्रेनों की पड़ताल की। इसमें हैरत में डालने वाले मामले सामने आए।
स्टिंग में यह भी उजागर हुआ कि कैसे रेलवे के एसी और स्लीपर कोच में कहीं भी और कुछ भी भेजा जा सकता है। अनाधिकृत पार्सल डिलिवरी सिस्टम के इस खेल पर पढ़िए यह खास रिपोर्ट...
सीन-1
जगह: रानी कमलापति रेलवे स्टेशन, भोपाल
ट्रेन: शताब्दी एक्सप्रेस (12001)
रानी कमलापति रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर दोपहर 3.15 बजे नई दिल्ली जाने वाली शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन खड़ी थी। द सूत्र की टीम पार्सल के लिए बिस्किट और लिफाफा लेकर अटेंडर को तलाश कर रही थी। हम जैसे ही C-4 कोच के सामने पहुंचे, गेट पर अंशू नाम का अटेंडर मिला। उससे जब पार्सल ग्वालियर पहुंचाने के लिए कहा तो वो महज 200 रुपए में पार्सल ले जाने के लिए तैयार हो गया। अटेंडर ने द सूत्र से बातचीत में कहा कि वो अक्सर ऐसे पार्सल लेकर दिल्ली तक आता-जाता है। डील के मुताबिक, अटेंडर 200 रुपए और पार्सल लेकर कोच के अंदर गया और किसी दूसरे साथी से बात करके वापस आया। उसने कहा कि ग्वालियर में जो व्यक्ति पार्सल लेने आएगा, वो ट्रेन पहुंचने पर मोबाइल नंबर पर कॉल कर देगा, ताकि उसे पार्सल दिया जा सके। इस दौरान एक बात ने हमें बेहद हैरत में डाल दिया, वो ये कि अटेंडर और उसके साथी ने हमसे एक बार भी नहीं पूछा कि पार्सल में क्या है। उन्होंने बस पैसे लिए और पार्सल को टटोले बिना ही रख लिया।
सीन-2
जगह: रानी कमलापति रेलवे स्टेशन, भोपाल
ट्रेन: शान-ए-भोपाल एक्सप्रेस (12155)
पार्सल डिलिवरी सुविधा को और बारीकी से जानने के लिए द सूत्र की टीम दोबारा स्टेशन पहुंची। इस बार रानी कमलापति स्टेशन से हजरत निजामुद्दीन जाने वाली भोपाल मंडल की पहली ISO सर्टिफाइड ट्रेन शान-ए-भोपाल एक्सप्रेस के कोच B-3 में हमें मंसूर खान नाम का अटेंडर मिला। हमारे हाथ में पार्सल देखकर खुद मंसूर ने इशारा किया। हमने उसे बताया कि पार्सल को कानपुर पहुंचाना है... उसने पार्सल देखे बिना ही 200 रुपए चार्ज मांगा और पार्सल को सही सलामत कानपुर पहुंचाने का भरोसा दिलाया। लिहाजा, हमने मंसूर को पार्सल और 200 थमा दिए, जिन्हें लेकर मंसूर कोच के अंदर चला गया। अब आप सोच रहे होंगे कि शान-ए-भोपाल एक्सप्रेस तो कानपुर जाती ही नहीं है। तो इसमें खास यह है कि अटेंडर झांसी में पार्सल दूसरे अटेंडर को दे देगा और वह उसे कानपुर पहुंचा देगा।
सीन-3
जगह: रानी कमलापति रेलवे स्टेशन, भोपाल
ट्रेन: गोरखपुर-दादर स्पेशल (01028)
गोरखपुर से चलकर मुंबई के दादर जाने वाली समर स्पेशल ट्रेन 01028 रात 12 बजे रानी कमलापति रेलवे स्टेशन पहुंची थी। प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर रुकी ट्रेन के B-1 कोच के सामने द सूत्र के रिपोर्टर ने मुन्ना नाम के अटेंडर से संपर्क किया। हमने उसे भी पहले की तरह लिफाफा दिखाया और पार्सल को भुसावल पहुंचाने के लिए पूछा तो उसने भी बिना कोई सवाल किए पार्सल पहुंचाने के लिए हामी भर दी। लेकिन अटेंडर ने भुसावल तक पार्सल पहुंचाने के लिए सिर्फ 100 रुपए मांगे। हमने उसे 100 रुपए और पार्सल थमाया और उसने मुस्कुराते हुए पार्सल को सही सलामत पहुंचाने का भरोसा दिया।
किसी भी ट्रेन में भेजा जा सकता है पार्सल
तो देखा आपने! चाहे शताब्दी जैसी स्पेशल ट्रेन हो...! चाहे भोपाल मंडल की पहली ISO सर्टिफाइड ट्रेन शान-ए-भोपाल एक्सप्रेस हो या फिर गोरखपुर से चलकर मुंबई जाने वाली गोरखपुर-दादर स्पेशल ट्रेन। सभी ट्रेनों में कितनी आसानी से हमने पार्सल पहुंचाने के लिए दे दिया और किसी भी ट्रेन के अटेंडर ने पार्सल के बारे में कोई सवाल नहीं पूछा। हमने जिन ट्रेनों में जहां के लिए पार्सल भेजा, वो सही सलामत पहुंच गए। अब आप ही सोचिए कि जब वर्ल्ड क्लास सुविधा प्रदान करने का दावा करने वाले रानी कमलापति रेलवे स्टेशन से गुजरने वाली ट्रेनों में इतनी आसानी से कोई भी कुछ भी भेज सकता है तो बाकी रेलवे स्टेशनों के क्या हाल होंगे।
बुकलेट, बिस्किट और टॉफियां भेजीं
इसी खेल का खुलासा करने के लिए 'द सूत्र' ने स्टिंग ऑपरेशन को अंजाम दिया। हमारी टीम ने ऐसे पार्सल भेजे, जिनमें बुकलेट, बिस्किट, टॉफी के रैपर और खाली बॉक्स रखे थे। देश के अलग-अलग शहरों में भेजे गए पार्सल को पाने वाले व्यक्ति का केवल नाम और मोबाइल नंबर दिया गया था। बाकी कोई जानकारी ना मांगी गई और ना ही इसकी जरूरत पड़ी। स्टिंग में साफ नजर आ रहा है कि सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों के अटेंडर किस तरह 100-200 रुपए लेकर पार्सल ले जाने तैयार हो जाते हैं। वे यह नहीं जांचते कि पार्सल में क्या सामान है। कहीं इसमें मादक पदार्थ, प्रतिबंधित दवाएं या ज्वलनशील पदार्थ तो नहीं हैं। वो ध्यान ही नहीं देते कि पार्सल में कोई ऐसी सामग्री तो नहीं है जो ट्रेन में सफर कर रहे यात्रियों की सुरक्षा को खतरे में डाल दे।
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