BHOPAL. सर्पदंश के बारे में सोचते ही शरीर में सिहरन दौड़ जाती है। रौंगटे खड़े हो जाते हैं और हर कोई खौफ से कांप उठता है। जी हां, सर्पदंश आज भी जानलेवा ही बना हुआ है, क्योंकि सरकार के दावे भले ही बड़े हों लेकिन अब भी चिकित्सा संस्थाओं में इसके उपचार के लिए जरूरी एंटी स्नेक वीनम का टोटा ही है। डब्लूएचओ के आंकड़े के अनुसार देश में हर साल 60 हजार से ज्यादा लोग सर्पदंश की चपेट में आकर जान गंवा देते हैं। इनमें सबसे बड़ा आंकड़ा मध्यप्रदेश का है। यहां हर साल 2 हजार से ज्यादा लोग काल के गाल में सिर्फ इसलिए समां जाते हैं क्योंकि या तो वे समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाते या फिर उपचार के लिए एंटी स्नेक वीनम उन्हें नसीब नहीं होता।
एंटी स्नेक वीनम की कमी क्यों है ?
प्रदेश के अस्पतालों में एंटी स्नेक वीनम की कमी क्यों है ? हर साल सर्पदंश से मौत का बड़ा आंकड़ा सामने आने के बाद भी हमारा सिस्टम जरूरतमंदों को यह प्राणरक्षक दवा क्यों उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। यह बड़ा सवाल है। इसको लेकर द सूत्र ने पड़ताल की तो जो तथ्य सामने आए हैं वे माथे पर बल लाने वाले हैं।
डब्लूएचओ का आंकड़ा बताता है स्वास्थ्य सेवा का हाल
पहले बात करते हैं, सर्पदंश और उससे होने वाली मौतों की। डब्लूएचओ यानी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन का आंकड़ा है कि देश में हर साल सर्पदंश से 60 हजार से ज्यादा मौत होती हैं। इसमें भी सबसे ज्यादा मौत मध्यप्रदेश में होती हैं। यानी सर्पदंश से 2 हजार से ज्यादा लोग केवल मध्यप्रदेश में हर साल मारे जाते हैं। इसके पीछे वजह तीन प्रकार की हैं। पहली तो सर्पदंश पीड़ित को परिजन समय पर अस्पताल नहीं ले जा पाते, दूसरी अस्पतालों या मेडिकल कॉलेज में उनके उपचार के लिए एंटी स्नेक वीनम उपलब्ध नहीं होता। और तीसरे सबसे अहम वजह उपचार के लिए प्राइमरी हेल्थ सेंटर पर प्रशिक्षण स्टाफ ही नहीं होता जो एंटी स्नेक वीनम से उनका जीवन बचा सके।
आदिवासी अंचल, बुंदेलखंड और महाकौशल में ज्यादा सर्पदंश
हर साल मानसून सीजन शुरू होते ही प्रदेश में सर्पदंश की घटनाएं बढ़ जाती है। बुंदेलखंड, महाकौशल के अलावा आदिवासी अंचल के जिलों धार, झाबुआ, अलिराजपुर, बड़वानी, श्योपुर, मंडला, शहडोल, बालाघाट, नर्मदा अंचल के होशंगाबाद, नरसिंहपुर सहित चंबल क्षेत्र में भी बड़ी संख्या में सर्पदंश पीड़ित अस्पताल पहुंचते हैं। इनमें से 70 फीसदी तो सामान्य सर्प के दंश से पीड़ित होते हैं इस वजह से उन्हें बचा लिया जाता है लेकिन शेष 30 फीसदी लोगों में से कुछ का ही जीवन सुरक्षित रह पाता है। विषैले सांपों के दंश की चपेट में आए इन लोगों को या तो समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया जाता या फिर उन्हें उपचार के लिए एंटी स्नेक वीनम नहीं मिलता।
एमपी में विषधरों वाले राज्यों के मुकाबले डेथ रेशो ज्यादा
अब बात करते हैं विषैले सर्प और उनसे पीड़ित मरीजों की। देश में सबसे ज्यादा विषैले सर्प तटीय प्रदेश केरल और उत्तर पूर्व में स्थित पहाड़ी प्रदेश नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय में पाए जाते हैं। यहां सबसे विषैले किंग कोबरा, रसैल वाइपर, करैत की भरमार है। बावजूद एनसीआरबी यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का डेटा आपको हैरान कर सकता है। इतने विषैले सांप होने के बाद भी इन राज्यों में सर्पदंश से मौत का आंकड़ा प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर तमाचा है। साल 2022 में एनसीआरबी द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार सबसे ज्यादा विषधारी वाले राज्य केरल में सर्पदंश से केवल 22 लोगों की जान गई थी। जबकि उत्तर पूर्व में स्थत राज्य मेघालय में एक व्यक्ति ने सर्पदंश से दम तोड़ा था। नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर में एक भी मौत नहीं हुई। यानी सर्पदंश पीड़ितों को समय रहते उपचार मिलने से उन्हें बचा लिया गया।
प्रदेश में सर्पदंश के 10 फीसदी मामले ही हैं जानलेवा
इधर प्रदेश के आंकड़े इसके उलट हैं। मध्यप्रदेश में करीब सवा सात करोड़ आबादी है। यहां हर साल 20 हजार से ज्यादा सर्पदंश के मामले सामने आते हैं। हांलाकि इनमें से 90 फीसदी तक प्राणघातक विषदंत के मामले नहीं होते। बावजूद इसके हर साल 2 हजार से अधिक लोग सर्पदंश की भेंट चढ़ जाते हैं। ये वे लोग होते हैं जिन्हें विषैले सांप डसते हैं और उपचार में देरी और वीनम न मिलने की वजह से जान चली जाती है। एनसीआरबी के अनुसार साल 2022 में प्रदेश में 24 सौ लोग सर्पदंश की वजह से मारे गए। जबकि साल 2023 में यह संख्या 27 सौ से ज्यादा है। यानी सर्पदंश से मौत का आंकड़ा स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के बावजूद बढ़ रहा है।
हेल्थ सेंटरों पर स्टाफ नहीं और अस्पतालों में वीनम की कमी
यहां स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार की बात करना भी जरूरी है। प्रदेश में प्राइमरी हेल्थ सेंटर से लेकर मेडिकल कॉलेजों तक में एंटी स्नेक वीनम की उपब्धता तय की है। यानी मानसून सीजन में सर्पदंश पीड़ितों को नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में ही यह प्राणरक्षक दवा मिल सके ऐसी व्यवस्था की गई है। लेकिन विडम्बना यह है कि हेल्थ सेंटर पर इसके लिए प्रशिक्षित स्टाफ ही नहीं है। दूरस्थ अंचल के केंद्रों पर तो सामान्य स्टाफ ही नहीं रहता ऐसे में वीनम लगाने की व्यवस्था नहीं हो पाती।
सर्पदंश पीड़ित को जैसे-तैसे सामुदायिक या जिला अस्पताल अथवा मेडिकल कॉलेज ले जाना पड़ता है, लेकिन राजधानी से दूर स्थित जिलों में भी एंटी स्नेक वीनम की उपलब्धता पर्याप्त नहीं होती। साल 2023 में प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित चार बड़े नगरों की बात करें तो स्थिति को आप समझ पाएंगे। भोपाल के सीएचएमओ स्टोर में जहां बीते साल 109 और सीएस यानी सिविल सर्जन स्टोर में केवल 30 वाइल ही एंटी स्नेक वीनम उपलब्ध था। वहीं इंदौर में 131 और 50, जबलपुर में 625 और 345 जबकि ग्वालियर में 48 और 50 वाइल ही एंटी स्नेक वीनम की उपलब्धता थी। वहीं प्रदेश के अन्य अंचलों में यह बहुत सीमित मात्रा में उपलब्ध कराया गया था। चिकित्सकों के अनुसार सर्पदंश के एक मामले में मरीज को दस वाइल का डोज देना होता है। इस लिहाज से वीनम की उपलब्धता कितनी कम है इसका अंदाज और स्वास्थ्य सेवाओं के दावे को समझा जा सकता है।
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