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छिंदवाड़ा के आदिवासी गांवों के बाद अब मध्य प्रदेश के अन्य जिलों में भी रावण दहन पर रोक की मांग उठ रही है। इसकी शुरुआत उज्जैन महाकाल मंदिर से हुई है। दरअसल उज्जैन के महाकाल मंदिर के पुजारी और अखिल भारतीय युवा ब्राह्मण समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश शर्मा ने रावण दहन पर रोक लगाने की मांग की है। उन्होंने मुख्यमंत्री मोहन यादव को पत्र लिखते हुए कहा कि रावण का दहन ब्राह्मणों का अपमान है। उन्होंने यह भी कहा कि रावण ने द्वापर युग में माता सीता का हरण अपने कुल के उद्धार के लिए किया था, न कि किसी व्याभिचारी प्रवृत्ति से।
आदिवासी भी मानते हैं रावण को
बता दें कि आदिवासी गांवों में नवरात्रि में रावेन पेन की पूजा की परंपरा रही है, जहां रावण का नहीं, बल्कि स्थानीय देवता ( navratri raven pen chhindwara ) का सम्मान किया जा रहा है। आदिवासी समुदाय के लोग बताते हैं कि रावेन पेन रामायण के रावण नहीं, बल्कि उनके पूर्वजों द्वारा पूजे जाने वाले देवता हैं। इतना ही नहीं आदिवासी समुदाय भी रावण दहन और महिषासुर विसर्जन का विरोध करते आया है। प्रदेश के कई जिलों में रावण के मंदिर भी हैं, जो बताते हैं कि रावण की पूजा करने की परंपरा इस समाज में है। विदिशा जिले के रावन गांव में दशहरे को रावण की प्रतिमा का पूजन किया जाता है।
रावण दहन की परंपरा पर उठाए सवाल
दशहरे के मौके पर 12 अक्टूबर को देशभर में रावण के पुतलों का दहन किया जाएगा, लेकिन महेश शर्मा ने इसे ब्राह्मण समाज के लिए अपमानजनक बताया। उनका कहना है कि रावण का दहन करने से ब्राह्मणों की बदनामी होती है और यदि किसी का पुतला जलाना है, तो उन्हें जलाया जाए जो महिला उत्पीड़न और हत्याएं करते हैं।
ब्राह्मण कुल का अपमान
महेश शर्मा के अनुसार, रावण का ज्ञान और शक्ति त्रिकालदर्शी थी और उन्होंने सीता हरण अवश्य किया, लेकिन उन्हें अशोक वाटिका में सम्मानपूर्वक रखा। संगठन के सदस्य रुपेश मेहता ने कहा कि रावण के दहन के पीछे ब्राह्मणों को अपमानित करने का षड्यंत्र है, जिसे बंद किया जाना चाहिए। उनका मानना है कि समाज को पहले अपनी राक्षस प्रवृत्ति पर ध्यान देना चाहिए और फिर दूसरों को दोष देना चाहिए।
छिंदवाड़ा में गोंडवाना महासभा ने सौंपा ज्ञापन
बता दें कि छिंदवाड़ा जिले के रावणवाड़ा गांव में रावण का मंदिर भी है। यहां के आदिवासी समाज के लोग रावण को अपना देवता मानते हैं। इसी तरह कई जगहों पर मेघनाथ की भी पूजा की जाती है। यही कारण है कि आदिवासी समाज के लोग दशहरे पर रावण दहन का विरोध करते हैं और इसे रोकने की मांग भी करते हैं। यही कारण है कि गोंडवाना महासभा ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर विरोध जताया है और मांग की है कि समाज खंडराई पेन और महिषासुर पेन की पूजा करता है। अत: उनका पुतला देवी की प्रतिमा के साथ विसर्जित नहीं किया जाए। साथ ही गांवों में रावेन की प्रतिमा हमारे समाज ने स्थापित की है उसे प्रशासन संरक्षण और अनुमति दे और रोक न लगाए।
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