खुल गए उज्जैन के नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट, साल में केवल एक दिन ही खुलते हैं मंदिर के पट

उज्जैन में नागपंचमी पर श्री महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष पर स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट 24 घंटे के लिए खोले गए, जहां लाखों श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। यह दुर्लभ दर्शन साल में एक बार ही होते हैं।

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Kaushiki
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आस्था और भक्ति का अद्वितीय संगम एक बार फिर उज्जैन की पावन भूमि पर देखने को मिला। यहां आज (29 जुलाई, 2025) नागपंचमी के पावन अवसर पर श्री महाकालेश्वर मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट श्रद्धालुओं के लिए खोले गए।

मंगलवार की मध्यरात्रि 12 बजे जैसे ही मंदिर के कपाट खुले। घनघोर बारिश के बावजूद लाखों की संख्या में भक्तगण भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने के लिए उमड़ पड़े। यह एक ऐसा क्षण होता है, जब वर्ष भर में केवल 24 घंटे के लिए ही इस दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन देते हैं।

विधि-विधान से पूजन

महानिर्वाणी अखाड़ा के महंत श्री विनीत गिरी महाराज ने विधि-विधान से त्रिकाल पूजन कर इस पवित्र अनुष्ठान का शुभारंभ किया। इसके बाद, श्रद्धालुओं के लिए दर्शन का सिलसिला शुरू हुआ, जो आज रात 12 बजे तक जारी रहेगा। प्रशासन के अनुमान के मुताबिक, लगभग 10 लाख श्रद्धालुओं के यहां पहुंचने की संभावना है।

इस विशाल जनसैलाब को व्यवस्थित करने और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 200 वरिष्ठ अधिकारी, 25 सौ कर्मचारी, 18 सौ पुलिसकर्मी और 560 सीसीटीवी कैमरे तैनात किए गए हैं, जो व्यवस्था बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

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24 घंटे के लिए ही खुलते हैं मंदिर के पट

बता दें कि, मंदिर की यह विशेषता है कि इसके पट वर्ष में केवल एक बार नागपंचमी के दिन ही खोले जाते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे देखने के लिए देश-विदेश से भक्त उज्जैन आते हैं।

आज रात 12 बजे, महानिर्वाणी अखाड़ा की ओर से एक बार फिर पूजन किया जाएगा। शाम को भगवान महाकाल की आरती के बाद पुजारियों और पुरोहितों द्वारा अंतिम पूजन संपन्न होगा, जिसके बाद रात 12 बजे मंदिर के पट एक वर्ष के लिए बंद कर दिए जाएंगे।

दर्शन व्यवस्था

नागचंद्रेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए प्रशासन ने एक विस्तृत और सुव्यवस्थित व्यवस्था की है। श्रद्धालु सबसे पहले अस्थाई जूता स्टैंड पर अपने जूते-चप्पल रखेंगे।

इसके बाद, चारधाम मंदिर से लाइन में लगकर बेरिकेडिंग के माध्यम से हरसिद्धि मंदिर चौराहा होते हुए, बड़ा गणेश मंदिर के सामने से होते हुए गेट क्रमांक 4 से प्रवेश करेंगे।

यहां से वे विश्रामधाम होकर एयरो ब्रिज के जरिए सीधे नागचंद्रेश्वर मंदिर तक पहुंचेंगे। दर्शन के बाद, श्रद्धालु उसी ब्रिज के रास्ते वापस विश्रामधाम आएंगे और नीचे मार्बल गलियारे से होकर यातायात प्रीपेड बूथ के पास से बाहर निकलेंगे। इसके बाद, वे सीधे हरसिद्धि चौराहे की ओर जा सकेंगे।

वहीं, महाकाल मंदिर की दर्शन व्यवस्था भी श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखकर बनाई गई है। श्रद्धालु महाकाल लोक के नंदी द्वार से प्रवेश करेंगे।

इसके बाद, मानसरोवर भवन से टनल के रास्ते मंदिर के कार्तिकेय मंडपम तक पहुंचेंगे। वहां से नीचे उतरकर गणेश मंडपम से महाकालेश्वर भगवान के दर्शन कर पाएंगे। दर्शन के बाद, वे आपातकालीन मार्ग से बाहर निकलकर सीधे अपने गंतव्य की ओर जा सकेंगे।

नागचंद्रेश्वर मंदिर की कुछ प्रमुख विशेषताएं

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  • दुर्लभ प्रतिमा: भगवान शिव और माता पार्वती एक फन फैलाए हुए नाग के आसन पर विराजमान हैं।
  • सप्तमुखी नाग: प्रतिमा में सप्तमुखी नाग देवता भी दर्शाए गए हैं।
  • वाहन: शिवजी के वाहन नंदी और पार्वतीजी का वाहन सिंह भी प्रतिमा में विराजित हैं।
  • नाग आभूषण: शिवजी के गले और भुजाओं में नाग लिपटे हुए हैं, जो मूर्ति की दिव्यता बढ़ाते हैं।

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नागचंद्रेश्वर मंदिर का इतिहास

नागचंद्रेश्वर भगवान (उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर) की प्रतिमा का इतिहास 11वीं शताब्दी से जुड़ा है। यह एक अत्यंत दुर्लभ और अद्वितीय प्रतिमा है, जिसमें भगवान शिव और माता पार्वती एक विशाल फन फैलाए हुए नाग के आसन पर विराजमान हैं।

शिवजी नाग शैय्या पर लेटे हुए दिखाई देते हैं और उनके साथ मां पार्वती तथा भगवान श्रीगणेश की प्रतिमाएं भी मौजूद हैं। इस प्रतिमा की विशिष्टता इसमें दर्शाए गए सप्तमुखी नाग देवता हैं, जो इसकी अलौकिकता को और बढ़ाते हैं।

शिवजी और पार्वतीजी के वाहन नंदी और सिंह भी इस प्रतिमा में विराजमान हैं। शिवजी के गले और भुजाओं में नागों का लिपटा होना इस मूर्ति को एक दिव्य और अद्भुत स्वरूप प्रदान करता है। साल में एक दिन खुलता है नागचंद्रेश्वर मंदिर।

महाकालेश्वर मंदिर की संरचना

श्री महाकालेश्वर मंदिर की संरचना तीन खंडों में विभाजित है। सबसे नीचे भगवान महाकालेश्वर का पवित्र गर्भगृह है, दूसरे खंड में ओंकारेश्वर मंदिर और तीसरे तथा शीर्ष खंड पर श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है।

इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण परमार वंश के राजा भोज ने लगभग 1050 ईस्वी में करवाया था। बाद में, 1732 ईस्वी में सिंधिया राजघराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।

ऐसा भी माना जाता है कि श्री नागचंद्रेश्वर भगवान की यह दुर्लभ प्रतिमा नेपाल से लाकर मंदिर में स्थापित की गई थी, जो इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को और बढ़ाती है।

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