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हिंदू धर्म में सावन मास को अत्यंत पवित्र और पूजनीय माना जाता है। यह पूरा महीना भगवान शिव की आराधना को समर्पित है। इसी पवित्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का पावन पर्व मनाया जाता है।
यह दिन नाग देवताओं को समर्पित है, जिनकी पूजा और अर्चना करने से जीवन में आने वाली कई बाधाएं दूर होती हैं और शुभ फल प्राप्त होते हैं। इस अवसर पर श्रद्धालु उपवास रखते हैं और व्रत कथा का पाठ कर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
नाग पंचमी का त्योहार सदियों से भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति और वन्यजीवों के प्रति सम्मान और संरक्षण का संदेश भी देता है। तो आइए जानें 2025 में नाग पंचमी कब है और इस दिन की जाने वाली पूजा विधि के बारे में जानें।
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नाग पंचमी 2025 में कब हैपंचांग के मुताबिक, वर्ष 2025 में सावन शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि का आरंभ 28 जुलाई की रात्रि 11:24 बजे होगा और इसका समापन 30 जुलाई प्रात: 12:46 बजे होगा। उदया तिथि के मुताबिक, नाग पंचमी का पर्व 29 जुलाई, मंगलवार को मनाया जाएगा। इस दिन पूजा का शुभ समय सुबह 5:41 बजे से लेकर 8:23 बजे तक रहेगा। पूजा की कुल अवधि लगभग 2 घंटे 43 मिनट की होगी। इस शुभ मुहूर्त में नाग देवताओं की पूजा करने से भक्तों को विशेष फल प्राप्त होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। |
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क्यों चढ़ाया जाता है नागों को दूध
नाग पंचमी के दिन नागों को दूध पिलाने या चढ़ाने की परंपरा बहुत पुरानी है। इसके पीछे कई धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।
भविष्य पुराण का महत्व:
भविष्य पुराण के ब्रह्मा पर्व में नाग पंचमी से जुड़ी एक विशेष कथा का वर्णन मिलता है। इसके मुताबिक, सुमंतु मुनि ने राजा शतानीक को इस व्रत की महिमा सुनाई थी। बताया गया है कि श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन नागलोक में विशेष उत्सव मनाया जाता है।
जो व्यक्ति इस दिन नागों को गाय के दूध से स्नान कराता है, उसके कुल को नाग देवता भयमुक्त कर देते हैं और काल सर्प दोष से छुटकारा मिलता है। दूध को पवित्र और शुद्ध माना जाता है, इसलिए इसे नागों को अर्पित करना शुभ फलदायी होता है।
महाभारत का प्रसंग:
महाभारत में वर्णित एक प्रसंग के मुताबिक, जब राजा जन्मेजय ने अपने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्पों के विनाश हेतु सर्पयज्ञ करवाया, तब उस यज्ञ में अनेक नाग जलने लगे थे।
उसी समय, आस्तिक मुनि ने उस यज्ञ को रोक दिया और नागों की रक्षा की। यह घटना भी श्रावण शुक्ल पंचमी की तिथि पर घटी थी। इस दिन नागों की रक्षा हुई थी, इसलिए उनकी शांति और सम्मान के प्रतीक के रूप में उन्हें दूध चढ़ाया जाता है।
शांति और सुरक्षा की कामना:
दूध को शांत और शीतल माना जाता है। नागों को दूध अर्पित करने से उन्हें शीतलता और शांति मिलती है, जिससे वे प्रसन्न होते हैं। ऐसी मान्यता है कि नागों को दूध पिलाने से वे घरों में प्रवेश नहीं करते और सर्पदंश का भय दूर होता है। यह एक तरह से नागों से अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा की प्रार्थना भी है।
नाग पंचमी की पूजा विधि
इस दिन नाग देवताओं की पूजा विशेष विधि-विधान से की जाती है। यह पूजा घर पर या मंदिरों में की जा सकती है।
- स्नान और संकल्प: इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर हाथ में जल और पुष्प लेकर नाग पंचमी व्रत का संकल्प लें।
- नाग देवता की स्थापना: पूजा के लिए एक स्वच्छ चौकी पर नाग देवता की मिट्टी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। कुछ लोग चांदी या तांबे के नाग-नागिन के जोड़े की भी पूजा करते हैं।
- पूजन सामग्री अर्पित करें: नाग देवता को हल्दी, रोली, अक्षत, पुष्प और चंदन अर्पित करें। धूप और दीपक जलाकर उनका पूजन करें।
- दूध का अर्पण: गाय के दूध में थोड़ा घी और चीनी मिलाकर मिश्रण तैयार करें। इस मिश्रण को नाग देवता को अर्पित करें। कुछ लोग इस दूध को नागों के बिल या बांबी के पास भी रखते हैं, लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जीवित सांपों को दूध पिलाना उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। पूजा में प्रतीक रूप से दूध चढ़ाना ही अधिक मान्य है।
- व्रत कथा और आरती: अंत में नाग पंचमी व्रत कथा का पाठ करें और नाग देवता की आरती करें। प्रसाद वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें। इस दिन नाग देवता के मंत्रों का जाप करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
नाग पंचमी का महत्व और मान्यताएं
नाग पंचमी का पर्व सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, जिन लोगों की कुंडली में काल सर्प दोष होता है, वे इस दिन विशेष पूजा-अर्चना करके इस दोष के प्रभावों को कम कर सकते हैं।
इसके अलावा, इस दिन भगवान शिव के गले में विराजित नाग वासुकि और शेषनाग जैसे प्रमुख नाग देवताओं की भी पूजा की जाती है। यह त्योहार प्रकृति के साथ हमारे संबंध को दर्शाता है।
नागों को पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, जो फसलों की रक्षा करते हैं। इसलिए, उनकी पूजा करके हम प्रकृति के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं और उनसे अपने जीवन में शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।
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