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Latest Religious News: आज हम उस सबसे बड़े दिव्य रहस्य को जानने जा रहे हैं, जो उज्जैन के कुंभ मेले को सिंहस्थ नाम देता है। यह सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि देवताओं के गणित और ब्रह्मांड की चाल का प्रमाण है।
माना जाता है कि हर 12 साल में जब ज्ञान और भाग्य के स्वामी देवगुरु बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करते हैं, तब शिप्रा नदी के तट पर मोक्ष का महाद्वार खुलता है।
इस विशेष ज्योतिषीय संयोग में किया गया स्नान अमृत तुल्य होता है, जो करोड़ों श्रद्धालुओं को जन्म-मरण के बंधन से मुक्त करता है। आइए, इस सिंहस्थ महायोग की गहराई को समझते हैं, जहां आस्था और खगोल विज्ञान एक साथ मिलते हैं।
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देवगुरु बृहस्पति का सिंह राशि में आगमन
'सिंहस्थ' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है:
सिंह (Simha): जिसका अर्थ होता है 'शेर' यानी सिंह राशि।
स्थ (Stha): जिसका अर्थ होता है 'स्थित होना' या 'विराजमान होना'।
यानी, सिंहस्थ का सीधा मतलब है- जब कोई ग्रह सिंह राशि में स्थित हो। वह "कोई ग्रह" कौन है, वह हैं देवगुरु बृहस्पति।
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ज्योतिषीय नियम
उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ तभी होता है, जब ब्रह्मांड के सबसे शुभ ग्रह, बृहस्पति, अपनी गति से चलते हुए सिंह राशि (Leo) में प्रवेश करते हैं। ज्योतिषीय नियम के मुताबिक, बृहस्पति एक राशि में लगभग एक साल तक रहते हैं।
एक राशिचक्र को पूरा करने में उन्हें लगभग 12 साल लगते हैं, इसीलिए उज्जैन का कुंभ मेला भी हर 12 साल में एक बार होता है। जब यह संयोग बनता है, तब उज्जैन की पवित्र नदी शिप्रा के तट पर मोक्ष का महाद्वार खुल जाता है। इसी महायोग को सिंहस्थ कहा जाता है।
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उज्जैन और शिप्रा का अद्भुत कनेक्शन
यह ज्योतिषीय संयोग केवल नाम के लिए ही खास नहीं है, बल्कि इसका सीधा संबंध मोक्ष से है।
मोक्षदायक शिप्रा:
उज्जैन वह नगरी है जहां भगवान शिव ने स्वयं महाकाल के रूप में वास किया है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जब देवगुरु बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं तब शिप्रा नदी का जल अमृत के समान हो जाता है।
माना जाता है कि इस दौरान शिप्रा में स्नान करने से व्यक्ति को जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कुंभ की कथा:
उज्जैन सिंहस्थ 2028: कुंभ मेले की कहानी तो आपने सुनी ही होगी, जब अमृत कलश के लिए देवताओं और दानवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था और अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार जगह गिरीं। एक जगह उज्जैन भी है। लेकिन उज्जैन में अमृत स्नान का पूरा पुण्य तभी मिलता है, जब देवगुरु बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं।
इसलिए, सिंहस्थ महाकुंभ 2028 (Simhastha kumbh 2028) के दौरान देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु, साधु-संत और नागा बाबा यहां आते हैं और शाही स्नान करके इस खास योग का लाभ उठाते हैं। यह एक ऐसा मौका होता है जहां करोड़ों लोगों की आस्था, ज्योतिषीय गणना और मोक्ष की कामना एक साथ मिलती है।
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अंधकार पर ज्ञान की विजय
उज्जैन सिंहस्थ कुंभ (MP सिंहस्थ 2028) का आयोजन सिर्फ स्नान करने के लिए नहीं होता, बल्कि यह हमारे सनातन धर्म की सबसे बड़ी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर है। यह एक ऐसा मौका है जहां ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की महत्ता को समझा और फैलाया जाता है।
सिंहस्थ 2028 (Simhastha 2028) हमें यह याद दिलाता है कि ब्रह्मांड की ग्रह-चालें हमारे जीवन पर गहरा असर डालती हैं, और ज्योतिष की गणनाएं हमारे धर्म और कर्म के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती हैं।
जब देवगुरु बृहस्पति, जो ज्ञान और भाग्य के कारक माने जाते हैं, सिंह राशि में आते हैं, तो यह अंधकार पर ज्ञान की विजय का प्रतीक बनता है।
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